हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में  इस बार किस ‘राम’ की नैया होगी पार?

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राम विलास पासवान
राम विलास पासवान

पिछले 42 वर्षों से हर सांसद के नाम का संबंध ‘राम’ से रहा है

  • पाण्डेय ब्रजनंदन

हाजीपुर के नए सांसद कौन होंगे? फिलवक्त यह अनुत्तरित सवाल सभी चौक-चौराहे पर चर्चा में है। राम विलास पासवान ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान द्वारा चुनाव न लड़ने की घोषणा करने के बाद हाजीपुर संसदीय सीट के लोगों को अब किसी नए चेहरे को सांसद का चुनाव करना है। दिलचस्प यह कि एनडीए के साथ-साथ महागठबंधन ने भी अपने जिन प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है, वे दोनों पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। यह भी महत्वपूर्ण कि एक बिहार सरकार के मंत्री हैं तो दूसरे पूर्व मंत्री। एक विधायक हैं तो दूसरे विधान पार्षद।

हाजीपुर संसदीय सीट का आजादी के बाद से ही ‘राम’ नाम से संबंध जुड़ा हुआ है। चाहे जिस भी दल से जुड़े यहां के सांसद बने हैं, उनके नाम में राम शब्द अवश्य जुड़ा रहा है। चाहे नाम की शुरुआत राम से हो या नाम का अंत राम से हो। इस बार भी दो राम के बीच ही सीधा मुकाबला होना है। यह दूसरी बात है कि एक राम सीधे अखाड़े में उतर चुके हैं, जबकि दूसरे राम ने कंट्रोलर की भूमिका निभाते हुए अपने भाई को प्रतीकात्मक रूप में चुनावी अखाड़े में उतारने की घोषणा की है।

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हाजीपुर संसदीय  क्षेत्र में सभी जगहों पर यही चर्चा है कि हाजीपुर में शिव चंद्र राम को मुकाबला रामविलास पासवान से ही करना है, न कि पशुपति कुमार पारस से। हाजीपुर सुरक्षित संसदीय सीट का नामांकन एक्सप्रेस खुल गया और पहली सवारी करने के लिए महागठबंधन के प्रत्याशी राजापाकड़ के विधायक शिवचंद्र राम सवार हो गए। उनसे मुकाबला करने के लिए एनडीए के तरफ से लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष और बिहार सरकार के मंत्री पशुपति कुमार पारस को चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा की गई है। शिवचंद्र राम लगातार क्षेत्र में सघन जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं, जबकि नाम की घोषणा होने के बावजूद एनडीए प्रत्याशी का क्षेत्र में प्रवेश अभी तक नहीं हुआ है।

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अटकलें यह भी लगती रहीं कि अंत समय में पारस जी की जगह चिराग पासवान भी चुनावी अखाड़े में आ सकते हैं। लेकिन अब पशुपति कुमार पारस ने 12 अप्रैल से अपना चुनावी अभियान शुरू करने की घोषणा करते हुए एनडीए की बैठक बुलाई है। इन्हीं कारणों से इस चर्चा को बल मिलता रहा कि एनडीए से चाहे प्रत्याशी जो भी बनाए जाएं, असली चुनाव तो लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान को ही लड़ना है, जिन्होंने हाजीपुर को अपनी मां का दर्जा दिया है और जीवन भर हाजीपुर के विकास के लिए और लोगों की खुशहाली के लिए कार्य करते रहने की घोषणा कर रखी है।

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हाजीपुर संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास में जीत पिछले 42 वर्षों से किन्ही ना  किन्हीं राम की ही हुई है। अर्थात मान्यता अनुसार जिस तरह समुद्र में महासेतु बनाते समय राम नाम लिखे पत्थर नदी में नहीं डूबते थे, उसी तरह हाजीपुर संसदीय सीट से विजयी ताज पहनने के लिए अब तक राम शब्द का विशेष संबंध रहा है। हाजीपुर से 8 बार रामविलास पासवान सांसद रहे हैं। दो बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इनका नाम दर्ज हुआ, जबकि दो बार पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय राम सुंदर दास विजई हुए। एक बार राम रतन राम विजई हुए। इस तरह पिछले 42 वर्षों में राम नाम से जुड़े नेता ही हाजीपुर के  सांसद रहे।

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हाजीपुर संसदीय सीट पहले सामान्य सीट थी। वर्ष 1977 में हाजीपुर संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित की गई। तब से राम के नाम का डंका यहां बज रहा है। यही कारण है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में लोगों के बीच में चर्चा है कि यदि एनडीए को मुकाबला करना है तो राम विलास पासवान को ही पूरी बागडोर संभालनी पड़ेगी। तब वोटर यह तय कर पाएंगे कि किस राम को विजयी माला पहनाना है।

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