मुलायम सिंह यादव के बयान से विपक्ष को बड़ा झटका लगने की आशंका

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लखनऊ। सियासी हलकों में चर्चाएं शुरू हो गईं हैं कि पीएम मोदी पर मुलायम यादव के उमड़े प्रेम का राज क्या है? कहीं उनके भतीजे तेज प्रताप यादव की शादी में शरीक होना तो नहीं। अथवा सीएम आदित्यनाथ योगी के शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी का आत्मीयता जताना तो नहीं है। 1990 के दशक में बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम यादव ने सेकुलर फेस होने का पुख्ता प्रमाण दिये थे। लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोक कर उन्हें मसानजोर जेल भेजा था। वहीं, मुलायम यादव ने भाजपा और विहिप के निहत्थे कारसेवकों पर दो-दो बार गोलियां चलवाईं थीं। जिसमें कई कारसेवक मौत के घाट उतार दिये गये थे। इस घटना पर मुलायम यादव ने कभी भी अफसोस नहीं जताया। इन दोनों घटनाओं ने मुसलमान समुदाय का लालू व मुलायम का दिवाना बना दिया। मौजूं सवाल यह है कि आखिर 12 फरवरी को सदन में भाजपा सरकार को फिर से सत्तारूढ़ होने का आशीर्वाद मुलायम ने क्यों दिया। खासकर तब, जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिये यह वक्त मुखर होने का है।

क्या मुलायम यादव बदल गए हैं या उनकी विचारधारा बदल गई है? पूर्व रक्षामंत्री मुलायम यादव ने बुधवार को लोकसभा में सभी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर के चौंका दिया। यह कह कर कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने कहा, पीएम को बधाई देना चाहता हूं कि आपने सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया है और इसमें आप सफल भी हुए हैं।  मैं चाहता हूं कि सारे सदस्य फिर से जीत कर आएं और आप दोबारा प्रधानमंत्री बनें। मुलायम ने जब यह कहा, तो उनके ठीक बगल में बैठीं यूपीए मुखिया सोनिया गांधी भी असहज हो गईं।

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असहजता की स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई कि जब देशभर में विपक्षी दल नरेंद्र मोदी नीत भाजपा सरकार की घेराबंदी व नकेल कसने के लिए एकजुट हो रहे हैं। उसी दिन दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर मेगा रैली में जुट कर एकता का प्रदर्शन चल रहा हो, तब मुलायम ने ऐसा क्यों कहा।

हालांकि लोकसभा से बाहर निकलने के बाद मुलायम यादव ने कहा कि वो तो यूं ही बोल दिया था। धुरंधर तिकड़मबाज मुलायम यादव का नरेंद्र मोदी के प्रति ऐसी कामना के पीछे महज सियासी सदाशयता नहीं है। यह एक बड़ी चाल है, जिसे समझने का प्रयास सियासी पंडित कर रहे हैं। वे सदन के बाहर भी ऐसा कह सकते थे, लेकिन यह तय है कि ऐसी सुर्खियां नहीं मिलतीं।

सियासी हलकों में चर्चाएं शुरू हो गईं हैं कि पीएम मोदी पर मुलायम यादव के उमड़े प्रेम का राज क्या है? कहीं उनके भतीजे तेज प्रताप यादव की शादी में शरीक होना तो नहीं। अथवा सीएम आदित्यनाथ योगी के शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी का आत्मीयता जताना तो नहीं है। दरअसल सियासत में व्यक्तिगत रिश्ते की अहमियत नहीं होती है। मसलन राजनेता एक-दूसरे के घर शादी-विवाह में खूब जाते हैं और मस्ती भी करते हैं, लेकिन इससे सियासत की चाबुक कमजोर नहीं होती है। बल्कि वक्त देख कर निशाने बनाने से भी नहीं चूकती है।

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क्या मुलायम यादव सचमुच चाहते हैं कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें या उनकी जुबान फिसल गई थी? मुलायम यादव के ऐसा कहने से उत्तर प्रदेश के 14.45 फीसदी मुसलमान वोट कहीं बिदक तो नहीं जायेंगे। क्या वे अपने बेटे अखिलेश यादव से तंग आ चुके हैं अथवा सपा-बसपा गठबंधन से नाखुश हैं। इन सवालों का जवाब तो खुद मुलायम यादव ही दे सकते हैं, फिर भी उनको नजदीक से जाननेवाले बताते हैं कि वे पारिवारिक समस्या से खिन्न हैं।

परिवार के अंदर अनुशासन नहीं रहा। अब कोई उनसे सलाह-मशविरा नहीं करता और उन्हें आउट आफ डेट समझने लगा है। जो भी हो, यह सही है कि वह कभी अखिलेश यादव को हारते हुए नहीं देख सकते।

कुछ लोग उनके बयान के पीछे का कारण कुछ और मानते हैं।  मुलायम यादव परिवार के खिलाफ सीबीआई में चल रहा आय से अधिक संपत्ति (डीए) का मामला है, जो पिछले पांच साल से ठंडे बस्ते में ही है। जिसके कारण वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रगुजार माने जाते हैं। दरअसल सीबीआई ने 2000 से 2005 के बीच उनके परिवार के सभी सदस्यो के आयकर रिटर्न की जांच की, जिनमें उनकी घोषित आय से 2.68 करोड़ रुपये की संपत्ति ज्यादा पाई गई थी।

2008 में जब भारत-अमेरिका परमाणु सौदे को लेकर वाम दलों ने मनमोहन सिंह नीत कांग्रेस सरकार से जब समर्थन वापस ले लिया था तो उस समय कांग्रेस के लिए  मुलायम यादव संकट मोचक साबित हुए थे। माना जाता है कि  उसी के कारण मनमोहन सरकार के इशारे पर सीबीआई ने 2014 तक डीए मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। कमोबेश नरेंद्र मोदी सरकार में भी यही यथास्थिति क़ायम रही। इन दस सालों के दौरान सीबीआई ने इस मामले को बंद करने के लिए अदालत में दरख्वास्त भी नहीं दी है। यानी यादव परिवार पर कार्रवाई की तलवार अभी भी लटकी हुई है।

हालांकि कुछ लोग इससे इत्तफाक नहीं रखते। उन लोगों का मानना है कि ऐसा मामला कांग्रेस, बसपा, राजद, तृणमूल समेत कई पार्टियों पर है। तो इससे सियासत की धार को कुंद नहीं की जा सकती। चूंकि वहां सब कुछ सत्ता हासिल करने के बाद ही किया जा सकता है।

जब सदन में पक्ष-विपक्ष में वार-पलटवार चल रहे हों, उस हालत में मुलायम यादव का बयान ने पूरे विपक्ष को फ्रंटफूट से एका एक बैकफुट पर खड़ा कर दिया। जब मुलायम यादव ने विपक्ष की ओर इशारा करते हुए लोकसभा चुनावों में उसको फिर बहुमत नहीं मिलने की भी बात कही। मुलायम ने जब मोदी के दोबारा पीएम बनने की कामना की, तो विरोधी बेंच पर सन्नाटा पसर गया था। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने जय श्रीराम के नारे लगा कर मेजें थपथपा कर वाहवाही लूटी। मुलायम यादव के इस वाकया को मुसलमान समुदाय किस तरह से नोटिस लेगा, यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी। हालांकि उत्तर प्रदेश में 30 वर्ष पूर्व खोई अपनी जमीन की तलाश में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को मोर्चे की कमान थमा दी है तो मुसलमानों का मुलायम के बाद कांग्रेस के पाले में जाना स्वाभाविक लगता है।

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