बीजेपी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से क्यों डरती है, ये हैं कारण

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  • शेषनारायण सिंह

उत्तर प्रदेश में बीजेपी का सीधा मुकाबला सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से है तो बीजेपी के मुख्य निशाने पर कांग्रेस क्यों है? उसका सीधा कारण यह है कि बीजेपी को ख़तरा है कि कांग्रेस उसके सवर्ण वोट शेयर को कम कर देगी। यह देखा  गया है कि उत्तर प्रदेश में गैर मुस्लिम सवर्णों के वोट 22 प्रतिशत हैं (स्रोत- राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे 2015-16)। बीजेपी और कांग्रेस को इसी 22 प्रतिशत वोट में हिस्सा बटाना होगा।

जहां सपा-बसपा-रालोद का सवर्ण उम्मीदवार होगा, वहां इसमें से कुछ वोट उसको भी मिल सकते हैं, वरना इस वर्ग का वोट बीजेपी और कांग्रेस को ही मिलता है। 22 प्रतिशत के इस ब्लाक से कांग्रेस  को जितने वोट मिलेंगे, बीजेपी के उतने ही कम हो जायेंगे। सपा-बसपा-रालोद का संयुक्त वोट भी 42 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है। (ऐसा पिछले कई चुनावों को देख कर कहा जा सकता है)। 2014 में बीजेपी का भी लगभग उतना ही वोट था। अगर इस 22 प्रतिशत में से कांग्रेस ने ज्यादा वोट खींच लिया तो उसको सीट तो शायद ज्यादा न मिले, लेकिन बीजेपी को कमजोर करने में  निश्चित भूमिका होगी।

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अगर कहीं प्रियंका गांधी के अभियान के कारण बड़ी संख्या में सवर्ण  वोट कांग्रेस के खाते में चला गया तो बीजेपी 42 प्रतिशत से नीचे आ जायेगी। ऐसी हालत में उसके लिए उत्तर प्रदेश का अपना किला संभाल पाना मुश्किल होगा और यही कारण है कि बीजेपी का हमला कांग्रेस पर ज्यादा रहता  है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रख कर बीजेपी को उत्तर प्रदेश में कमज़ोर करने की कोई रणनीति काम कर रही है और साज़िश में  कांग्रेस भी  शामिल है।

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लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कोई हैसियत नहीं है, लेकिन वह बीजेपी के खिलाफ उभरे विपक्ष के गठबंधन के पक्ष में हवा बना सकती है। एक उदाहरण सुल्तानपुर को ले सकते हैं। सुल्तानपुर में ठाकुरों के कुछ वोट बीजेपी से छिटक कर कांग्रेस के खाते में पक्का जा रहे हैं। ऐसा साफ नजर आ रहा  है। संजय सिंह की उम्मीदवारी और सुल्तानपुर में प्रियंका गांधी के बड़ी संख्या में मौजूद प्रशंसक इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। हो सकता है अन्य जिलों में भी यही स्थिति हो।

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