फिल्म काला में रजनीकांत और नाना पाटेकर का महा मुकाबला

0
414
  • नवीन शर्मा

निर्देशक पा. रंजीत की फिल्म काला में रजनीकांत की अधिकतर फिल्मों की तरह एक्शन व गीत नृत्य के मसाले तो हैं ही, साथ ही तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का छौंक भी लगा है। इस कहानी का तानाबाना मुंबई के सबसे बड़े स्लम धारावी को आधार बनाकर रचा गया है। कारिकालन ऊर्फ काला इस धारावी के स्लम में रहनेवाले लोगों का बेताज बादशाह है। काला यहां के लोगों के सुखदुख का साथी है इसलिए वहां के लोग उस पर अपनी जान छिड़कते हैं। यह फिल्म देखते हुए अमिताभ बच्चन की  फिल्म अग्निपथ की याद आती है। वैसे अगर अग्निपथ से तुलना की जाए तो काला कमतर ठहरती है।

वहीं दूसरी तरफ एक नेता हरिदेव अभ्यंकर (नाना पाटेकर) है जो धारावी के स्लम को हटाकर वहां पर अपार्टमेंटस बनाना चाहता है। इसके लिए हरिदेव लोगों को डराने-धमकाने,लालच देने तथा मारपीट हत्या तक के सभी तरीके आजमाता है। हरिदेव की धारावी के स्लम की जगह बड़ी बिल्डिंग बनाने के सपने की राह में काला रोड़ा बन जाता है। इसी को लेकर दोनों में लड़ाई शुरू होती है। वैसे इनकी दुश्मनी पुरानी थी इसी हरिदेव ने काला के पिताजी की भी हत्या की थी।

- Advertisement -

वहीं जरीन (हुमा कुरैशी) नाम की लड़की से काला प्यार करता है उससे शादी भी करना चाहता है, पर शादी के दिन ही हरिदेव हमला करवा देता है। इस वजह से शादी नहीं हो पाती और जरीन और काला अलग हो जाते हैं।
हरिदेव व काला के बीच स्लम की जमीन  को लेकर हुए संघर्ष में आखिरकार धारावी के लोगों की एकता व समर्थन के बल पर काला विजयी होता है। फिल्म में रजनीकांत व नाना पाटेकर के बीच बढिय़ा मुकाबला है। आमतौर पर रामायण के आधार पर राम और रावण के बीच हुए मुकाबले में हम उत्तर भारतीय राम को सत्य व रावण को असत्य का प्रतिनिधि मानते हैं। इसी वजह से बुराई का प्रतीक मानकर दशहरा के मौके पर रावण का पुतला दहन की परंपरा भी चली आ रही है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण में कई लोग रावण को अपना राजा मानते हुए उसे बुराई का प्रतीक नहीं मानते हैं। इस फिल्म में बैंकग्राउंड में रामकथा के वाचन के माध्यम से हरिदेव को राम और काला को रावण का प्रतिनिधि दिखाया गया है। खैर इस फिल्म में जैसा हरिदेव का चरित्र है जैसा काला का उनमें इनदोनों में राम और रावण के प्रतीक ढूंढना मुझे तो बहुत हद तक सरलीकरण लगा।

फिल्म के बैकग्राउंड में दलित राजनीति को भी प्रतिबिंबित किया गया है। इसके लिए गौतम बुद्ध के नाम संस्थान के आगे खड़ा होकर काला को दिखाया गया है और फिल्म का एक पात्र जय भीम का नारा भी लगाता है। वैसे भी महाराष्ट्र में दलित राजनीति की एक सशक्त धारा रही है। ये उसी को भुनाने की कोशिश मानी जा सकती है। खैर कुल मिला कर यह मनोरंजक फिल्म है, लेकिन इसकी लंबाई कम की जा सकती है। गाने चलताऊ हैं। फिल्म की सबसे खास बात इसकी फोटोग्राफी है खासकर फिल्म के अंत में अबीर-गुलाल के उड़ाने के सतरंगी  दृश्यों का फिल्मांकन मनमोहक है।

 

- Advertisement -