पासवान व कुशवाहा की पहलवानी का गवाह बनेगा हाजीपुर

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लोजपा सुप्रीमो और रालोसपा प्रमुख की ताकत का अंदाज लगेगा हाजीपुर में

  • पांडेय ब्रजनंदन 

हाजीपुर। बिहार में लोकसभा चुनाव का परिणाम चाहे जैसा आये, लेकिन वैशाली जिले के दो शीर्ष नेताओं की प्रतिष्ठा अवश्य दांव पर लगी है। एक है लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान, जो हाजीपुर को अपनी मां की तरह मानते हैं और दूसरे हैं रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा, जिनकी जन्मभूमि हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में है। यह तय है कि चुनावी अखाड़े में दोनों दल आमने-सामने खड़े रहेंगे। पिछली बार दोनों ने साथ मिल कर लड़ा था और सम्मिलित ताकत से एनडीए का विजय पताका फहराया था।

चुनाव में बिहार में  लोजपा के साथ-साथ रालोसपा में भी  वैकेंसी है। वैकेंसी हैं योग्य, जिताऊ और विश्वसनीय उम्मीदवार की। रालोसपा सुप्रीमो के साथ एक सांसद खड़े हैं और 4 या 5 सीटों पर दावेदारी है। इस परिस्थिति में दो या तीन नए चेहरे रालोसपा के टिकट पर चुनावी अखाड़े में उतरेंगे। वहीं लोजपा सुप्रीमो के चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद हाजीपुर में ही कोई नया चेहरा चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। इसके साथ ही शेष 6 सीटों में से कम से कम दो सीटों पर नए चेहरे को लाने की चर्चाएं तेज हैं।

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बिहार की राजनीति में लगातार बनते-बिगड़ते समीकरणों का असर लोकतंत्र की जन्मस्थली वैशाली में साफ साफ दिख रहा है। वैशाली शुरू से ही राजनीतिक सुर्खियों का केंद्र बिंदु रहा है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान हाजीपुर के सांसद हैं और तीन दशकों से अधिक समय तक उन्होंने यहां का प्रतिनिधित्व किया है। लोजपा की जन्मस्थली इसी कारण हाजीपुर को ही मानी जाती है, क्योंकि लोजपा सुप्रीमो ने हाजीपुर को अपनी मां का दर्जा दिया है। वहीं रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा की जन्मभूमि वैशाली जिले में जंदाहा प्रखंड के जावज गांव में है। पिछले लोकसभा चुनाव के समय लोजपा के साथ-साथ रालोसपा भी एनडीए का घटक दल बनी। तब काफी खींचतान के बाद सीटों का बंटवारा हुआ था तो लोजपा के खाते में 7 सीटें गई और रालोसपा को 3 पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन चुनाव परिणाम  दोनों सुप्रीमो के लिए काफी सुखद रहा। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान  ने 6 सीटें जीतीं, जबकि एक सीट पर  हजार मतों के अंतर से लोजपा प्रत्याशी की हार हुई। वहीं रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा के उम्मीदवार तीनों ही सीटों पर विजयी रहे।

लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान को कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी मिली, जबकि रालोसपा सुप्रीमो को राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन पिछले महीने अचानक राजनीति ने करवट ली। उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से बगावत कर महागठबंधन में जाने का निर्णय लिया। एनडिए में सीटों का बंटवारा होने के बाद लोजपा के खाते में 6 सीटें गई हैं, जबकि लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने राज्यसभा जाने का निर्णय लिया है। वहीं रालोसपा में सीटों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। खरमास के बाद महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर मुहर लगने की संभावना है। आगामी लोकसभा चुनाव में मिली हुई सीटों पर प्रत्याशियों को लड़ाना लोजपा और रालोसपा सुप्रीमो के लिए बड़ी चुनौती है। कारण यह है कि पिछली बार लोजपा के टिकट से विजयी एक सांसद ने खुल कर तो दूसरे ने पर्दे के पीछे से ही बागी तेवर अपना रखा है। इस बीच लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने इस बार खुद लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस परिस्थिति मैं हाजीपुर से प्रत्याशी को लेकर चर्चाएं तेज हैं। परिवार के ही किसी सदस्य को मैदान में उतारे जाने पर मंथन शुरू है। अन्य 3 सीटों पर प्रत्याशी के चयन को लेकर पार्टी  फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। पार्टी उसी को प्रत्याशी बनाना चाहती है, जो विजय का ताज पहनने के बाद ना तो पार्टी विरोधी काम करे और न बीच में ही साथ छोड़े। यही स्थिति रालोसपा में भी है।

पिछले लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद ही रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा से विद्रोह कर सांसद अरुण कुमार अलग हो गए। बाद में दूसरे सांसद ने भी विद्रोही तेवर दिखाना शुरू कर दिया था। वहीं रालोसपा के विधायकों और विधान पार्षदों ने भी उपेंद्र कुशवाहा का साथ छोड़ दिया है। पार्टी में बड़ी संख्या में नए चेहरे शामिल हुए हैं, जिनमें कई कद्दावर भी हैं। लेकिन रालोसपा सुप्रीमो इस बार किसी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहते और महागठबंधन में प्राप्त सीटों पर विश्वसनीय प्रत्याशियों को ही उतारना चाहते हैं। एनडीए और महागठबंधन में सीटों का फैसला होने के बाद यह तय हो पाएगा कि बिहार में लोजपा को कौन-कौन से सीटें मिलती हैं और रालोसपा के खाते में कौन-कौन सीट जाती हैं। सीटों के मिलने के बाद दोनों ही दलों में दोनों सुप्रीमो के लिए प्रत्याशियों का चयन करना एक चुनौती भरा काम जा रहा है। दोनों ही दलों में  विभिन्न सीटों के लिए  ‘एक अनार सौ बीमार ‘ वाली  कहावत चरितार्थ करते हुए  नेताओं और कार्यकर्ताओं की लंबी कतारें हैं। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि जिस तरह से लोजपा और रालोसपा के सांसदों ने विद्रोही तेवर पिछली दिखाएं, इस बार ‘दूध का जला मट्ठा भी फूंक कर पीता है’ नीति अपनाकर चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारे जाएंगे।

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