महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फार्मूला तय, इस तरह बंटेंगी सीटें

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मंथन का दौर खत्म, ऐलान बाकीः कांग्रेस 11, रालोसपा 6, हम को 2 और राजद के हिस्से में 19 सीटें
  • राणा अमरेश सिंह

पटना। बिहार महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के लिए वार-पलटवार का दौर समाप्त हो गया है। कांग्रेस के कद्दावर और राहुल गांधी के विश्वासपात्र अखिलेश प्रताप सिंह और तेजस्वी यादव के बीच सीट शेयरिंग का फार्मूला हल कर लिया गया है। इसकी घोषणा कभी भी की जा सकती है। हालांकि भगदड़ के भय से इसे फरवरी तक रोका गया है। राहुल गांधी की 3 फरवरी की रैली के बाद इसका ऐलान संभव है। बंटावेर के तहत महागठबंधन के सबसे बड़े दल के रूप में राजद को 19 सीटें मिलने की खबर है। वहीं, कांग्रेस को 11 सीटों पर ही संतोष करने पड़ सकता है। रालोसपा को 6 और मांझी को 2 सीटें दी गयी हैं। एक सीट पर शरद यादव की पार्टी चुनाव लड़ेगी। सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी और भाकपा, माले जैसे दलों की सीटें राजद को मिले कोटे से देने की बात है। वैसे दो सीटें अभी इनके लिए ही बचा कर रखी गयी हैं। समझा जाता है पप्पू यादव भी कांग्रेस के कोटे से ही लड़ेंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच कई बार बिहार और उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों पर बातचीत हुई है। मायावती, ममता बनर्जी, चंद्र बाबू नायडू समेत दूसरे महागठबंधन के सहयोगियों के कांग्रेस विरोधी तेवर ने कांग्रेस को नरम रुख अपनाने के लिए विवश किया है। सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ने कांग्रेस से कहा है कि महागठबंधन के नेता बनने के लिए कांग्रेस को कुछ त्याग करना होगा। सही समय पर छोड़ा गया तीर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भेद दिया और उन्होंने अखिलेश प्रताप सिंह को सीट शेयरिंग तय करने की जिम्मेदारी सौंप दी।

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सूत्रों की मानें तो अखिलेश प्रताप सिंह ने महागठबंधन को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। वह रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा को न केवल कांग्रेस खेमे के करीब लाए, बल्कि लालू से मिलने की राह भी तय की।

बिहार राजग में सीट शेयरिंग तय होने के बाद महागठबंधन के सहयोगी दलों के मुखिया राजद पर सीटों की तस्वीर को साफ करने का दबाव बनाये हुए हैं। रांची स्थित रिम्स के प्राइवेट वार्ड में भर्ती राजद सुप्रीमो लालू यादव के पास लगातार दो माह से टिकटार्थियों का हुजूम लग रहा है। महागठबंधन के सहयोगी दलों की बढ़ती तादाद से राजद को सीट शेयरिंग करना मुश्किल नहीं पेंचीदा हो गया था। लेकिन लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने अखिलेश प्रताप सिंह समेत अन्य रणनीतिकारों के साथ बैठ कर इसको अंजाम तक पहुंचाया है। तेजस्वी यादव ने सियासी जगत में यह साबित किया कि वे लालू यादव के सही उत्तराधिकारी हैं, जो कठिन परिस्थियों में भी संभावना टटोल लेंगे।

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उत्तर प्रदेश में 12 जनवरी को कांग्रेस को दरकिनार कर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 38-38 सीटों पर लड़ने की आपसी सहमति बना लीं। तब से मायावती कांग्रेस पर तीखे हमले कर रही हैं, ताकि सूबे में कांग्रेस को कमजोर कर भाजपा से सीधे जंग छेड़ी जाये। इससे मुसलमान वोटरों को बंटने से रोका जा सकेगा। उधर, शनिवार को कोलकाता के बिग्रेड मैदान की रैली में सीएम ममता बनर्जी ने मौका मिलते ही कांग्रेस पर तंज कसने में गुरेज नहीं किया। समय की नजाकत और लोकसभा चुनाव की तारीखें कम होने की वजह से कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई है। उसे अभी पंश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु जैसे कई राज्यों सीटों को अंतिम रूप देने हैं।

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