दो भारत का उदय- अमीरों का भारत, गरीबों का भारत

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पिछले सप्ताह यमुना एक्सप्रेस वे से आगरा और आगरा -लखनऊ एक्सप्रेस वे से लखनऊ जाने का मौका मिला | लगभग छः सौ किमी की यात्रा कार से छः घंटे में | नाश्ता दिल्ली में और लंच लखनऊ में | मजा आ गया | क्या रोड है ! भारत की सबसे बढ़िया सड़क पर पहली बार 100 की स्पीड से गाडी जो चला रहा था ! गति सीमा 100 ही है , लेकिन ऐसी सड़क पर इसकी चिंता कम लोग करते हैं | हमने तो की , लेकिन कई दफ़ा नहीं भी की – मैंने कम , बेटे ने ज्यादा |

लेकिन लखनऊ तक टोल टैक्स के रूप में 1055 रुपए देने पड़े | आते वक्त भी इतनी ही राशि फिर लगी | यह इस सड़क पर चलने का टैक्स है | इस सड़क पर साईकिल , दुपहिया वाहन या पैदल यात्री नहीं चलते | शायद मनाही है | आप टैक्स नहीं दे सकते तो दूसरी सड़क से जाइए -दोगुने समय में |

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दो तरह का भारत बन रहा है – सुविधा संपन्न लोगों का भारत और वंचितों का भारत | सुविधा संपन्न लोग एक्सप्रेस वे , हवाई जहाज , बुलेट ट्रेन और महँगी विदेशी गाड़ियों से चलेंगे | वंचित तबका पैदल , साईकिल , खटारा बसों – रेल गाड़ियों , मोटर साइकिलों और सामान्य सडकों से चलेगा | अंग्रेजों ने अपने लिए सिविल लाइन्स जिस तरह बनाई थी उसी तरह स्वतंत्र भारत का शासक वर्ग अपना अलग तरह का देश बना रहा है | बुलेट ट्रेन मोदी जी बना रहे हैं , एक्सप्रेस वे मायावती जी और अखिलेश जी बना चुके हैं | विकास – नीति सबकी एक है | समता मूलक समाज बनाने की राजनीति का दौर लगता है कि समाप्त हो चुका है ! कहने को राजनीतिक दलों के नाम अलग हैं !

अपनी नौकरी के कारण मैं अब सुविधा संपन्न तबके का सदस्य हूँ , एक्सप्रेस वे पर चलनेवाला, लेकिन आता हूँ वंचित तबके से – एक सीमान्त किसान परिवार से | मुझे अपने पिता – चाचाओं और उन जैसे किसानों की हाड़तोड़ मिहनत की याद है | बचपन से जेपी – लोहिया के अनुयायियों के संपर्क में रहने के कारण इस दो तरह के भारत का मैं विरोधी रहा हूँ | इसलिए इस तरह का भेद भाव कारी भारत पसंद नहीं | सुविधाओं के बीच अपराधबोध से घिरा रहता हूँ | मुझे उस राजनीति की प्रतीक्षा है जो सबके लिए एक – सी सड़क बनाए , एक -सी ट्रेन चलाए !

एक्सप्रेस वे बने , बुटेल ट्रेन चले ,लेकिन ऐसी सड़कें- ट्रेनें सबके लिए क्यों न होनी चाहिए ?

  • गोपेशवर सिंह (फेसबुक वाल से)
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