विवाह में पुरुषों-महिला के लिए एक समान न्यूनतम आयु की मांग की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

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पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह के लिए एक समान न्यूनतम आयु की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिका शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को याचिका की सुनवाई करते हुए पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह के लिए एक समान न्यूनतम आयु की मांग रखने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

अदालत ने कहा कि संसद के लिए आरक्षित मामलों पर अदालतें कानून नहीं बना सकती हैं। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद को कानून बनाने के लिए परमादेश (एक असाधारण रिट) जारी नहीं कर सकती है।

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पीठ ने याचिका को स्वीकार न करते हुए कहा, ‘हम (कोर्ट) यहां कानून नहीं बना सकते। हमें (कोर्ट को) यह नहीं समझना चाहिए कि हम संविधान के एकमात्र संरक्षक हैं। संसद भी आखिर एक संरक्षक है। इस संबंध में याचिका शीर्ष अदालत के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी।

याचिका में पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी उम्र में समानता की मांग करते हुए वैधानिक हवाला दिया गया था। गौरतलब है कि देश में पुरुषों को 21 वर्ष की आयु में विवाह करने की अनुमति है, जबकि महिलाओं के लिए विवाह योग्य आयु 18 वर्ष है।

याचिका के पोषणीय होने को लेकर जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पर्दीवाला ने बताया कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि भारत में पुरुषों के बराबर ही महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 की जानी चाहिए। प्रावधानों को खत्म करने से महिलाओं के लिए शादी की कोई उम्र नहीं होगी। इसलिए याचिकाकर्ता विधायी संशोधन चाहते हैं। यह कोर्ट संसद को कानून बनाने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकती। हम इस याचिका को अस्वीकार करते हैं, याचिकाकर्ता उचित दिशा-निर्देश लेने के लिए स्वतंत्र हैं।’

याचिकाकर्ता ने इससे पहले कहा था कि शादी की उम्र में अंतर लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं की गरिमा के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि भारत में पुरुषों को 21 वर्ष की आयु में विवाह करने की अनुमति है। वहीं, महिलाओं को केवल 18 वर्ष की आयु में विवाह करने की अनुमति है। यह भेद पितृसत्तात्मक समाज की रूढ़िवादिता पर आधारित है, इसका कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है, यह वैधानिक और वास्तविक असमानता के विरुद्ध है। याचिका में कहा गया है कि छोटे आयुवर्ग की जीवनसाथी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने बड़े साथी का सम्मान करे और उसकी सेवा करे। यह व्यवस्था वैवाहिक संबंधों में पहले से मौजूद लिंग आधारित पदानुक्रम को बढ़ावा देने वाला है।

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