‘साहेब बीवी और गुलाम’ मीना की आल टाइम बेस्ट फिल्म रही

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मीना कुमारी
मीना कुमारी
  • वीर विनोद छाबड़ा

‘साहेब बीवी और गुलाम’ मीना कुमारी की आल टाइम बेस्ट परफॉरमेंस के लिए ज्यादा याद की जाती है। इस एक ही फिल्म से मीना हिट हो सकती थीं। जब कभी इंडियन सिनेमा के बेस्ट क्लासिक्स की बात होती है तो गुरुदत्त की ‘साहेब बीवी और गुलाम’ (1962) का जिक्र जरूर होता है। इंडिया टाइम्स मूवीज़ की 25 बेस्ट मूवीज लिस्ट में भी इसका जिक्र है। ऑस्कर अवार्ड की बेस्ट फॉरेन फिल्म केटेगरी में भी इसे भेजा गया। 1963 के बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी बेस्ट फ़िल्म के लिए नॉमिनेट हुई। देश में इसे बेस्ट हिंदी फीचर का नेशनल अवार्ड मिला। फिल्मफ़ेयर ने चार अवार्ड दिए, बेस्ट फिल्म (गुरुदत्त), बेस्ट डायरेक्टर (अबरार अल्वी), बेस्ट सिनेमाटोग्राफर (वीके मूर्ति) और बेस्ट एक्ट्रेस (मीना कुमारी)।

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विमल मित्रा के बांग्ला उपन्यास पर आधारित इसकी कहानी उन्नीसवीं शताब्दी की है, जब ब्रिटिश राज में सामंती व्यवस्था फल-फूल रही थी। केंद्र बिंदु थी, छोटे बाबू की पत्नी छोटी बहू यानी मीना कुमारी, जो व्यभिचारी और शराबी पति का प्यार पाने के लिए तरसती रहती है और अवसाद में आकर खुद भी पीने लगती है। बीच-बीच में वो हवेली में रहने वाले भोले-भले भूतनाथ (गुरुदत्त) का सहारा भी लेती है। उसका अंत बहुत ख़राब होता है। मझले बाबू उसकी भूतनाथ से संबंधों के शक में हत्या करवा देते हैं। वास्तव में छोटी बहू और भूतनाथ के बीच प्लेटॉनिक लव था।

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बाज़ क्रिटिक्स का कहना है कि मीना ने अगर सिर्फ़ यही फ़िल्म की होती तो भी अमर हो जातीं। छोटी बहू के किरदार के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। इस किरदार को वहीदा रहमान बड़ी शिद्दत से चाहती थीं। गुरूदत्त की भी यही इच्छा थी। मगर सिनेमाटोग्राफर वी.के. मूर्ति ने कुछ शॉट लेने के बाद मना कर दिया, छोटी बहू के मैच्योर किरदार के लिए वहीदा की उम्र बहुत कम है। तब दृश्य में मीना कुमारी आयीं।

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मजे की बात ये है कि वहीदा ने फिर भी काम करने की इच्छा जताई। उन्हें जबा का रोल दिया गया, जिसकी बाद में गुरु यानी भूतनाथ से शादी होती है, गुरु ने उन्हें समझाया भी कि उनका किरदार बहुत छोटा है और टाइटल में मीना के बाद नाम आएगा। मगर इसके बावजूद वो तैयार हो गयीं। वहीदा ने कभी एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने ये फ़िल्म गुरु के प्रति आभार प्रकट करने के लिए की थी, क्योंकि ये गुरु ही थे जिन्होंने उसे ‘सीआईडी’ (1956) में ब्रेक दिया था। वहीदा से संबंधों को लेकर गुरु की निज़ी ज़िंदगी में बहुत उथल-पुथल थी। उनकी पत्नी गीता दत्त ने फिल्म में तीन गाने गाये, मगर वहीदा पर फ़िल्माये गाने ‘भंवरा बड़ा नादान है…’ के लिए प्लेबैक नहीं दिया। इसे आशा भोंसले ने गाया।

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फ़िल्म की शूटिंग बंगाल स्थित किसी हवेली में हुई थी, लेकिन मीना कुमारी वहां नहीं गयीं। बंबई के गुरु दत्त स्टूडियो में उनके लिए ख़ासतौर पर सेट बनवाया गया। भोले-भाले भूतनाथ के किरदार के लिए सबसे पहली पसंद शशि कपूर थे, मगर वो गुरु से मिलने ढाई घंटे लेट पहुंचे। दूसरी पसंद विश्वजीत थे, मगर उन्होंने गुरु के लिए एक्सक्लूसिव कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से मना कर दिया। तब ख़ुद गुरु ने इस किरदार को करने का फ़ैसला किया। हालांकि कुछ क्रिटिक का कहना था, इस किरदार के लिए गुरू की उम्र कुछ ज़्यादा थी।

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गुरु ने ‘कागज़ के फूल’ (1959) की नाक़ामी से मायूस होकर दोबारा डायरेक्शन नहीं देने का अटल फ़ैसला किया था। इसलिए ‘चौदहवीं का चाँद’ (1960) का डायरेक्टर एम. सादिक को और ‘साहिब बीवी और ग़ुलाम’ का अबरार अल्वी को दिया, जो उनकी फिल्मों की स्क्रिप्ट राइटिंग करते थे। इतनी खूबसूरत फ़िल्म देने पर कुछ ने अल्वी की काबलियत पर शक करते हुए उड़ाया कि अल्वी के पीछे गुरु रहते थे। लेकिन इसके एडिटर वाई.जी. चह्वाण, वहीदा और तमाम यूनिट के मेंबर्स ने तस्दीक़ की कि असल डायरेक्टर अल्वी ही थे। शुरू में म्युजिक का काम एस.डी. बर्मन को सौंपा गया। मगर उनकी ख़राब सेहत के रहते हेमंत कुमार को बुलाया गया। शकील बदायुनी के अर्थपूर्ण गानों को बहुत प्यारी धुनों से सजाया था उन्होंने।

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कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ…पीया ऐसो जीया में समाये गयो रे…ना जाओ सैंयाँ छुड़ा के बईयां…मेरी जां मेरी जां…भंवरा बड़ा नादान है…साकिया आज मुझे नींद नहीं आएगी…मेरी बात रही मेरे मन में…और इसके अलावा एक गाना उन्होंने अपनी आवाज में भी रिकॉर्ड किया, साहिल की तरफ कश्ती ले चल…बैकग्राउंड में चल रहे इस गाने में मीना को गुरु की गोद में सर रखे दिखाया गया था। लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो सभ्य समाज ने हंगामा खड़ा कर दिया, संभ्रांत घराने की शादीशुदा औरत गैर मर्द की गोद में भला कैसे सर रख सकती है? गुरु ने पूरा गाना ही स्क्रेप कर दिया। लेकिन हेमंत कुमार ने इसकी धुन बेकार नहीं जाने दी। कुछ साल बाद ‘अनुपमा’ (1966) में कैफी आजमी के गाने को ये धुन दी, या दिल की सुनो दुनिया वालों या मुझको अभी चुप रहने दो…जिसे धर्मेंद्र पर फिल्माया गया। समाज के एक हिस्से ने छोटी बहू को शराबी दिखाने पर गुरु को लताड़ा भी था।

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