बर्थ डे स्पेशलः मैं पल दो पल का शायर हूं के कलमकार साहिर

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  • नवीन शर्मा

अमिताभ बच्चन की फिल्म कभी-कभी का गीत मैं पल दो पल का शायर हूं हम में से कई लोग गुनगुनाते हैं। यह दिल को छूनेवाले गीत मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की कलम का कमाल था। इसी तरह कभी कभी मेरी दिल में ख्याल आता है गीत भी प्रेम को इजहार करने के साहिर के अंदाज का लाजवाब नमूना है। साहिर लुधियानवी का जन्म  8 मार्च, 1921 को लुधियाना (पंजाब) में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम अब्दुल हई था। वे जागीरदार घराने में पैदा हुए। उनके वालिद की कई पत्नियाँ थीं। एकमात्र सन्तान होने के कारण उनका पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार में हुआ।

साहिर की मां अपने पति से तंग आकर उनसे अलग हो गई। ‘साहिर ने कोर्ट में अपनी मां के साथ रहने की इच्छा जताई थी। इसका उन्हें मूल्य भी चुकाना पड़ा। पिता से और उसकी जागीर से उनका कोई सम्बन्ध न रहा। इसकी वजह से उनके जीवन में कठिनाइयों और निराशाओं का दौर शुरू हुआ।

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साहिर की प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में हुई। इसके बाद वे  1939 में गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिल हुए। यहीं उनका प्रसिद्ध पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम से प्रेम परवान चढ़ा। कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेर और शायरी के लिए प्रख्यात हो गए थे। अमृता उनकी मुरीद हो गई थीं। साहिर और अमृता की मुहब्बत पर अमृता के परिवार वालों को आपत्ति थी क्योंकि साहिर मुस्लिम थे। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिए उन्होंने कई तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं।

साहिर ने जब लिखना शुरू किया, तब इक़बाल, फ़ैज़, फिऱाक जैसे लोकप्रिय शायर अपनी बुलंदी पर थे। वैसे समय में साहिर ने अपने अलहदा अंदाज से विशेष मुकाम बनाया। कॉलेज से निकाले जाने के बाद साहिर ने अपनी पहली किताब पर काम शुरू किया। 1943 में ‘तल्खियां नाम से उनकी पहली शायरी की किताब प्रकाशित हुई। ‘तल्खय़िां से साहिर को एक नई पहचान मिली।

साहिर कहते हैं कि दुनिया के तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है, उसे लौटा रहा हूँ मैं। इसके बाद साहिर ‘अदब़-ए-लतीफ़ ‘शाहकार और ‘सवेरा के संपादक बने। साहिर प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन से भी जुड़े रहे थे। ‘सवेरा में छपे कुछ लेख से पाकिस्तान सरकार उनसे नाराज़ हो गई और साहिर के खि़लाफ़ वारंट जारी कर दिया था। 1949 में साहिर दिल्ली चले आए। कुछ दिन दिल्ली में बिताने के बाद साहिर मुंबई में आ बसे।

1948 में फि़ल्म आज़ादी की राह पर से फि़ल्मों में उन्होंने काम करना प्रारम्भ किया था। साहिर को 1951 में आई फि़ल्म नौजवान के गीत ठंडी हवाएं लहरा के आए से प्रसिद्धि मिली। इस फि़ल्म के संगीतकार एसडी बर्मन थे। गुरुदत्त के निर्देशन की पहली फि़ल्म बाज़ी गीतकार के रूप में उनकी पहली फि़ल्म थी। इसका गीत तक़दीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले…बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग़, बहू बेग़म, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फि़ल्मों में यादग़ार गीत लिखे। साहिर की नज्मों में प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी तो मिलती ही है। उनके गीतों में गरीबों और मेहनतकश मजदूरों के दुख दर्द के प्रति सहानुभूति और उनमें अपने हालत बदलने व लडऩे का जज्बा पैदा करने की कोशिशें भी साफ नजर आती हैं। 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवाँ हैं, जितने पहले थे।

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समाज के खोखलेपन को दिखाते हुए वे लिखते हैं जि़न्दगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है। भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है..। बेटी की विदाई पर एक पिता के दिल के अहसास को वो यूं बयां करते हैं- बाबुल की दुआएँ लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले……(नीलकमल)। आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देते हैं- तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा……(धूल का फूल)।

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साहिर की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे अपने गीत के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे। वहीं साहिर ने ही पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर होने वाली घोषणाओं में गीतकारों का नाम भी दिए जाने की मांग की थी। इससे पहले किसी गाने की सफलता का पूरा श्रेय संगीतकार और गायक को ही मिलता था।

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हिन्दी फि़ल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस क़दर झलकती है, जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हों। उनका नाम जीवन के विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जग़ह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और शायरों में शुमार है। साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। ये पहले शायर थे जिन्होंने संगीतकारों को अपने पहले से लिखे शेरों व नज्मों को स्वरबद्ध करने को मजबूर किया।

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फि़ल्म ताजमहल के बाद कभी -कभी फि़ल्म के लिए उन्हें उनका दूसरा फि़ल्म फेयर अवार्ड मिला। साहिर को पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया। साहिर ने ताउम्र विवाह नहीं किया। उनकी जि़ंदगी बेहद तन्हा कटी। पहले अमृता प्रीतम के साथ मुहब्बत परवान नहीं चढ़ी। मुंबई आने पर गायिका और अभिनेत्री सुधा मल्होत्रा के साथ भी एक असफल प्रेम से ज़मीन पर सितारों को बिछाने की उनकी हसरत अधूरी रह गई। अंतत 25 अक्टूबर, 1980 को दिल का दौरा पडऩे से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।

साहिर के प्रसिद्ध गीत

  • आना है तो आ…  (नया दौर  1957  ओ. पी. नैय्यर)
  • ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है  (प्यासा  1957  एस डी बर्मन)
  • अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम  (हम दोनों  1961 जयदेव)
  • चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों  (गुमराह  1963  रवि)
  • रंग और नूर की बारात किसे पेश करू  गजल
  • ईश्वर अल्लाह तेरे नाम  (नया रास्ता  1970  एन दत्ता)
  • मैं पल दो पल का शायर हूं  (कभी कभी  1976  ख़य्याम)
  • जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग (1973 दाग)
  • मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूं दाग
  • कौन आया निगाहों में चमक जाग उठी (1965 वक्त)

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