NOC मिला, पलामू में 3 लाख साल के पेड़ मंडल डैम की भेंट चढ़ेंगे

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पलामू में बन रहा मंगल डैम
पलामू में बन रहा मंगल डैम
  • अरविंद अविनाश

रांची। पलामू में 3 लाख से अधिक साल के पेड़ जल्द ही मंडल डैम की भेंट चढ़ने वाले हैं। वन विभाग ने पेड़ों को काटने की NOC (अनापत्ति प्रमाणपत्र) भी दे दिया है। प्रकृति के साथ यह अन्याय होगा। प्रकृति पर्व सरहुल अभी-अभी समाप्त हुआ है। सरहुल मिलन के कार्यक्रम जारी हैं। साल के फूल लेकर लोग आ-जा रहे हैं, लेकिन मंडल डैम के अधीन पड़ने वाले साल के पेड़ उदास हैं।

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इस साल का अप्रैल महीना कुछ मायनों में खास है। चुनावी तपिश के साथ ही बढ़ते तापमान से धरती भी तपने लगी है। एक बार फिर तपिश की चपेट में पलामूवासी झुलसने लगे हैं। गर्म हवा के थपेड़ों से हर कोई परेशान दिख रहा है। अप्रैल माह में इतनी गर्मी पहले कभी नहीं पड़ती थी। पलामू के छीजते जंगलों में बचे पलाश अपने लाल फूलों से जरूर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। महुआ टपकने लगा है, इसलिए जंगलों के साथ ही महुआ के पेड़ों के आसपास मादकता भी पसरी हुई है। लेकिन जंगल में दूसरी ओर उदासी भी है।

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प्रकृति कोमल पत्तों व फूलों से लद कर मुस्करा रही है। सरई के फूल अपनी महक से धरती को सरावोर किये हैं, लेकिन मंडल डैम के डूब क्षेत्र में पड़ने वाले साल के लाखों पेड़ उदास हैं। पेड़ों पर टंगे फूल स्वभाव के विपरीत उदासी के गीत गाते नजर आ रहे हैं। वर्षों से तन कर खड़े साल के पेड़, जो कल तक झूमते नजर आते थे, आने वाली तबाही की सूचना से हतप्रभ हैं।

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ये पेड़ शिकायती लहजे में कहते नजर आ रहे हैं कि पुरखा-दर-पुरखा हमने तो आप सबों को छांव दिया है। पानी के फुहारों से आपके मन व खेत को सुकून दिया है। आप सबकी प्यास बुझाई है। हमारे उपर पहले ही बहुत ज्यादती हुई है। आरा मशीन से लेकर टांगी तक के प्रहार से हम पहले ही बहुत कम बचे हैं। फिर हमें मिटाने की खबर पर आप चुप क्यों हैं? सनद हो कि सालों से तन कर खड़े 3 लाख से अधिक साल के पेड़ जल्द ही मंडल डैम में समाने वाले हैं। हर साल इन पेड़ों पर फूलने वाले फूल सदा के लिए ओझल होने वाले हैं। सरकार 3.44 लाख साल के हरे पेड़ों को काटने का आदेश दे चुकी है। झारखंड के मंत्री सरयू राय ने कई बार कहा है कि इन पेड़ों पर आरी नहीं चलेगी, इन्हें यों ही डैम में डूबने को छोड़ दिया जायेगा। यानी तिल-तिल कर मरने को छोड़ दिया जायेगा।

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प्रधानमंत्री द्वारा इस साल 5 जनवरी को डैम के उद्घाटन के बाद खतरा और बढ़ गया है। कानूनी सारी बाधाएं दूर कर ली गई हैं। जल संसाधन विभाग ने नहर एवं जलाशय के निर्माण के निमित्त भू-अर्जन मद में 61 करोड़ रुपये जारी कर दिये हैं। इस योजना में केन्द्र सरकार, कुल लागत का 60 प्रतिशत एवं राज्य सरकार 40 प्रतिशत खर्च करेंगी। अब तो सिर्फ कुछ ही भूमि का अधिग्रहण बाकी है। वन विभाग से अनापत्ति प्राप्त होते ही काम आरम्भ हो जायेगा।

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सरकार के अनुसार उत्तर कोयल नदी के निकट कुटकू में जलाशय एवं मोहम्मदगंज के पास  बराज का निमार्ण किया जायेगा। इस योजना से झारखंड में 19,604 हेक्टेयर और बिहार के औरंगाबाद-गया के 92 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। 1007.29 हेक्टेयर वन भूमि पर डैम आकार लेगा। 2400 करोड़ रुपये खर्च होंगे, इस डैम पर। डैम 67.86 मीटर ऊंचा और 343 मीटर लंबा होगा। 71,200 वर्ग मीटर जलाशय का क्षेत्रफल होगा। मंडल डैम पर सत्ता पक्ष व विपक्ष आमने-सामने खड़े हैं।

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आज का विपक्ष कल सत्ता में था, फिर उसके बोल वैसे ही थे, जो आज सत्ता पक्ष का है। मुख्यमंत्री ने पलामू की प्यासी धरती के लिए इसे वरदान कहा है। किसानों के चेहरे पर मुस्कान होगी। यह डैम एक बार यहां के 25 से अधिक लोगों को लील चुका है। पलामू के संघर्ष के प्रतीक नीलाम्बर-पीताम्बर का गांव चेमो-सेन्या भी इस डैम में डूबेगा। इसके अंदर आने वाले कई गांवों का पुनर्वास अभी बाकी है।

सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि कुछ सिंचित होने वाली जमीन के बीच कितना का अंतर है। बिहार की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन इससे सिंचित होगी। इसके पहले भी पलांमू में जितने डैम या बराज बने हैं, उनका लाभ बिहार को ही मिला है। लगातार सूखा व अकाल का दंश झेलते पलामू की ओर सरकार का ध्यान ही नहीं रहा है। कभी घने जंगलों के लिए जाना जाने वाला पलामू वन विहीन हो रहा है।

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जंगलों के कटने से पलामू पूरी तरह प्रभावित होने वाला जिला है। जलवायु में हो रहे परिवर्तन की मार सबसे ज्यादा पलामू ही भुगत रहा है। पलामू में भारी मात्रा में होने वाली लाह की खेती अब अतीत की चीज हो गई है। सूखा तो मानो नियति ही है। ऐसे में लाखों कीमती पेड़ों का कटना पलामू की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

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डैम निर्माण को आरम्भ से देखने वाले ग्रामीणों के अनुसार आज से 40 साल पहले इस योजना की शुरूआत हुई थी। डैम के संबंध में पहला काम 1970 से 1980 के बीच हुआ था, लेकिन तब का समय कुछ और था। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जनता के विरोध के कारण ही पिछले 40 साल से मंडल डैम का काम रूका हुआ था। सरकार का मानना है कि 1978 में वन्यप्राणी संरक्षण व वन सुरक्षा कानून लागू होने के कारण डैम का काम रूक गया था। इसके लिए केन्द्र सरकार के वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र जरूरी था, जिसे अब प्राप्त कर लिया गया है। पेड़ काटे जाने के बाबत पूछने पर चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन एल.आर. सिंह कहते हैं कि उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना के लिए दिये जाने वाले 1007.29 हेक्टेयर वनभूमि क्षेत्र से 3,44,644 पेड़ों को काटने की अनुमति केन्द्रीय पर्यावरण विभाग से मिल चुकी है। लेकिन विभाग ने निर्णय लिया है कि पेड़ों को यों ही छोड़ दिया जायेगा। डैम के विरोधी व प्रभावित परिवार के लोग कहते हैं कि सरकार के इस निर्णय से पलामू टाइगर रिजर्व का 1007.29 हेक्टेयर वन भूमि डैम में तो डूबेगा ही, लाखों पेड़ व उनके जैसे  सैकड़ों परिवारों का भविष्य भी डैम में डूब जायेगा।

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