- नवीन शर्मा
शरत चंद्र बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। उनका बचपन भागलपुर में नाना के घर बीता था। महज 18 साल की अवस्था में उन्होंने “बासा” (घर) नाम से एक उपन्यास लिखा था, लेकिन वह प्रकाशित नहीं हुआ। शरत आर्थिक तंगी के कारण ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रह कर कलकत्ता लौटने पर अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया।
बर्मा में शरत का परिचय बंगचंद्र से हुआ, जो था तो बड़ा विद्वान, पर शराबी और उत्श्रृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है।
यूं हुआ बड़ी दीदी का प्रकाशन
एक बार शरत बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना “बड़ी दीदी” का 1907 में धारावाहिक प्रकाशन शुरू हो गया। दो-एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी “चरित्रहीन” के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से इन्कार कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है।
पाथेर दावी हुआ था जब्त
शरत चंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे, जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, बाम्हन की लड़की, विप्रदास, देना-पावना आदि प्रमुख हैं। बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर “पथेर दावी” उपन्यास लिखा गया। पहले यह “बंग वाणी” में धारावाहिक रूप से निकला, फिर पुस्तकाकार छपा तो तीन हजार का संस्करण तीन महीने में समाप्त हो गया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय वैसे तो स्वयं को बंकिमचंद्र चटर्जी और रवींद्रनाथ ठाकुर के साहित्य से प्रेरित बताते हैं, लेकिन वे इन दोनों ये काफी अलग धरातल पर जाकर अपना रचनात्मक ताना-बाना बुनते हैं। उनके साहित्य ने समाज के निचले तबके को पहचान दिलाई। उनके इसी दुस्साहस के लिए उन्हें समाज के रोष का पात्र भी बनना पड़ा।
शरत चंद्र की लोकप्रियता इतनी अधिक थी और उनका जीवन इतना संघर्षपूर्ण था कि हिन्दी साहित्य के रचनाकार विष्णु प्रभाकर ने उनकी जीवनी आवारा मसीहा’ के नाम ले लिखी थी, जो हिंदी में लिखी गई सबसे बेहतरीन जीवनी है।
देवदास पर बनीं 12 से अधिक भाषाओं में फिल्में
शरतचन्द्र की ‘देवदास’ पर तो 12 से अधिक भाषाओं में फिल्में बन चुकी हैं और सभी सफल रही हैं। उनके ‘चरित्रहीन’ पर बना धारावाहिक भी दूरदर्शन पर सफल रहा। ‘चरित्रहीन’ को जब उन्होंने लिखा था, तब उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उसमें उस समय की मान्यताओं और परंपराओं को चुनौती दी गयी थी। श्रीकांत पर भी दूरदर्शन पर धारावाहिक बना था जो काफी अच्छा था।
शरतचंद्र बाबू ने मनुष्य को अपने विपुल लेखन के माध्यम से उसकी मर्यादा सौंपी और समाज की उन तथाकथित परम्पराओं को ध्वस्त किया, जिनके अन्तर्गत नारी की आँखें अनिच्छित आँसुओं से हमेशा छलछलाई रहती हैं। शर नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्दधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी थी। शरत का प्रेम को आध्यात्मिकता तक ले जाने में विरल योगदान है। शरत-साहित्य आम आदमी के जीवन को जीवंत करने में सहायक जड़ी-बूटी सिद्ध हुआ है।
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शरत के उपन्यासों के कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। कहा जाता है कि उनके पुरुष पात्रों से उनकी नायिकाएँ अधिक बलिष्ठ हैं। शरत्चंद्र की जनप्रियता उनकी कलात्मक रचना और नपे तुले शब्दों या जीवन से ओतप्रोत घटनावलियों के कारण नहीं है, बल्कि उनके उपन्यासों में नारी जिस प्रकार परंपरागत बंधनों से छटपटाती दृष्टिगोचर होती है, उसकी वजह ले है। शरत ने जिस प्रकार पुरुष और स्त्री के संबंधों को एक नए आधार पर स्थापित करने के लिए पक्ष प्रस्तुत किया गया है, उसी से शरत को जनप्रियता मिली। उनकी रचना हृदय को बहुत अधिक स्पर्श करती हैं। उनके कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फिल्में भी कई बार बनी हैं। इनके उपन्यास चरित्रहीन पर आधारित 1974 में इसी नाम से फिल्म बनी थी। परिणिता पर भी बांग्ला और हिंदी में फिल्में बनीं हैं जो हिट भी हुईं।
उपन्यास : • श्रीकान्त • पथ के दावेदार • देहाती समाज • देवदास • चरित्रहीन • गृहदाह • बड़ी दीदी • ब्राह्मण की बेटी • सविता • वैरागी • लेन देन • परिणीता • मझली दीदी • नया विधान दत्ता• ग्रामीण समाज • शुभदा • विप्रदास
- कहानियाँ : • सती तथा अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह) • विलासी (कहानी संग्रह) • गुरुजी • अनुपमा का प्रेम
प्रसिद्ध उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु 16 जनवरी सन् 1938 ई. को हुई थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती हैं। लोकप्रियता के मामले में बंकिम चंद्र चटर्जी और शरत चंद्र रवीन्द्रनाथ टैगोर से भी आगे है।