डॉ अरुणा “अनु” की लघु कथा- जीवन की सीख

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सुनीला की बोर्ड-परीक्षा का आज अंतिम दिन था। वह बहुत खुश थी। परीक्षा अच्छी जो हुई थी। घर लौटते हुए तरह-तरह के विचार उसके मन में आ रहे थे। घर पहुँचकर माँ को ये कहूँगी-वो बतलाऊँगी। फरमाइशों की लिस्ट का भी मन बनाने लगी थी। आज सुनीला परीक्षा के बोझ से खुद को मुक्त महसूस कर रही थी।

भविष्य की छोटी-छोटी कल्पनाओं में डूबती-उतराती सुनीला घर पहुँची तो वहाँ माँ घर पर थीं ही नहीं। वे पड़ोस में गयी हुई थीं। सुनीला को बहुत बुरा लगा। उसे बहुत दुःख हुआ और गुस्सा भी आ रहा था। कहां तो वह सोच रही थी कि उसकी माँ बेसब्री से उसकी राह देख रही होंगी और माँ तो घर में ही मौजूद नहीं हैं। वह एक मिनट भी नहीं रुकी। पैर पटकती हुई पड़ोस के घर की ओर चल दी। अभी बाहर निकली ही थी कि पास के ग्राउण्ड में मुहल्ले की तीन-चार लड़कियाँ और उनकी मम्मियाँ बैठी बतिया रही थीं। सुनीला को देखते ही उसकी एक दोस्त पुनीता आगे आयी। उसने चहक कर पूछा- सुनीला आज तो तुम्हारी परीक्षा का अंतिम दिन था। पेपर कैसा हुआ।

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सुनीला तो पहले से ही अपनी माँ से नाराज थी। चिढ़कर बोली- ‘‘कैसा क्या हुआ? जैसा होना था, हो गया।’’ पुनीता का तो मुँह ही उतर गया। तभी उसकी बहन ने चुटकी ली- और जाओ हाल पूछने। कैसा जवाब मिला। बेचारी पुनीता, अपना-सा मुँह लेकर रह गयी।

अगली शाम जब सुनीला घर से निकली तो सीधे पुनीता के पास ही गयी। कल के रूखे व्यवहार पर उसे बहुत पछतावा हो रहा था। माँ की नाराजगी बेकार ही उसने पुनीता पर उतार दी थी। भला यह भी कोई बात हुई। मिलते ही सुनीला ने सारी कहा और सफाई देते हुए कहा कि कल उसका मूड ठीक नहीं था, इस कारण ऐसा हो गया।

पुनीता भी सुनीला के कल के व्यवहार से काफी आहत थी। छूटते ही उसने कहा- तो क्या तुमसे बात करने से पहले ये पूछा जाए कि तुम्हारा मूड कैसा है? बात की जा सकती है या नहीं? और फिर कोई बात शुरु की जाए?

सुनीला को अपनी भूल का एहसास पहले ही हो चुका था। अब तो एक और बात स्पष्ट हो चुकी थी- जीवन में किसी की नाराजगी किसी दूसरे पर नहीं उतारनी है।

सुनीला को आज जीवन की एक बहुत महत्त्वपूर्ण सीख मिल चुकी थी।

(लेखिका डा. अरुणा, राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली हैं)

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