संवैधानिक निकायों पर भी उठे सवालों ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया

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नयी दिल्ली। सियासत में संवैधानिक संस्थाओं के सत्तापक्ष द्वारा गलत इस्तेमाल का आरोप  पहले से लगते रहे हैं, लेकिन मौजूदा सरकार में  विपक्ष द्वारा इतने धारदार आरोप पहली बार लगाते सुने गये। विपक्ष देश की संवैधानिक संस्थाओं पर खुल कर निशाना साध रहा है। पहले विपक्ष सीबीआई जांच की मांग करता था। अब इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

किसी घटना पर पहले विरोधी दल सीबीआई जांच की मांग करता था, लेकिन सीबीआई की गिरती साख के कारण अब विपक्ष ने ऐसी जांच की मांग नरेंद्र मोदी सरकार में करना बंद कर दिया है। सीएजी पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया।

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सीबीआई में दो अफसरों की लड़ाई और उसमें पीएमओ के दखल ने विपक्ष को इस पर राजनीति करने की खुली छूट दे दी। वहीं, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूछताछ ने इस भरोसे को कमजोर किया। लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड्गे खड़े हैं। विपक्ष सीधे केन्द्र सरकार पर सरकारी संस्थाओं को लगातार कमजोर करने का आरोप लगा रहा है।

न्यायपालिका की साख पर भी दबी जुबान उठ रहे सवाल

वर्ष 2018 में प्रदूषण पर भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने दिल्ली में पटाखे जलाने पर रोक लगा दी थी। भाजपा के नेताओं ने इसे धर्म से जोड़ दिया और सोशल मीडिया पर इसको लेकर काफी खिंचाई की गई। साल 2018 में ही उच्चतम न्यायालय के चार जज अंदर का झगड़ा सार्वजनिक तौर पर ले आये तो लोगों ने सोशल मीडिया पर खूब तंज कसे। उसी तरह जब जस्टिस रंजन गोगोई ने कार्यभार संभाला तो सोशल मीडिया ने जानकारी दी कि कांग्रेसी का बेटा देश का प्रधान न्यायाधीश बन गया।

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