कबीर की कविता हाय-हाय और हाहाकार वाली कविता नहीं है

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कबीर ज्ञान और प्रेम के कवि थे। उनकी कविता हाय-हाय और हाहाकार  वाली कविता नहीं है, उल्लास की कविता है। वह दिन-रात रोना-बिसूरना नहीं जानते।
कबीर ज्ञान और प्रेम के कवि थे। उनकी कविता हाय-हाय और हाहाकार  वाली कविता नहीं है, उल्लास की कविता है। वह दिन-रात रोना-बिसूरना नहीं जानते।
कबीर ज्ञान और प्रेम के कवि थे। उनकी कविता हाय-हाय और हाहाकार  वाली कविता नहीं है, उल्लास की कविता है। वह दिन-रात रोना-बिसूरना नहीं जानते। वह तो मगन रहना जानते हैं।
  • प्रेमकुमार मणि
प्रेमकुमार मणि
प्रेमकुमार मणि

आज जेठ पूर्णिमा है। कबीर का जन्मदिन। शायद मैंने कुछ गलत कह दिया। उनका जन्म पता नहीं कब हुआ था। इस रोज उन्हें बनारस के लहरतारा जलगाह के पास शायद देखा गया था। वह प्रकट हुए थे। कमल से भरे तालाब के बीच। इसलिए आज उनके  प्रकट होने का दिवस है।

उनकी जीवनकथा रहस्यों से भरी है और इसलिए गुदगुदी पैदा करती है। उस पर अधिक बात नहीं करूंगा। उसका कोई मतलब नहीं है। युवाकाल में मैंने एक कविता लिखी थी- ‘कबीर की माँ का स्वप्न’। कबीर की माँ  किस तरह के  सपने देखती होंगी, इसे ही मैंने समझने की कोशिश की थी। किसी ने उनकी माँ पर दो पंक्तियाँ लिखी हैं-

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‘कबीर धनी वा सुंदरी, जिन जाया वैष्णव पूत, राम सुमरि निर्भय हुआ, सब जग गया अऊत।’

(यानी धन्य है वह सुंदरी, जिसने कबीर को जन्म दिया। रामनाम सुमर कर वह निर्भय बना, जबकि लोग इससे ऊब चुके थे।)

बुद्ध और कबीर सैकड़ों वर्ष पूर्व हुए, लेकिन दोनों मुझे बहुत पास प्रतीत होते हैं। बचपन से कबीर-पंथ के साधुओं को देखता आया हूँ। अन्य पंथ के साधुओं की तरह समाज से वे बहुत दूर नहीं रहते। उनकी सहज, शांत, स्वच्छ जीवन-शैली मुझे हमेशा आकर्षित करती थी। कुछ सयाना होने पर उनके बारे में कुछ पढ़ा, तब मन आनंद से भर गया। ऐसा भला आदमी जब इस संसार में रहा होगा, तब संसार कितना सुन्दर होगा !

मैं कल्पना करता था कबीर के ज़माने की, आज भी करता हूँ। एक जुलाहा, बुनकर आध्यात्मिक गुरु है। वह बुद्ध की तरह कटोरा थामे नहीं, अपना करघा थामे है। वह दूसरों की कमाई नहीं, अपनी कमाई खाता है। वह मेहनतक़श है। ऐसा संत भला कितना प्यारा रहा होगा।

उन्होंने दस्तकारों और किसानों के ह्रदय को आध्यात्मिकता से जोड़ा। उनमें प्रेम और श्रद्धा के रस भरे। ऐसे किसानों और दस्तकारों ने जो हिन्दुस्तानी समाज बनाया, जो उद्यम खड़े किए, उसी ने मुगल राज की महानता और  शोहरत की नींव रखी। मुगल राज में भारत का जो उत्कर्ष था, वह किसानों और दस्तकारों की मेहनत और हुनर का नतीजा था। और इसके पीछे जो सबसे बड़ी हस्ती थी, वह कबीर थे। कबीर की कविताएं गुनगुनाता एक जुलाहा खूबसूरत कपड़े बुनता था, एक कुम्हार खूबसूरत घड़े बनाता था। बढ़ई, लुहार, सुनार, दर्ज़ी, मोची सब अपनी कारीगरी में निखार ला रहे थे। जब मन ज्ञान और प्रेम से लबालब हो तो हुनर में खुद-ब-खुद चार चाँद लग जाते हैं। इसलिए मैं हमेशा अनुभव करता हूँ कि जनता को ज्ञान से जोड़ना जरूरी  है। कबीर ने ‘ज्ञान की आँधी’ की बात की थी- ‘साधो, उठी ज्ञान की आँधी।’ यह ज्ञान की आँधी आज ज्ञान की क्रांति कही जाएगी।

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आज धर्मनिरपेक्षता पर बात होती है। कबीर की धर्मनिरपेक्षता मेरा आदर्श रहा है। जहाँ भी पाखंड दिखा, उन्होंने कोड़े  चलाए। घर के मुल्ले की तो खबर ली ही, पड़ोस के पाण्डे को भी खरी-खरी  सुनाई। आज की हमारी धर्मनिरपेक्षता हिन्दू-मुस्लिम एकता के नाम पर पाण्डे और मुल्लों के पाप पर पर्दा डालती है। वेद-कुरान के पाखंडों को बढ़ावा देती है। तुम मेरे मजहब पर मत बोलो, मैं तेरे मजहब पर नहीं बोलूंगा। कबीर इसके उलट करते हैं। अपने मजहब की भी  बखिया उधेड़ते हैं, और पड़ोस वाले के मजहब को भी नहीं बख्शते। वह निर्भय नागरिक के तौर पर एक नया देस बनाने का प्रस्ताव करते हैं। यह अमरदेस है। जहाँ कोई वर्ण-जाति, ऊंच-नीच  का भेदभाव नहीं है। किसी तरह का कोई आडम्बर और अंधकार वहाँ नहीं है। रात-दिन सूरज-चाँद वहाँ प्रकाशमान रहते हैं।  यह अमरदेस ही उनका यूटोपिया है, सपना है।

कबीर पर बोलने और बात करने के लिए इत्मीनान और समय चाहिए। वह अनेक रूपों में हमारे बीच हैं। वह संत हैं, लेकिन उनकी वाणी को लोगों ने कविता के रूप में देखा। वह कवि कहे गए। लेकिन कैसे कवि हैं कबीर! उनकी कविता हाय-हाय और हाहाकार  वाली कविता नहीं है, उल्लास की कविता है। आज के हिन्दुस्तानी कवियों की तरह वह दिन-रात रोना-बिसूरना नहीं जानते। वह तो मगन रहना जानते हैं। हाय-हाय और हाहाकार नहीं, उल्लास उनकी कविता का केन्द्रक है। वह प्रेम के कवि है, इश्क के कवि हैं। ‘हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या।’  कबीर होशियार नहीं होना चाहते। आनंदमय होना चाहते हैं। प्रेम करना चाहते हैं। वह इश्क के कवि हैं, जीवन के कवि हैं। ऐसे कवि बिरले होते हैं। कबीर बिरले कवि हैं। इस बिरले कवि को उनके प्रकटोत्सव पर साहेबबन्दगी।

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