कर्ज माफी का खामियाजा मिडिल क्लास के सिर!

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  • राणा अमरेश सिंह

नयी दिल्ली। एक मिडिल क्लास ही है, जो लाख मुसीबतों के बावजूद अपनी ईएमआई बैंकों को जमा करता है। यही वह वर्ग है, जिसके चुकाये टैक्स से बड़े पूंजीपतियों और किसानों की कर्ज माफी की भरपाई प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से की जायेगी। भाजपा सरकार में गरीब अथवा पूंजीपति को लाभ मिले हैं। मिडिल क्लास तो कभी जीएसटी तो कभी नोटबंदी से परेशान रहा। लघु और मध्यम उद्यमी खुद जीएसटी के बाद निरंतर घाटे में चल रहे हैं। जीएसटी की घोषणा का आलम यह रहा कि हजारों उद्योगों में एक सप्ताह में ताले लटक गए और लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए। यह कहना है युवा उद्यमी संजय कुमार का।

उत्तर प्रदेश के डासना औद्योगिक एरिया म़ें संजय कुमार आइजोल लुब्रीकेंट प्राइवेट लिमिटेड के डाइरेक्टर हैं। बिहार के सीतामढ़ी के रहनेवाले हैं। एमबीए हुनर की पात्रता से लैश संजय कुमार 2001 से एनसीआर में लुब्रीकेंट के बिजनेस में हैं। सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, परंतु जीएसटी की मार ने उनकी अकड़ तोड़ दी। करोड़ों की लागत से खड़ी कंपनी अब घाटे में है। उद्यमी अपनी पूंजी खा रहे हैं।

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दरअसल संजय कुमार तो एक उदहारण हैं। ऐसे हजारों उद्यमी हैं जिन्होंने एनसीआर में दिन-रात कड़ी मेहनत और खून-पसीना बहा कर अपनी सफलता का इतिहास  रचा। देश भर में ऐसे लाखों उद्यमी होंगे, जिनके ऊपर लाखों करोड़ रुपये का ऋण होगा। ऐसे उद्यमी प्राइवेट कर्ज लेकर अपनी ईएमआई बैंकों को चुकता भी करते हैं। सिर्फ इसलिए कि करोड़ की पूंजी को कहीं बैंक दिवालिया न घोषित कर दें! मैन्युफैक्चरिंग दर 0.5 % है, जो कि जीएसटी लागू होने से पहले 1.0 % थी।

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लगातार कर्ज माफी पर तंज करते संजय कुमार ने कहा कि सियासी दलों के बीच कर्ज माफी की बोली ऐसे लग रही है, मानो उन्हें अपने दल से देने हैं। जो सही मायने में देने हैं, उसम़ें तो नेता बंदरबांट करते हैं। मिडिल क्लास अपना टैक्स राष्ट्र निर्माण हेतु देता है, न कि सियासी दलों को अपना वोट बंटोरने के लिए। सही ही कहा गया है कि माल महाराज के और मिर्जा खेलें होली।

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मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में कुछ उद्यमी ऐसे भी हैं, जिनकी अचल संपत्ति उनके द्वारा लिए गए कर्ज की तुलना में बहुत कम है। उन्हें अपनी कंपनी को नीलाम होने का भय नहीं सताता। चूंकि वे बैंकों से फर्जी तरीके से क्षमता से अधिक कर्ज ले चुके हैं, पर जिन्होंने स्वयं एक-एक पाई  जोड़ कर जीविका खड़ी की है, सरकार की नीतियों से हताश और परेशान हैं।

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