विंटेज ब्यूटी के नाम से मशहूर हो गयी थीं शकीला 

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  • वीर विनोद छाबड़ा 

शकीला। खूबसूरत और ज़हीन। ब्लैक एंड व्हाइट इरा की रूहानी ब्यूटी। रूठी-रूठी सी मनुहार भरी अदाएं। सीधी-सादी भी और अपनी सेक्सी अदाओं से बहका भी दे। उन्हें खुद को एक्सप्रेस करने के लिए शब्द नहीं बोलने पड़ते थे। जिसने गुरुदत्त की ‘आर-पार’ (1954) देखी है, उसे शकीला ज़रूर अच्छी तरह याद होगी- ओ बाबू जी, धीरे चलना, प्यार में संभलना, बड़े धोखे हैं इस राह में…ये गाना तो सरहदों के पार भी गली-गली में पॉपुलर हुआ। शकीला छा गयी। आज 64 साल भी ज़ुबां पर है। इतना अरसा तो काफी होता है, किसी को स्मृति पटल से विस्मृत करने के लिए, मिटा देने के लिए। मगर संगीत तो वो जादू है, जिसकी हस्ती मिटती नहीं। सिर्फ इतना ही नहीं परदे पर थिरक रही शकीला का चेहरा भी आज तक याद है। जिसने न देखा हो, यू-ट्यूब पर देख ले। अलीबाबा मरजीना, मस्त कलंदर, पैसा ही पैसा, आगरा रोड,  गेस्ट हाउस, काली टोपी लाल रुमाल, स्कूल मास्टर, अब्दुल्ला, बारात, नकली नवाब, टावर हॉउस, मुल्ज़िम। उस दौर के लगभग सभी टॉप आर्टिस्ट उनके हीरो रहे। देवानंद (सीआईडी), राजकपूर (श्रीमान सत्यवादी), सुनील दत्त (पोस्ट बॉक्स 999), शम्मी कपूर (चाइना टाउन), अजीत (टावर हाउस), मनोज कुमार (रेशमी रुमाल), जयराज (हातिमताई), प्रदीप कुमार (मुल्ज़िम, उस्तादों के उस्ताद)।

1 जनवरी 1935 को जन्मी शकीला ने 1949 में ‘दुनिया’ से फ़िल्म संसार में कदम रखा था। उनकी प्रेरणेता थीं उनकी एक करीबी रिश्तेदार, जो बरसों तक उनका फ़िल्मी कारोबार देखती रहीं। दास्तान, अरमान आदि कुछ फ़िल्में और कीं। लेकिन पहचान बनी गुरुदत्त की ‘आर-पार’। इसमें वो एक डांसर थी। लाईन लग गयी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स की। लेकिन उन्होंने लेफ्ट-राईट-सेंटर फिल्मों में साइन नहीं किया, सेलेक्टिव रहीं।

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शकीला में भरपूर टैलेंट था, इससे किसी को इंकार नहीं रहा। उनकी अदाकारी की समीक्षक तारीफ़ किया करते थे। कई फिल्मों में लीड रोल किया, लेकिन बावजूद इसके उन्हें कोई ऐसी फिल्म नहीं मिली, जो उनको ज़हन में रख कर लिखी गयी, हीरो पर भारी पड़ी हों। न उनमें मीना जैसी संभावनाएं तलाशी गयीं और न नूतन जैसी। मगर उनकी याद उन पर फिल्माए गानों की वज़ह से आज भी बनी हुई है। नींद न मुझको आये, कोई आके सोया प्यार जगाये…(पोस्ट बॉक्स 999), बार बार देखो, हज़ार बार देखो…(चाइना टाउन), ऐ मेरे दिले नादां तू ग़म से घबराना…(टावर हॉउस), आँखों ही आँखों में ईशारा हो गया…बूझ मेरा क्या नाम रे…लेके पहला पहला प्यार…(सीआईडी), दीवाना कह के आज मुझे फिर पुकारिये…(मुल्ज़िम), सौ बार जन्म लेंगे…(उस्तादों के उस्ताद)., मैं खुशनसीब हूँ, मुझको किसी का प्यार मिला…(टावर हाउस), लागी छूटे न अब तो सनम…(काली टोपी लाल रुमाल), ज़ुल्फ़ों की घटा लेके सावन की कली आयी…(रेशमी रुमाल)।

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शकीला की निज़ी ज़िंदगी बहुत ट्रेजिक रही। 1963 में एक विदेशी जॉनी बार्बर शादी करके वो फिल्मों को बॉय-बॉय कर जर्मनी चली गयीं। पति से पटरी नहीं खाई। तलाक़ हुआ। हिंदुस्तान वापस आ गयीं। कुछ अरसे बाद दोबारा शादी की। ये भी क़ामयाब नहीं रही। एकमात्र बेटी ने 1991 में ख़ुदकुशी कर ली। टूट गयीं। वो वहीदा रहमान की पक्की सहेली थीं। जब वहीदा का ‘सीआईडी’ में डेब्यू हुआ था तो शकीला उसमें हीरोइन थीं। हॉस्पिटल में भर्ती बीमार अपनी सीनियर शकीला को देखने गयी वहीदा ने शिकायत कि अब तुम मुझे वक्त बिलकुल नहीं देती हो। शकीला ने वादा किया, जल्दी ही आऊंगी। 20 सितंबर 2012 को एक ज़बरदस्त हार्ट अटैक शकीला के प्राण ले गया। एंड ऑफ़ विंटेज ब्यूटी। वहीदा ने शिकायत की, शकीला ने वादा नहीं निभाया।

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