ओमप्रकाश अश्क की पांच कविताएं

समस्या है संगिनी समस्याओं का साथ मुझे रास आने लगा है। तभी तो मैंने इसे संगिनी स्वरूप स्वीकृति दे दी है। संज्ञा स्वरूप समस्याएं रोज साथ सोती हैं, जागती हैं,दुत्कारती तो...
‘चमारों की गली’ कविता में कवि अदम गोंडवी ने उनके हालात का वर्णन किया है। इसे साहित्यिक जमात अपने अपने नजरिए से देखता-आंकता है।  

‘चमारों की गली’ कविता और समकालीन यथार्थ…….

‘चमारों की गली’ कविता में कवि अदम गोंडवी ने उनके हालात का वर्णन किया है। इसे साहित्यिक जमात अपने अपने नजरिए से देखता-आंकता है।   ...
प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु  गांव और शहर दोनों के कथाकार हैं। इन्हें सिर्फ गांव में ही सिमटा देना एक साजिश है, इनके साथ न्याय नहीं। न प्रेमचंद सिर्फ लमही के कथाकार हैं और न रेणु सिर्फ औराही हिंगना के। ये भारतीय कथाकार हैं। इन्हें इसी रूप में जानना तथा मानना उचित है।

प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु महज गंवई कथाकार नहीं

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प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु  गांव और शहर दोनों के कथाकार हैं। इन्हें सिर्फ गांव में ही सिमटा देना एक साजिश है, इनके साथ न्याय...
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

इतनी कहियो जायिः निराला ने लिख दिया- बांधो न नाव इस ठांव बंधु

मिथिलेश कुमार सिंह महाप्राण निराला को जिन कुछेक गीतों ने हिंदी में पूरी ताकत से स्थापित किया और उन्हें दाखिल दफ्तर होने से बचा...
ओमप्रकाश अश्क

और इस तरह प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक बने ओमप्रकाश अश्क

ओमप्रकाश अश्क ने अपने कार्यकारी संपादक बनने की रोचक कहानी आत्मकथा पर आधारित अपनी प्रस्तावित पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- में बतायी है। कैसे...
फणीश्वरनाथ रेणु  बहुत कम उम्र से ही रामवृक्ष बेनीपुरी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे। वे स्कूली उम्र से 'जनता 'साप्ताहिक के पाठक बन गये थे।

रेणु बहुत कम उम्र से ही बेनीपुरी के व्यक्तित्व से प्रभावित थे

भारत यायावर  रेणु बहुत कम उम्र से ही रामवृक्ष बेनीपुरी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे। वे स्कूली उम्र से 'जनता 'साप्ताहिक के पाठक...
"मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश" नामक पंक्ति  प्रसिद्ध कविता 'सरोज-स्मृति' में है। यह कवि निराला का आत्म कथन है। स्वयं की उद्घोषणा है।

“मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश” पंक्ति निराला का आत्मकथन है

भारत यायावर  "मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश" नामक पंक्ति  प्रसिद्ध कविता 'सरोज-स्मृति' में है। यह सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का आत्म कथन है। स्वयं...

कहां गइल मोर गांव रे, बता रहे वरिष्ठ पत्रकार शेषनारायण सिंह

 शेष नारायण सिंह  1975 में जब मैंने संत तुलसीदास डिग्री  कालेज, कादीपुर (सुल्तानपुर) की प्राध्यापक की नौकरी छोडी थी तो एक महत्वपूर्ण फैक्टर यह...

डॉ अरुणा “अनु” की लघु कथा- जीवन की सीख

सुनीला की बोर्ड-परीक्षा का आज अंतिम दिन था। वह बहुत खुश थी। परीक्षा अच्छी जो हुई थी। घर लौटते हुए तरह-तरह के विचार उसके...

घर-परिवार से दूर पहली बार साथियों संग ऐसे मना होली का त्योहार

होली का त्योहार करीब है। चुनाव की गहमागहमी ने होली की रौनक भी बढ़ा दी है। प्रसंगवश वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक-...