गंगा की लहरें आज बेचैन रहीं अपने बेटे की याद में

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स्वर्गीय प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र की छठी पुण्यतिथि पर विशेष

  • हरेन्द्र शुक्ला 

वाराणसी। काशी नगरी आज गंगा पुत्र स्व. प्रो वीरभद्र की छठवीं पुण्यतिथि मना रही है। गंगा की लहरों में आज बेचैनी है। शायद अपने उस बेटे की याद में, जिसने सबसे पहले मां की पीड़ा को महसूस किया और स्वच्छ गंगा अभियान के नाम से मां के इस कष्ट को हरने के जतन शुरू किये।

बात है सन 70 के दशक की संस्कार और नियम के अनुसार बड़े महंत जी हर रोज सुबह गंगा में डुबकी लगाकर ही अपने दिन के कामकाज की शुरुआत करते थे। इसी दौरान उन्हें लगा कि गंगा प्रदूषित हो रही हैं और नालों से होने वाला उत्सर्जन गंगा का दम घोट रहा है। गंगा को लेकर उनके जज्बाती रिश्ते बन गये। इसी रिश्ते के कारण बेहद संवेदनशील बड़े महंत जी इस पर चुप नहीं बैठे। उन्होंने पहली बार स्वच्छ गंगा अभियान के जरिए पूरे देश दुनिया को गंगा की बिगड़ती सेहत पर खबरदार किया।

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जन जागरण का सामाजिक दायित्व निभाते हुए गंगा के जल की नियमित जांच का अभियान भी शुरू किया।  आज भी उनके बड़े पुत्र संकटमोचन मंदिर के महंत और संकटमोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो विश्वम्भरनाथ मिश्र एवं छोटे पुत्र बीएचयू सर सुन्दरलाल अस्पताल के निवर्तमान मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ख्यातिलब्ध न्यूरोलाजिस्ट प्रो. विजयनाथ मिश्र उनके सामाजिक और सांस्कृतिक अभियान की मशाल को जलाये हुये हैं।

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गंगा पुत्र के आह्वान की आवाज सात समुंदर पार तक गयी। महंत जी के प्रयासों से कई देशों के गंगा प्रेमी गंगा को प्रदूषण से उबारने के बड़े महंत जी की मुहिम में शामिल हो गए। यह तो रही सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वहन की बात। एक अभियंत्रण वैज्ञानिक होने के नाते महंत जी ने गंगा के प्रदूषण मुक्त करने की एक सफल योजना का ब्लूप्रिंट भी सरकार के सामने पेश किया। लेकिन मां गंगा का दुर्भाग्य कि दुनिया के कई देशों  में सफल रही वह योजना स्वार्थ लिप्सा के कारण धूल भरी फाइलों के बीच में दबा दी गई। गंगा के नाम पर धन उगाही के लिए ऐसी योजनाएं लागू की गईं, जिनका परिणाम आज दुनिया के सामने है।

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