जब प्यार किया तो डरना क्या..गाना तब हर जुबान पर था

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फिल्म मुगल-ए-आजम का एक दृश्य
फिल्म मुगल-ए-आजम का एक दृश्य
  • वीर विनोद छाबड़ा 

जब प्यार किया तो डरना क्या, छुप-छुप के आहें भरना क्या। यह गीत जन-जन की जुबान पर तैरता रहा है ‘मुगल-ए-आज़म’ के जमाने से। ‘मुगल-ए-आज़म’ में बड़ी मशक्कत के साथ शीश महल का सेट तैयार हो चुका था। कैमरा, लाइट आदि सभी का एडजस्टमेंट हो रहा था। साथ-साथ पेश हो रही  तमाम दुश्वारियों को दूर करने के लिए रास्ते तलाशे जा रहे थे। इस बीच डायरेक्टर के. आसिफ ने म्युजिक डायरेक्टर नौशाद साहब से पूछा, गाना रिकॉर्ड हो गया? नौशाद साहब ने बताया, कल सुबह रिकॉर्डिंग है।

मगर हकीकत ये थी कि अंदर हाल बुरा था। नौशाद साहब परेशान थे। शक़ील बदायुनी का लिखे गाने के मुखड़े से वो कतई मुतमुईन नहीं थे। उन्होंने शक़ील से कहा, शाम घर पर तशरीफ़ ले आएं। मुखड़ा फ़ाइनल करें।

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शाम शक़ील वक़्त पर हाज़िर हो गए। दरवाज़े बंद कर दिए गए, खिड़कियां परदों से ढक दी गयीं, ताकि बाहर की कोई आवाज़ डिस्टर्ब न करे और अंदर की आवाज़ बाहर न जाए। घर में सबको ताक़ीद भी कर दी गयी, कोई भीतर न घुसने पाए। कोई ज़रूरत होगी तो खुद बता दूंगा। और काम शुरू हुआ।

शकील ने सफे पर कुछ लिखा, मगर नौशाद को पसंद नहीं आया। फिर दूसरे और तीसरे सफे पर कुछ लिखा। लेकिन नौशाद साहब बोले, जमा नहीं। कुछ नौशाद साहब ने सुझाया। मगर शक़ील ने नकार दिया। एक के बाद एक फर्श पर भर गया नकारे और फाड़े गए सफों से। शाम से रात हुई और फिर सुबह। इस बीच न कुछ खाया गया और न पीया गया। इसकी फ़िक्र ही नहीं थी। दोनों इल्म के गहरे सागर में गोते पर गोते लगा रहे थे, मुखड़े की तलाश में।

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और आख़िर में अचानक नौशाद साहब को एक पूर्वी गाने का मुखड़ा याद आया, प्रेम किया का कोई चोरी करी…। और शक़ील ने पर बनाया, प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की…। नौशाद साहब ने कई बरस पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि सुबह जब फर्श पर बिखरे सफ़ों की गिनती हुई तो उनकी तादाद 110 निकली।

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और भी बहुत मुश्किलात पेश आयीं थीं इसके पिक्चराइज़ेशन में। ये एक अलग और लंबी दास्तां है। मुख़्तसर में ये जानना ज़रूरी है कि करीब तीस दिन और दस लाख रूपए खर्च हुए थे। इतने रुपयों में चार फिल्में बन जाती थीं उस दौर में। बहरहाल, दुनिया जानती है इस गाने के और इसके जन मानस पर पड़े इसके इफ़ेक्ट के बारे में।

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एक और ख़ास बात। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से आये जनाब ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो उन दिनों बम्बई में थे और के.आसिफ़ के ख़ास दोस्तों में थे। वो इस गाने के पिक्चराइज़ेशन के दौरान हर दिन मौजूद रहे। यूनिट के मेंबर्स के साथ बैठ कर लंच किया और चाय भी पी। अब किसी को क्या मालूम था कि ये बन्दा कुछ साल बाद पाकिस्तान का प्राइम मिनिस्टर बनेगा और फिर क़त्ल के इलज़ाम में फांसी पर भी चढ़ा दिया जाएगा।

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