महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई, पर अकबर की अधीनता कबूल नहीं की….पुण्यतिथि पर विशेष

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महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है। वर्ष 1597 में उनका इसी दिन निधन हुआ था। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।
महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है। वर्ष 1597 में उनका इसी दिन निधन हुआ था। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।

    मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो। महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है। वर्ष 1597 में उनका इसी दिन निधन हुआ था। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।


• सुरेंद्र किशोर

ब्रिटिश सरकार ने जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार (सन 1911) में हाजिर होने से सिर्फ महाराणा प्रताप के वंशज को छूट दी थी। याद रहे कि सारे भारतीय राजाओं की यह मजबूरी होती थी कि वे ब्रिटिश किंग के सामने झुककर उन्हें नजराना दें। चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी। किसी अन्य राजा-महाराजा को ऐसी छूट नहीं मिली थी। (एम.ओ. मथाई लिखित पुस्तक ‘‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’’से)

मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो। अन्यथा हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी। वैसा निदेश माना भी गया। कुछ साल पहले पटना हाईकोर्ट के चर्चित वरीय वकील बसंत कुमार चैधरी ने अपने फेसबुक वाल पर उपर्युक्त बातें लिखी थीं। चैधरी के अलावा भी अनेक लोग बताते रहे हैं कि समकालीन इतिहास लेखन के क्रम में बहुत सारी बातें छुपाई गईं और किसी की झूठी तारीफ भी की गई।

जब मैं मथाई की किताब पढ़ रहा था तो मुझे लगा कि यह बात मैं पहली बार पढ़ रहा हूं, जबकि मैंने इतिहास में आनर्स की डिग्री हासिल की है। खैर, इतिहासकार जो करें, पर मैंने बचपन में गांव में देखा था कि आम लोग महाराणा प्रताप के बड़े-बड़े चित्र वाले कैलेंडर अपने घरों में टांगते थे।

देश के राजाओं के बीच महाराणा प्रताप और उनके वंशजों की प्रतिष्ठा को देखते हुए आजादी के बाद महाराणा के वंशज को ‘महाराज प्रमुख’ बनाया गया था, जबकि बाकी राजे ‘राज प्रमुख’ ही बनाए गए थे। याद रहे कि जयपुर अपेक्षाकृत बड़ा राज्य था। पूर्व राजशाही वाले इलाकों में आजादी के बाद राज्यपाल के बदले पूर्व राजाओं को ही राज प्रमुख बना दिया गया था। भारत की आजादी के बाद तक भी कहीं किसी समारोह में राजस्थान के सभी राजा, महाराणा प्रताप के वंशज को शाष्टांग प्रणाम करते थे। सभी राजा, यानी सभी राजा ! पता नहीं, अब क्या स्थिति है ?

यह सब क्यों हुआ ? क्योंकि महाराणा प्रताप एकमात्र राजा थे, जिन्होंने घास की रोटी भले खाई, किंतु बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। दूसरी ओर, नब्बे के दशक में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने मुगल सम्राट अकबर की 450 वीं जयंती धूमधाम से मनाने का काम शुरू कर दिया था। किंतु कई हलकों से विरोध होने पर उन्हें समारोह को बीच में ही रोक देना पड़ा। एक तरफ मुसलमानों के एक हिस्से ने सरकार से कहा कि अकबर मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं है। इसलिए इसका कोई फायदा नहीं होगा। दूसरी ओर, दक्षिण भारत के लोग अकबर को हमलावर मानते हैं। ध्यान रहे कि शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह ने महाराणा प्रताप को किसी भी रूप मंं कभी याद किया हो, ऐसी कोई बात मेरी जानकारी में नहीं है।

भई, मानना पड़ेगा। ऐसे मामले में कांग्रेस की निरंतरता बनी हुई है। उसी निरंतरता के तहत कांग्रेस तथा अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल, जिनकी धर्मनिरपेक्षता एकपक्षीय है, आज राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का किसी न किसी बहाने बहिष्कार कर रहे हैं। उनके ऐसे कदमों का सीधा लाभ भाजपा को मिलता रहा है।

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