पुरषोत्तम से हारते नहीं तो गजल गायक नहीं बन पाते जगजीत सिंह

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जयंती पर विशेष

  • नवीन शर्मा

जगजीत सिंह के गजल गायक बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। ये उन दिनों की बात है जब जगजीत डीएवी कालेज जालंधर में पढ़ते थे। प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक भी उसी कालेज में पढ़ते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा क्या बैरी क्या बेगाना में जगजीत सिंह के क्लासिक सिंगर से गजल गायक बनने की प्रक्रिया बयान की है। पुरषोत्तम जोशी नाम का लड़का शास्त्रीय संगीत में काफी पारंगत था। वो जगजीत सिंह से एक साल जूनियर था। शास्त्रीय संगीत के इंटर कालेज, इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में वो ही हमेशा पहला स्थान पाता था और जगजीत को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ता था। इस स्थिति में जगजीत सिंह ने क्लासिकल प्रतियोगिता में हिस्सा लेना बंद कर दिया। उन्होंने सुगम संगीत में रूचि लेनी शुरू की। इसके बाद जगजीत सिंह की सफलता के द्वार खुलने शुरू हुए। हर प्रतियोगिता में वे अपना परचम लहराने लगे।

जगजीत सिंह की गायकी तो कमाल की थी ही, वहीं वाद्ययंत्रों पर भी उनका कमाल का अधिकार था। वे पूरे आत्मविश्वास के साथ कालेज में दावा करते थे कि उन्हें दुनिया का कोई भी वाद्ययंत्र दे दिया जाए जिसे उन्होंने कभी देखा भी ना हो तो वो उसे बजा देंगी। महज उन्हें आधा घंटा उस वाद्ययंत्र के साथ छोड़ दिया जाए तो वे उसपर कोई भी गीत बजा कर दिखा देंगे।

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कालेज के दिनों में जगजीत सिंह जमकर रियाज करते थे । उनमें गायन के प्रति  जुनून था। वो सुबह पांच बजे उठाकर दो तीन घंटे रियाज करते। इसके बाद कालेज जाते। कालेज में भी जब ब्रेक के दौरान पब्लिक एड्रेस सिस्टम माइक से प्रिसिंपल का पांच मिनट का भाषण खत्म हो जाता तो जगजीत सिंह उस पर कब्जा जमा कर गाना शुरू कर देते थे। वो पच्चीस मिनट तक बिना इस बात की फिक्र किए की कोई उनका गाना सुन रहा है या नहीं गाते रहते थे।

हास्टल के लड़कों को भी वे राह चलते पकड़ कर गाना सुनाने लगते थे। कई बार लड़के आजीज आकर कहते ओय तुने तो पास होना नहीं, हमें तो पढ़ने दे। इसपर गुस्से में आकर कहते सालों नाशुक्रो एक दिन ऐसा आएगा कि मेरा गाना सुनने के लिए तुम टिकट खरीदोगे। ऐसा गजब का आत्मविश्वास जगजीत में महज 20 वर्ष की उम्र में था। यह बात कुछ वर्षों में ही सही साबित हुई। जगजीत सिंह गजल किंग बन गए।

जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था।असली नाम जगमोहन सिंह धीमन था। बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे १९६५ में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे।

जब जगजीत सिंह चित्रा से पहली बार मिले थे, तब चित्रा सिंह उन्हें पसंद नहीं करती थीं। चित्रा सिंह पहले से ही देबू प्रसाद दत्ता से शादी कर चुकी थी और उनकी एक बेटी मोना भी थी। चित्रा जहां मुंबई में रहती थीं, उनके सामने एक गुजराती फैमिली रहती थी। जहां जगजीत अक्सर आते और गानों की रिकॉर्डिंग करते थे। एक दिन चित्रा को सामने से आवाज सुनाई दी। जगजीत के जाने के बाद चित्रा ने पड़ोसी से पूछा, ‘क्या मामला है?’ पड़ोसी ने जगजीत की तारीफ की और जब उन्हें उनकी रिकॉर्डिंग सुनाई तो चित्रा ने पूछा, सरदार है क्या? जवाब मिला, हां, लेकिन दाढ़ी कटवा दी है। कुछ देर बाद चित्रा ने जगजीत की गायकी सुनकर कहा, ‘छी! ये भी कोई सिंगर है। गजल तो तलत महमूद गाते हैं।’

1967 में जब जगजीत और चित्रा एक ही स्टूडियो में रिकॉर्ड कर रहे थे, इसी दौरान वे मिले तो बात हुई। चित्रा बोलीं, ‘आपको मेरा ड्राइवर छोड़ देगा घर तक।’ रास्ते में चित्रा का घर आया। उन्होंने जगजीत को चाय पर बुलाया। इसी दौरान जगजीत एक गजल गाते हैं और चित्रा इसे किचन से सुन लेती हैं। जब चित्रा ने उनसे पूछा कि किसकी है, जगजीत कहते, ‘मेरी है’। इसके बाद चित्रा पहली बार जगजीत से इम्प्रेस हुई।

इसके बाद जगजीत और चित्रा अक्सर मिलने लगे और एक दूसरे को पसंद करने लगे। वहीं दूसरी ओर चित्रा और देबू ने राजमंदी से डिवोर्स ले लिया। जगजीत देबू के पास गए और कहा, ‘मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं।’ जब इजाजत मिली तो शादी की घड़ी आई। इस शादी का खर्च महज 30 रुपये आया था। तबला प्लेयर हरीश ने पुजारी का इंतजाम किया था और गजल सिंगर भूपिंदर सिंह दो माला और मिठाई लाए थे।

उनका संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल जाती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

1990 में एक ट्रेजडी ने दोनों को एकदम खामोश कर दिया. जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक का कार हादसे में निधन हो गया. इस वजह से जगजीत सिंह छह महीने तक एकदम खामोश हो गए जबकि चित्रा सिंह इस हादसे से कभी उबर नहीं पाईं और उन्होंने गायकी छोड़ दी. लेकिन जगजीत ने कुछ समय बाद खुद को संभाला और इस हादसे के बाद गाई गईं उनकी गजलों में बेटे को खो देने का दर्द साफ झलकता था।

जब  से उनके बेटे विवेक की सड़क दुर्घटना में मौत हुई उसके बाद से उनकी आवाज में ऐसा  दर्द पैदा हो गया कि वो सब पर भारी पड़ने लगे थे।इसलिए उन्हें किंग आफ गजल भी कहा जाता है। 1987 से जगजीत सिंह को सुनने का चश्का लगा था। अब तो मैं उन्हें सुने बिना नहीं रह सकता। उनकी आवाज में गजब की मिठास है । उनकी आवाज में गले का उतार चढ़ाव शायद मेहंदी हसन व गुलाम अली जैसा नहीं है लेकिन फिर भी उनकी आवाज ऐसी है जो सीधी दिल से निकल कर दिल तक पहुंच जाती है।

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उनके सारे एलबम लाजवाब हैं। खासकर इनसर्च, इनसाइट में निदा फाजली के प्यारे दोहे। मिर्जा गालिब, फेस टू फेस। गुलजार के साथ जगजीत सिंह की जुगलबंदी लाजवाब थी। इस जोड़ी ने बहुत ही मधुर गजलें दी हैं। इन्होंने तथा पकंज उदास ने गजलों को एलीट क्लास के बंगलों से बाहर निकाल कर मध्य वर्ग के छोटे घरों और फ्लैट तक पहुंचाया। जगजीत सिंह की कई गजलें फिल्मों में भी ली गई हैं जैसे अर्थ और साथ-साथ तथा प्रेम गीत का होठोँ से छू लो गीत।

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मेरा सौभाग्य रहा कि दो बार जगजीत सिंह का लाइव कंसर्ट सुने का मौका मिला। गजल के बादशाह कहे जानेवाले जगजीत सिंह का 10 अक्टूबर २०११ की सुबह 8 बजे मुंबई में देहांत हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज होने के कारण 23 सितम्बर को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। ब्रेन हैमरेज होने के बाद जगजीत सिंह की सर्जरी की गई, जिसके बाद से ही उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। वे तबसे आईसीयू वॉर्ड में ही भर्ती थे। जिस दिन उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ, उस दिन वे सुप्रसिद्ध गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे। जगजीत सिंह को सन 2003 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। फरवरी 2014 में आपके सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी किए गए।

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उनकी कुछ यादगार गजलें

  • ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
  • प्रेम गीत (होठों से छू लो तुम)
  • साथ-साथ (तुमको देखा तो ये)
  • अर्थ (झुकी झुकी सी नजर)
  • तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
  • हम तो हैं परदेस में, देश में निकला होगा चांद
  • सुना था कि वो आएंगे अंजुमन में
  • दोनों के दिल हैं मजबूर प्यार में
  • घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
  • दुश्मन (चिट्ठी ना कोई संदेश)
  • साथ-साथ (प्यार मुझसे जो किया)
  • अर्थ (तुम इतना जो मुस्कुरा)
  • सरफरोश (होश वालों को खबर)
  • जॉगर्स पार्क (बड़ी नाजुक)
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