दया पवार की आत्मकथा अछूत महार समाज के संघर्ष की गाथा है 

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दया पवार की आत्मकथा अछूत महार समाज के संघर्ष की गाथा है 
दया पवार की आत्मकथा अछूत महार समाज के संघर्ष की गाथा है 
  • राम धनी द्विवेदी

दया पवार की आत्‍मकथा अछूत पढ़ते समय ऐसा लगा कि दूसरों की पीड़ा हम उस गहराई तक अनुभव नहीं कर सकते, जितना भोगने वाले ने किया है। भूख का डंक भूखा ही अनुभव कर सकता है। सामाजिक अपमान होने पर कोई किस तरह अंदर ही अंदर मरता है, इसे वही जान सकता है, जिसका कभी वैसा अपमान हुआ हो। लेकिन कभी-कभी भुक्‍तभोगी की कथा भी हमें उसके दर्द के आसपास तक पहुंचा ही देती है। दया पवार की आत्‍मकथा अछूत पढ़ते समय ऐसा ही लगा।

मराठी में बलुतं नाम से छपी इस आत्‍मकथ्‍य का हिंदी में अनुवाद दामोदर खडसे ने उतनी ही संवेदनशीलता से किया है, जितनी बेबाकी से इसे लिखा गया है। कहीं भी यह अनुवाद जैसा नहीं लगता। 1979 में प्रकाशित इस आत्‍मकथा को कई सम्‍मान मिल चुके हैं।

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आत्‍मकथा या अपनी व्‍यथा शुरू करने के पहले दया पवार कहते हैं कि भारतीय समाज व्‍यवस्‍था ने दुखों की जो बनिहारी उनकी झोली में डाली है, वह उन्‍होंने शब्‍दों में तो व्‍यक्‍त कर दिया है, लेकिन आप लोगों को न बताएं, ऐसी उनकी इच्‍छा है। क्यों नहीं बताने देना चाहते वह, दूसरों को इस पीड़ा को,यह तो वही जानें,लेकिन शायद- निज मन की व्‍यथा, मन ही राखो गोय की भावना के चलते वह ऐसा कह रहे होंगे, लेकिन मैं सोचता हूं कि उनकी पीड़ा को सबको जानना चाहिए और दूसरों को वह न भोगनी पड़े, इसके लिए गंभीर कोशिश की जानी चाहिए।

दया पवार अपने प्रतिछाया से बात करते हुए उसके बारे में बताते हैं कि अच्‍छी नौकरी, भरा पूरा परिवार और रहने को अच्‍छी सरकारी व्‍यवस्‍था होने के बाद भी उनके अंदर का दगड़ू मारुति पवार कहीं न कहीं उनपर भारी रहता है और सब कुछ रहते हुए भी वह क्‍यों उदास रहते हैं और क्‍यों उन्‍हें लगता है कि उनका कुछ खो गया है। और अपनी इसी उदासी का कारण बताते हुए वह अपनी पूरी कहानी बताते हैं।

महारवाड़ा में जन्‍म और कावाखाने तक पहुंचने, मुंबई की कई मलिन बस्तियों में रहने के अनुभव को दया ने जिस बारीकी से वर्णन किया है, वैसा सबके बस की बात नहीं है। लक्ष्‍मण गायकवाड़ की उचक्‍का की तरह ही दया पवार के अछूत में बहुत ही स्‍पष्‍टता और बारीकी से सभी घटनाक्रम लिखे गए हैं। दया अपनी कमजोरी को कहीं भी नहीं छिपाते, बलि्क उसे बताते समय उसके कारणों को भी तलाशने की कोशिश करते हैं।

दगड़ू से दया पवार बनने की उनकी कहानी में इतने घटनाक्रम हैं कि सभी एक क्रम में नहीं आ पाते। वह एक घटना बताते-बताते दूसरी पर आ जाते हैं और फिर पुराना छोर पकड़ लेते हैं। लेकिन पढ़ते समय यह विचलन उनके जीवन को समझने में कहीं बाधक नहीं बनता। दलित समुदाय के किसी बालक को समाज में सिर उठा कर चलने लायक बनने में कदम-कदम पर कितनी बाधाएं आती हैं, जो कभी कभी हताशा की सीमा तक पहुंचा देती हैं, इसे सभी लोग नहीं समझ सकते। जिसे जीने के लाले पड़े हों, पेट भरना मुश्किल हो रहा हो, वह पढने की ठाने और लगातार उसे जारी रखे, यह कम साहस की बात नहीं है।

दया ने ऐसा किया और इसका नतीजा भी उन्‍हें मिला। लेकिन दया पवार यह भी स्‍वीकारते हैं कि वह अंदर से दब्‍बू और डरे हुए रहते हैं। उन्‍होंने स्‍वीकार भी किया है कि जितने भी पात्र इस कथा में आए हैं और बहुत से उनसे भी खराब हालात का सामना कर रहे होते हैं लेकिन वे इतने डरे हुए और दब्‍बू नहीं लगते।

इस आत्‍मकथा में दया अपनी निर्मित में बाबा साहब के योगदान को रेखांकित करते हैं जिनके आंदोलनों में वह सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में बने रहे लेकिन जल्‍द ही इसके नेताओं को लेकर उनका भ्रम भी दूटता है और वह उनके अनुयायियों के बाबा साहब के रास्‍ते से दूर होने की बात भी बताते हैं। वह उनकी आलोचना करते भी दिखते हैं। दया पवार अपने निजी जीवन और पहली शादी के टूटने और दूसरी शादी की बात भी बताते हैं हालांकि दूसरी पत्‍नी के बारे में कम ही जानकारी है। अधिकतर लेखक ऐसे प्रसंगों को टाल जाते हैं। तुलसी राम ने भी अपने दो खंडों की आत्‍मकथा में ऐसे प्रसंग को टाल दिया और अपनी पहली पत्‍नी के बारे में एकदम नहीं बताया जिसके लिए उनकी आलोचना भी हुई।

इन सबके वावजूद अछूत एक ऐसी रचना है जिसे पढ़कर आप निश्चित ही भारतीय सामाजिक व्‍यवस्‍था के कटु यथार्थ पर सोचने के लिए बाध्‍य होंगे। इसे पढ़ना शुरू करेंगे तो पूरी किए बिना नहीं रह सकते। यह मन को अंदर तक छूने वाली रचना है। ऐसा इसलिए भी संभव हुआ है क्‍यों कि दया पवार ने अछूत को पूरी ईमानदारी से लिखा है और कहीं  भी  न तो कुछ अतिरेक है और न ही गोपन रखा है। उनके वर्णन में कहीं भी कुछ बनावटी नहीं लगता। जो जैसा भोगा और जैसा सोचा वह लिखा। इसमें उनकी कमजोरी भी दिखती है साथ ही स्थितियों का सामना करने की तत्‍परता भी। यह आत्‍मकथा महाराष्‍ट्र के महार समुदाय के बारे में कई विचलित करने वाली जानकारी भी देती है। भारतीय समाज को जानने के लिए इसे पढना आवश्‍यक है।

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