भाजपा के भीतर क्या कुछ ठीक नहीं चल रहा, जानिए क्या हैं वे बातें

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  • मिथिलेश कुमार सिंह

नयी दिल्ली। नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने भले ही भारी बहुमत दिया, लेकिन 2019 में वैसी बुलंदी नजर आती। इसकी वजह साफ है कि भाजपा के भीतर सब कुछ इन दिनों ठीक नहीं चल रहा। भाजपा में रह कर इसके लोग विरोधियों के मंच पर भाजपा सरकार के खिलाफ ही बोल रहे हैं। यशवंत सिन्हा और सांसद शत्रुघ्न सिन्हा  ममता बनर्जी के बुलावे पर कोलकाता में जुटे विपक्ष की गोलबंदी में ये दोनों नेता शामिल हुए थे। नितिन गडकरी भी भाजपा के हालात अच्छे नहीं बता रहे। लालकृष्ण आडवाणी तो अरसा पहले कह चुके हैं कि देश में इमरजेंसी के हालात बन रहे हैं।

भाजपा के खिलाफ नकारात्मक बातें न सिर्फ उसके कुछ लोग मुखर होकर बोल रहे, बल्कि भाजपा के भीतर भी वैसे नेताओं का भी एक बड़ा तबका है, जो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते घुटन महसूस कर रहा है। यह अलग बात है कि एक अदद टिकट दोबारा मिलने की चाहत में इनकी जुबान नहीं खुल रही। यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद, गडकरी जैसे लोगों के टेढ़े बोल समय-समय पर सुनाई देते रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि भाजपा को इन बातों का एहसास नहीं है। वह इस बात को अच्छी तरह समझती है कि 2014 के जलवे 2019 में नहीं रहेंगे। तभी तो वह अपने सहयोगी दलों के दबाव को सिर झुका कर झेलने को बाध्य हो रही है। भाजपा के बड़े सहयोगी के तौर पर फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार हैं। नीतीश के इशारों या शर्तों पर भाजपा ऐसे चल रही है, जैसे वही सहयोगी पार्टी हो। नीतीश नीतियों को डिक्टेट कर रहे हैं। सिर झुका कर भाजपा सुन-स्वीकार भी रही है।

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नीतीश कुमार का भाजपा पर दबाव और इसके आगे भाजपा के झुकने का आलम यह है कि राम मंदिर पर अध्यादेश के इरादे से भाजपा को पीछे हटना पड़ा। तीन तलाक बिल पर नीतीश की पार्टी जदयू ने इतना स्पष्ट बयान दिया कि भाजपा को मुंह बंद कर लेना पड़ा। एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान के दबाव में फैसले के खिलाफ भाजपा को अध्यादेश लाना पड़ा। इससे सवर्णों में इतनी खुन्नस पैदा हुई कि तीन राज्यों की सत्ता भाजपा को गंवानी पड़ी। लीपापोती के लिए भाजपा ने अब सवर्ण आरक्षण का क्रड चला है, लेकिन यह कितना कारगर होगा, कह पाना मुश्किल है।

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समान नागरिकता कानून के सवाल पर असम में भाजपा की सहयोगी पार्टी असम गण परिषद ने उसका साथ छोड़ दिया है। नीतीश कुमार भी इसके विरोध में खड़े हैं। वह इस कदर बिदके हैं कि असम गण पिरषद के इस मुद्दे पर होने वाले कार्यक्रम में उन्होंने अपने दो प्रतिनिधि भेजने की घोषणा तक कर दी है।

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उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता और प्रियंका गांधी के कांग्रेस में सक्रिय होने और अपने सहयोगी कई नेताओं के ऊटपटांग आचरण-बयान ने भाजपा को पहले से ही परेशान कर रखा है। चुनावी मूड के अनुमान इसे भाजपा के लिए अशुभ बता रहे। कुल मिला कर कहें तो भाजपा के लिए 2019 की राह आसान नहीं दिखती है।

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