- के. विक्रम राव
कांग्रेस 2014 चुनाव से पोलियोग्रस्त थी। वेंटिलेटर पर रही। आज दो बूँद (तीन राज्यों से) मिले तो आईसीयू में लौट आई। मगर हिचकी अभी थमी नहीं। उपचार पूरा नहीं हुआ। कारण यही कि गुत्थी उलझी है कि मुख्यमंत्री कैसा हो? सोनिया गांधी युवा रक्त चाहती हैं। फिर प्रश्न है कि मुख्यमंत्री की कालावधि कितनी होगी? मगर दुश्वारी बढ़ी, क्योंकि स्पष्ट बहुमत न देकर वोटरों ने भी मात्र अंगूठी पहना दी है। सप्तपदी रोक दी।
बदलाव तो अवश्यम्भावी था। कांग्रेस को बस फूल-नगाड़ा लाना था। सोलहवां साल लगने की आस लगाये बैठे थे भाजपायी। ये तीनों भाजपायी मुख्यमंत्री तीन (पंद्रह वर्ष) बार से ही संतुष्ट हो जाते तो मर्यादा रहती। कांग्रेसी तो जानते थे कि बदलाव होना है। क्योंकि घुरहू के भी दिन बारह बरस के बाद बहुरते हैं। भाजपा तो पंद्रह साल सत्ता में बिता चुकी थी।
भाजपा की दुर्गति का मात्र श्रेय अमित शाह की घमंडभरी बेफिक्री तथा अरुण जेटली की तंग जेहनी को जाता है। लेकिन ठीकरा तो मोदी के सिर पर ही फूटना है, क्योंकि उनके ऊपर कोई है नहीं। ये तीनों भाजपायी सोचते थे कि पप्पू को इस बार टपका देंगे, तो 2019 का संकट ख़त्म हो जायेगा। उलटा पड़ा पासा। राहुल बोले, “मैंने मोदी को देखकर जान लिया कि घमंड बुरी बला है।” अर्थात् अब कुछ तो राष्ट्र का भला राहुल करेंगे ही।
इन मतदानों का विशलेषण किया जाये। कुछ “विशेषज्ञ” लेखक इसे नरेंद्र मोदी के अगले चुनाव के लिये घोर आपदा बतायेंगे। ऐसी बात बुद्धि के परे है। दोनों सर्वथा असंगत और अनमेल पहलू है। राजस्थान में लगे चुनावी नारों का निहितार्थ यह था, “मोदी तुमसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं।” बमुश्किल वसुंधरा राजे स्वयं जीती हैं। रमण सिंह ने तार्किकता दर्शायी। बोले, “पंद्रह वर्ष मेरी वजह से जीते थे। अतः इस बार हारे तो मेरी ही वजह से।” वर्ना वही कांग्रेसी फरेबी सूत्र बना सकते थे कि लोकसभा चुनाव हारे थे तो पार्टी की कमजोरी से, और अब विधानसभा जीते पार्टी मुखिया की वजह से। वाह, चित्त-पट्ट दोनों माँ-बेटे के!
इसका प्रमाण तेलंगाना है। मेडची में सोनिया गांधी की विशाल जनसभा हुई थी। फिर भी उनका पार्टी प्रत्याशी बुरी तरह हारा। उनके कांग्रेस विधायक मंडल दल के नेता के. जनार्दन रेड्डी अपनी नागार्जुन सागर सीट खो बैठे। अब कोई विश्लेषक कहे कि राहुल गांधी को मोदी का प्रतिद्वंद्वी और अगले प्रधानमंत्री के रूप में कोई पेश करे तो इस विचार पर भी गौर कर लिया जाय। तेलुगु देशम पार्टी के कर्णधार चंद्रबाबू नायडू का दावा रहा कि देवेगौड़ा, इंद्र गुजराल, पिछली बार अटल विहारी वाजपेयी आदि को प्रधानमंत्री बनाने में टीडीपी सांसदों का रोल मुख्य था। इस बार यही चंद्रबाबू नायडू ने राहुल गांधी के साथ मिलकर महाकुटमी (महा गठबंधन) बनाया कि भारत को भाजपा मुक्त-बनाने की मुहिम तेज हो। अंजाम में टीडीपी और कांग्रेस ने धूल चाटी। पीपुल्स फ्रंट (जनमोर्चा) रचा, मगर जनता तो चन्द्रशेखर राव के साथ चली गयी। राहुल का अभियान था कि चंद्रशेखर राव अपने पुत्र के. टी. रामा राव और भतीजे टी. हरीश राव को विधायक बनाकर परिवारवाद फैला रहे हैं। ये दोनों बम्पर वोटो से जीते। अर्थात चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में बने राष्ट्रीयस्तर के मोदी-विरोधी महागठबंधन को गोदावरी तट पर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने पंचर कर दिया। पड़ोसी आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस का नामलेवा कोई नहीं है। उधर पश्चिम बंगाल में शेरनी ममता बनर्जी के पिछवाड़े पुराने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट येचुरी सेंध लगा रहे हैं।
पूर्वोत्तर में कांग्रेस का एकमात्र राज्य था मिजोरम। गत सप्ताह राहुल के हाथों से वह भी फिसल गया। आज से समूचा पूर्वोत्तर भारत कांग्रेसमुक्त हो गया है। भूमिगत विप्लवी गुरिल्ला योद्धा जोरमथंगा ने कांग्रेस के दस वर्ष के राज को उनके 80-वर्षीय मुख्यमंत्री लालथनहवला को हटाकर खत्म कर दिया है। पूर्वोत्तर के आठों राज्यों से पंजा चुनाव चिन्ह मिट गया।
देश के बत्तीस राज्यों में अबतक केवल डेढ़ में (पंजाब तथा पुदुचेरी) राज करने वाली राहुल-कांग्रेस अब छत्तीसगढ़ को मिलाकर ढाई प्रदेशों में सत्ता पर आई है। कर्नाटक की भांति मध्य प्रदेश और राजस्थान में अब राहुल-कांग्रेस साझा सरकार बनाकर, भारत के मात्र बीसवें भाग पर अपना तिरंगा लहरा पायेगी। राहुल को जुगराफिया नए सिरे से पढ़ना होगा।
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अब ये भाजपाइयों पर अरुण जेटली जितने दिन और रहेंगे, वे मोदी का जनाधार कुतरते रहेंगे। रिज़र्व बैंक समस्या, दोषपूर्ण कर व्यवस्था, जीएसटी, किसान ऋणमुक्ति का घटिया क्रियान्वयन, पूँजीशाहों की झोली भरना आदि से भाजपा को वे नहीं बचायेंगे तो पार्टी और सरकार को डुबाते जायेंगे। अमित शाह का अहंकार अरुण जेटली का टेक है। क्या जोड़ी है! त्रिपुरा में दशकों से पैठे हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्टों को उखाड़कर अमित शाह समझ बैठे थे कि तेलंगाना में 170 जनसभाएं संबोधित कर के चौथी सदी के शातवाहन और काकतीय साम्राज्यों द्वारा परिपालित जनता को बरगला लेंगे? तेलंगाना के लोग खिलजी, बहमनी, दिल्ली सल्तनत आदि से टकरा चुके हैं। अमित शाह का गुजरात तो सुल्तान अहमद शाह से ही पराजित होकर आठ सदियों तक गुलाम रहा।
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इतनी पराजय के बाद भी भाजपा की खास कमजोरी रही है कि वह हिन्दू बहुसंख्यकों की हितकारी कार्ययोजना नहीं चला पायी। मसलन राहुल-कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में गौशाला की स्थापना, गोमूत्र उत्पाद, राम वनगमन पथ का निर्माण आदि को चुनावी वादा पत्र में शामिल किया। राहुल गांधी ने अपना जनेऊ कई बार बदला, हिन्दू भगवान के हर अवतार की पूजा की, केदारनाथ धाम से कैलाश-मानसरोवर और पुष्कर तीर्थ तक गये। उनकी दादी के पिता ने सोमनाथ के मंदिर के जीर्णोद्धार का विरोध किया था, राहुल वहाँ भी गये। ईसाई माँ और पारसी पिता का बेटा राहुल गांधी कर्मणा हिंदुत्व में ढल गया। वे उदार हिन्दू हो गये, जो नाग को भी दूध पिलाता है। अंततः हिंदू वोटर पिघलेगा ही। परिणाम में तीनों राज्यों के बहुसंख्यक वोटर विभाजित हो गये। परिणामों से यही परिलक्षित होता है। (फेसबुक वाल से साभार)
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