ई कोरना भायरस कवन बेमारी ह मलिकार, मचवले बा हाहाकार

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किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।
किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।

ई कोरना भायरस कवन बेमारी ह मलिकार, एह घरी चारू ओर ऊ मचवले बा हाहाकार। मलिकाइन अपना पाती में आज इहे सवाल कइले बाड़ी। कोरोना वायरस के ऊ कोरना भायरस लिखले बाड़ी। अबकी उनका पाती में कवनो कहाउत नइखे लिखल। एह से उनकर बात बूझे में ढेर माथा ना मारे के परल हा। लीं पढ़ीं, अपने सभन उनकर पातीः

पांव लागीं मलिकार। ए मलिकार, एह घरी कवन दूना एगो कोरना भायरस बेमारी चलल बा। चीन से ओकर शुरुआत भइल बा आ अपनो मुलुक में एकर रोगी मिले लागल बाड़े। सुने में आवता कि एकर इलाज अबहीं ले कवनो डागदर-बैद के लगे नइखे। लोग चीन से भाग-भाग अपना मुलुक लवट रहल बा। मोदी जी जहाज भेज के चीन में रहे वाला अपना मुलुक के लोग के बोला लिहले, बाकिर पकिस्तान के लोग ओइजा छपटा के रह गइल बा। ओह लोगिन के परधानमंतरी, सुने में आवता, ई कहले बाड़े कि जीयल-मूअल त ऊपर वाला के हाथ में होला। एह से जे जहां बा, ओही जा रहे।

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किसिम-किसिम के बेमारी अब हो तारी सन मलिकार। पिछलके साल देखनी ना कि अपना इहां चमकी बोखार आइल त केतने लड़िकन के जान ले लिहलस। पहिले अइसने बेमारी गोरखपुर में सुने के मिलल रहे। पांड़े बाबा जवनी गंतिया बतावत रहवीं, ऊ सुन के त करेजा थरथरा गउवे मलिकार। उहां के कहत रहवीं कि एह कोरना बेमारी से खाली लोग बेमार भा मूअते नइखे, एकर असर चीन पर त ढेरे परल बा। सुनावत रहवीं कि ओइजा के कवनो शेर बाजार (शेयर बाजार) बा, ऊ मुखुड़िए ढिमला गइल बा। चार बरिस में एह तरे पहिली बेर ऊ ढिमलाइल बा।

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चीन से लोग भागत बा। ओइजा केहू जाये के नइखे चाहत। बेमारी से एतना डर पैदा हो गइल बा कि बाजार बंद परल बाड़ी सन। ई बेमारी काहें भइल बा, एकरो बारे में पांड़े बाबा बतावत रहवीं। उहां के कहत रहवीं कि चीनिया लोग तीयन-तरकारी कम खाला। सांप, गोजर, मछरी, मास पर चीनिया लोग के धेयान बेसी रहेला। सुने में त इहो अउवे कि ओकनी के चीउंटा, झिंगूर ले खा जाले सन। सुनिए के मन खराब हो गउवे। हमरा त अइसन बोकराई अउवे कि भाग के आंगन में चल गउवीं आ नरदोहा पर बइठ के जवन खइले रहवीं, सगरी बोकर दिहवीं। छिह, कइसन मलेछ बाड़े सन ई चीनिया।

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ए मलिकार, असों ठंडा ना ओराई का। भर दिन घाम होता आ सांझ होते पछुआ अइसन झकझोरे लागता कि रूई-धुईं छोड़ के निकले के नइखे मन करत। सरदी-बोखार-खोंखी त बूझ जाई घरे-घरे डेरा डाल दिहले बा। जेने सुनीं, केहू खोंखत बा त केहू छींकत बा। केहू के गर अइसन बाझल बा कि बुझाता रात भर बियाह के गीत-गारी गा के आइल बाड़े। पांड़े बाबा एगो नीमन उपाय बतावत रहुवीं। ई उपइया हमरा फूआ के ननदो बतावस। उहां के कहत रहवीं कि रात में हर्दी आ दूध खौला के सिरगरमे पीअला से सर्दी-खोंखी कोस भर फइले परा जाला। हम त अपना तीनू नन्हकन के रात से दिहल शुरू कइले बानी। रउवो खाये-पीये में धेयान राखेब। मास-मछरी खाइल त अब छोड़िए दीं। ओइसहूं अब राउर उमिर भइल। जेतने सादा भोजन करेब, शरीर ठीक रही। बाकी अगिला पाती में।

राउरे, मलिकाइन

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