जयंती पर विशेषः फिल्मों के आलराउंडर खिलाड़ी विजय आनंद

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  • नवीन शर्मा

विजय आनंद को हिंदी सिनेमा का हरफनमौला खिलाड़ी कहना ज्यादा सही रहेगा। वे बेहतरीन निर्देशक थे, संवेदनशील अभिनेता भी थे। इसके साथ-साथ वे लेखक और अच्छे एडिटर भी थे। देव आनंद की सबसे बेहतरीन फिल्म गाइड मानी जाती है। इस लाजवाब क्लासिक फिल्म को विजय आनंद ने ही निर्देशित किया था। आरके नारायण की किताब पर  देव आनंद बतौर निर्माता दो भाषाओं में ‘गाइड’ (1965) बना रहे थे। उनके बड़े भाई चेतन आनंद हिंदी और टेड नियलवस्की अंग्रेजी संस्करण का निर्देशन कर रहे थे, मगर चेतन ‘गाइड’ बीच में ही छोड़ अपनी फिल्म ‘हकीकत’ बनाने लगे। तब ‘गाइड’ के निर्देशन की जिम्मेदारी गोल्डी यानी विजय आनंद पर आई। गोल्डी ने कहा कि वे फिल्म की पटकथा अपने हिसाब से लिखेंगे। गोल्डी ने ‘गाइड’ में अध्यात्म का पुट दिया और देव की लवर बॉय की इमेज को ध्वस्त कर दिया। गाइड के गाने और उनका मनमोहक फिल्माकंन ने फिल्म को हिट कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके सुरीले गीतों में पिया तोसे नैना लागे रे, दिन ढल जाए हाय रात ना जाए और कांटों से खींच के ये आंचल प्रमुख हैं।

अंग्रेजी से अलग हिंदी ‘गाइड’ में उन्होंने कई बदलाव भी किए, क्योंकि उनका मानना था कि भारतीय दर्शक किसी महिला को पराये मर्द से इश्क करते स्वीकार नहीं करेंगे। मजरूह सुलतानपुरी ने इसके गाने लिखे तो गोल्डी को लगा कि गानों के लिहाज से तो हीरोइन खलनायिका नजर आती है। लिहाजा उनकी जगह शैलेंद्र को फिल्म के गीत लिखने की जिम्मेदारी दी गई, जिन्होंने नायिका को खलनायिका के बजाय बागी तेवर दिए।

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गाइड फिल्म का अंग्रेजी संस्करण बॉक्स आफिस पर फ्लॉप रहा हुआ लेकिन  विजय आनंद की हिंदी ‘गाइड’ सुपर हिट साबित हुई। आरके नारायण, जिनके उपन्यास पर फिल्म बनी थी, ने तो यहां तक कहा कि फिल्म मेरी किताब से भी ज्यादा खूबसूरत बनी है। अब विडंबना देखिए की देव  आनंद ने ट्रेड को ‘गाइड’ के निर्देशन के लिए दस लाख दिए मगर अपने छोटे भाई गोल्डी को न तो कुछ दिया और न गोल्डी ने कुछ मांगा। यहां तक कि गोल्डी की मेहनत के बावजूद देव आनंद ने ‘गाइड’ के पोस्टरों पर लिखा- ए फिल्म बाय देव आनंद।

जब गोल्डी को लगा कि उनके घर में उनकी कीमत नहीं हो रही है। लिहाजा उन्होंने बाहर की फिल्म निर्देशित करना तय किया। नासिर हुसैन ने उन्हें  ‘तीसरी मंजिल’ का निर्देशन सौंपा। यहां भी विजय आनंद ने कहा कि वे अपना संगीतकार लाएंगे। नासिर और ‘तीसरी मंजिल’ के हीरो शम्मी कपूर शंकर-जयकिशन के भक्त थे। मगर गोल्डी के कहने पर दोनों ने आरडी बर्मन को सुना और उनके भक्त बन गए। इस फिल्म के गीतों की सफलता से आरडी बर्मन ने हिंदी फिल्म गीतों में एक नया आयाम जोड़ा। यह नए जमाने का संगीत था, जिस पर पश्चिमी वाद्ययंत्रों का प्रभाव साफ दिखाई देता है।

अनुबंध के मुताबिक फिल्म के बॉम्बे वितरण क्षेत्र के मुनाफे में गोल्डी को 20 फीसद मिलना था। फिल्म के हिट होते ही नासिर ने अपने चचेरे भाई को गोल्डी के पास अनुबंध पर पुनर्विचार करने भेजा। गोल्डी को बुरा लगा और उन्होंने 20 फीसद मुनाफे वाली बात खुद अनुबंध से हटाई और अपना मेहनताना तक नहीं लिया। यह बात गोल्डी के मित्र फिल्म वितरक गुलशन राय को बहुत बुरी लगी।

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गुलशन राय को अफसोस था कि उनके मित्र को ठग लिया गया है। लिहाजा उन्होंने अपनी कंपनी त्रिमूर्ति फिल्म्स बनाई और कहा कि गोल्डी उनके लिए एक फिल्म निर्देशित करें। इसके मुनाफे में वे उन्हें 33 फीसद हिस्सेदारी देंगे। गोल्डी ने कहा कि पैसों के बारे में बाद में बातचीत करेंगे क्योंकि उन्हें पैसे की बात करना पसंद नहीं। इस तरह बनी बतौर निर्माता गुलशन राय की पहली फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ (1970) बनी। फिल्म सुपर हिट हुई तो गुलशन राय ने गोल्डी को बुलाया और कहा कि मैं तो तुम्हें फिल्म के मुनाफे में 33 फीसद भागीदारी देने के लिए तैयार था। मगर तुमने ली नहीं। अब बताओ कि मेरी इस फिल्म का निर्देशन करने का तुम कितना पैसा लोगे? गोल्डी गुलशन राय को भी नासिर हुसैन बनते देख रहे थे।

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विजय आनंद के संवेदनशील अभिनेता भी थे। उनकी इस प्रतिभा की बानगी हम कोरा कागज फिल्म में देख सकते हैं। जया भादुड़ी के साथ विजय आनंद ने भी इसमें  अच्छा अभिनय किया है। इस फिल्म का टाइटल सांग मेरा जीवन कोरा कागज काफी लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म को मनोरंजक लोकप्रिय फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हुआ था। विजय आनंद ने दूरदर्शन पर तहकीकात नाम के सीरियल में जासूस की भूमिका निभाई थी। इसमें वो अपराध की घटनाओं की जांच कर अपराधी को पकड़ते थे। विजय आनंद ने  ‘काला बाजार’ व ज्वेलथीफ  जैसी कई अन्य सफल फिल्में भी निर्देशित कीं।

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