ममता की सियासी इंजीनियरिंग से कांग्रेस व वामपंथियों को झटका

0
298
ममता बनर्जी ने टीएमसी का घोषणापत्र आज जारी कर दिया। घोषणापत्र एक तरह से वादों का 'पिटारा' है। घर-घर राशन यानी डोर डिलीवरी का वादा किया है।
ममता बनर्जी ने टीएमसी का घोषणापत्र आज जारी कर दिया। घोषणापत्र एक तरह से वादों का 'पिटारा' है। घर-घर राशन यानी डोर डिलीवरी का वादा किया है।
  • राणा अमरेश सिंह

कोलकाता। पूर्वी भारत में लोकसभा सीटों के हिसाब से पश्चिम बंगाल अहमियत वाला सूबा माना जाता है। इस बार बंगाल की खाड़ी से उठी सियासी लहर से बिहार, उत्तर प्रदेश समेत दिल्ली भी चपेट में आ सकते हैं। केंद्र में आसीन भाजपा सरकार को कोलकाता से अच्छी आस बंधी है, ताकि उत्तर प्रदेश व बिहार की क्षतिपूर्ति की भरपाई बंगाल से की जा सके। वहीं, सीएम ममता बनर्जी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला कर रही है। इसके सियासी फायदे तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों  को एक साथ मिलते दिख रहे हैं। जहां ममता बनर्जी के पक्ष में मुसलमानों के अलावा दलित और निम्न मध्य वर्गीय वोटर एकजुट हो रहे हैं, वहीं भाजपा के पक्ष में गैर मुसलमानों की तादाद है, जो सरकार की तुष्टीकरण की नीति से आजिज आ चुकी है। इस प्रकार वोटों का ध्रुवीकारण मात्र दो केंद्रों पर ही होता दिख रहा है। इससे कांग्रेस व वामपंथी दलों को झटका लग सकता है। ममता बनर्जी एक चतुर पालिटिशियन की तरह सोच समझ कर चलती दिख रही है। वे नरेंद्र मोदी के विरोध में तीखे हमले कर गैर भाजपा दलों में पीएम फेस की दावेदारी का सपना भी पाल रही हैं। वैसे भी वाम दल और कांग्रेस ने ममता से इतर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच जारी वार-पलटवार ने बांग्ला मानुष को दो ध्रुवों के खांचे में बांट दिया है। ममता बनर्जी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रथयात्रा रोक कर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के हेलीकाप्टर को उतरने की इजाजत न देकर अल्पसंख्यक समुदाय में अपनी भाजपा विरोधी तेवर का संदेश दिया है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 फरवरी को पश्चिम बंगाल के ठाकुरनगर और दुर्गापुर की रैलियों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जम कर हमले किये थे।

- Advertisement -

प्रधानमंत्री की रैली खत्म होने के बाद ममता बनर्जी ने पलटवार करते हुए कहा था कि एक महीने के बाद उनका (नरेंद्र मोदी) कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, लेकिन वे सत्ता से बाहर होने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। फिर दुर्गापुर रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी सरकार की तुलना वामपंथी सरकार से करते हुए इस बार उनका पश्चिम बंगाल की सत्ता से जाना तय बता कर भाजपा समर्थकों का हौसला बढ़ाया था।

ठाकुर नगर की रैली में नरेंद्र मोदी ने स्थानीय मतुआ समुदाय से जुड़े संवेदनशील मुद्दे को उठा कर ममता को घेरने का प्रयास किया। उन्होंने ममता बनर्जी से नागरिकता संशोधन विधेयक को सदन में पास कराने के लिए समर्थन की मांग कर डाली, ताकि मतुआ समुदाय के प्रति उनकी नीति का खुलासा किया जा सके। इसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ठुकराते हुए कहा कि वे इस विधेयक की विरोधी हैं और प्रधानमंत्री को यह विधेयक वापस लेना ही होगा।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि मतुआ समुदाय के लोग 50 के दशक में बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी राज्यों से भारत में सांप्रदायिक हिंसा से आक्रांत होकर भारत आये थे और ये तृणमूल कांग्रेस के समर्थक माने जाते हैं।  प्रदेश भाजपा इकाई ने ठाकुर नगर रैली का आयोजन आल इंडिया मतुआ महासंघ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया था। नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर मतुआ समुदाय के नेता शंतनु ठाकुर और छविरानी ठाकुर उपस्थित थे।

बताते चलें कि मतुआ समुदाय की जनसंख्या उत्तर 24 परगना के आसपास के जिलों में करीब 30 लाख बतायी जाती हैं, जो 6 लोकसभा संसदीय क्षेत्रों में चुनावी गणित को बनाने-बिगाड़ने की कुब्बत रखते हैं। इस रैली में नरेंद्र मोदी को देखने-सुनने वालों का जमावड़ा इतना हो गया था कि उन्हें अपना भाषण 15 मिनट में ही खत्म करना पडा था। इससे इस क्षेत्र में भाजपा के बढ़ते जनाधार का संकेत मिलता है।

पॉलिटिकल ड्रामा का फायदा किसको?

कोलकाता में 3 फरवरी को सारधा चिटफंड घोटाले में एसआईटी जांच के प्रमुख रहे राजीव कुमार से सीबीआई पूछताछ को लेकर ममता बनर्जी द्वारा भाजपा के विरोध ने सियासी गलियारे में गर्माहट पैदा कर दी। सियासी पंडितों की मानें तो इससे ममता बनर्जी को इससे फायदा मिलेगा।  इससे बंगालियों में एक मैसेज जाएगा कि ममता मजबूत हुई हैं और पीएम मोदी को भी धता बता सकती हैं। वह इसे सीधे तौर पर बंगाली अस्मिता से जोड़ेंगी और उनकी जनता को भी लगेगा कि दीदी ने पुलिस कमिश्नर के घर में सीबीआइ को भी नहीं घुसने दिया। वहां से भगा दिया। कुल मिला कर ममता ने खूब गुणा-भाग करके यह बड़ा दांव खेला है।

यह भी पढ़ेंः इधर डीजीपी गरज रहे थे, उधर बदमाश गोलियां बरसा रहे थे

यह भी पढ़ेंः सरस्वती काल्पनिक देवी नहीं, प्राचीन सरस्वती नदी का मानवीकरण है

दूसरी तरफ इस चिटफंड घोटाले में लाखों लोगों के करोड़ों रुपये डूबे हैं। अगर भाजपा सरकार उन लोगों पर शिकंजा कस रही तो ममता बनर्जी के विरोध को ठगे गये लोग कैसे जायज स्वीकारेंगे। इसका फायदा भाजपा को भी मिल सकता है।

ममता के शोर में वामपंथी व कांग्रेस की आवाज गोल!

कोलकाता के धर्मतल्ला स्थित मेट्रो स्टेशन पर रात 8.30 बजे ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। उसी दिन वहां बिग्रेड मैदान में माकपा की रैली हुई थीं। रैली शानदार होने के बावजूद ममता के मेट्रो पर धरने के शोर में गुम हो गयी और मीडिया में सही कवरेज पाने से वाम दल की आवाज दब गयी। इस मामले में समूचा विपक्ष ममता के साथ खड़ा दिखा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राजद नेता तेजस्वी यादव भी ममता के समर्थन में दिखे।

बंगाल और देश में भाजपा के लिए मुसीबत

बंगाल में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप ममता बनर्जी ही खड़ी हैं। भाजपा को यहां समर्थन तो दिख रहा है, लेकिन यह जमीनी स्तर पर कितना है, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।  फिर भी इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं कि बंगाल में हिंदू पोलराइज हुए हैं।

यह भी पढ़ेंः प्रियंका गांधी की एंट्री से भाजपा में खलबली, मगर महागठबंधन में चुप्पी

यह भी पढ़ेंः कुछ ही देर में बिहार का 10 वीं बार बजट पेश करेंगे सुशील मोदी 

- Advertisement -