बिहार में सवर्ण आरक्षण के लिए बनेगा कानून, विधेयक अगले सत्र में

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अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं
अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं

पटना। बिहार सरकार ने सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का अंततः निर्णय ले लिया। मंगलवार को इस बारे में मुख्यमंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक कर इसके कानूनी पहलुओं की जानकारी ली। अंततः तय हुआ कि विधानमंडल के अगले सत्र में यह प्रस्ताव पेश किया जायेगा, ताकि इसे कानून की शक्ल दी जा सके। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य सरकार की नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान लागू करने के संदर्भ में उच्चस्तरीय विमर्श किया। महाधिवक्ता ललित किशोर के कानूनी परामर्श के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि राज्य सरकार की नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में गरीब सवर्णों को 10 फ्रतिशत आरक्षण का प्रावधान लागू करने के लिए अलग से अधिनियम बनाना आवश्यक है।

मुख्यमंत्री ने अधिनियम बनाने हेतु अपर मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन आमिर सुबहानी को निर्देश दिया कि उक्त अधिनियम को फरवनरी माह में आरंभ हो रहे विधानमंडल सत्र में प्रस्तुत करने की कार्रवाई सुनिश्चित की जाये। इस बारे में सभी प्रक्रियाएं फरवरी माह के भीतर ही पूर्ण कर ली जायें।

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा था कि संविधान संशोधन के द्वारा केंद्रीय सेवाओं में सवर्ण आरक्षण को लागू किया गया है। पहले के दिए गए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग के आरक्षण की सीमा को बिना किसी छेड़छाड़ के इसे लागू किया गया है। उन्होंने घोषमा की थी कि बिहार राज्य में भी सवर्णों के लिए आरक्षण लागू किया जाएगा। इसके लिए कानूनी सलाह ली जा रही है कि इसे एक्ट बनाकर लागू किया जाए या एक्जक्यूटिव ऑर्डर के द्वारा ही लागू किया जा सकता है।

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मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। यह अच्छी बात होगी। वर्ष 1931 में अंतिम बार जाति आधारित जनगणना हुई थी। उसके बाद से यह नहीं हुई है। आबादी के अनुरूप अगर लोगों को आरक्षण लेने का निर्णय किया जाता है तो यह भी अच्छा होगा। जो तबका आरक्षण से वंचित रहता है, वो भी सामने आएगा।

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