लालू-तेजस्वी के आरक्षण विरोधी तेवर से राजद के सवर्ण फेस पसोपेश में

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फाइल फोटो
  • राणा अमरेश सिंह

पटना। सवर्ण आरक्षण पर लालू यादव के तेवर से राजद के सवर्ण नेता सकते में हैं। खासकर जगतानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह, जिनके चुनाव क्षेत्रों में सवर्ण वोटरों का बोलबाला है और ये वोटर ही उनकी जात-हार का खाका तैयार करते हैं। सवर्ण आरण को लालू मनुवादी पहल करार दे रहे हैं तो तेजस्वी भी उसी भाषा में बोल रहे। सामान्य जाति के कमजोर वर्ग के लोगों को 10 फीसद आरक्षण के विरोध में लालू यादव के हमलावर तेवर की चर्चा अब गांव-देहात में जोर पकड़ने लगी है। लालू यादव के  ट्वीवटर हैंडल से सवर्ण गरीबों के आरक्षण का लगातार विरोध हो रहा है। ट्वीटर पर कभी सवर्णों को मनुवादी तो कभी अत्याचारी व शोषक कहा जा रहा है। राजनीतिक पंडित इसे लालू यादव की वोटरों को अगड़े-पिछड़े के ध्रुवीकरण करने की चाल के रूप में देख रहे हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू का फारमूला कारगर रहा था।

चूंकि इसी नीति के तहत लालू यादव 90 के दशक में अकंटक 15 सालों तक राज किया था। नीतीश के साथ 2015 में राजद जब चुनाव लड़ रहा था तो संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान को लालू ने मुद्दा बना लिया। उन्होंने पिछड़ों को इसी मुद्दे पर गोलबंद करने में कामयाबी पायी थी, यह भय दिखा कर कि भाजपा आरक्षण खत्म कर देगी। वह अपने इसी नुस्खे को इस बार लोकसभा के चुनाव में भी आजमाना चाहते हैं।

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उधर, राजद के सवर्ण फेस माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह लालू यादव के हमलावर तेवर से परेशान व असहज हैं। हालांकि रघुवंश प्रसाद सिंह तो डैमेज कंट्रोल में लगे हैं, लेकिन जगदानंद सिंह ने रहस्यमय चुप्पी साध ली है।

रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह को  2014 के लोकसभा चुनाव में राजग प्रत्याशियों से करारी हार मिली थीं। रघुवंश प्रसाद सिंह का संसदीय क्षेत्र वैशाली और जगदानंद सिंह का बक्सर है। दोनों में सवर्ण मतदाता निर्णायक हैं। वहीं दोनों नेताओं की व्यक्तिगत ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है। फिर भी लालू यादव व तेजस्वी यादव के बोल इनके वोटरों को बिदकाने का काम कर रहे हैं। दोनों नेता ने अगले चुनाव को द्यान में रख कर अपने इलाके में जनसंपर्क एक साल से चला रहे हैं। अगड़ी जाति के  गरीबों के आरक्षण को लेकर राजद के नजरिये से दोनों पसोपेश में हैं। दोनों नेताओं के सजातीय वोटर उनके दिल्ली जाने की मंशा पर ग्रहण लगा सकते हैं।

जाड़े की कनकनाती हवा और सुबह-शाम पुआल के अलाव के चारों ओर बैठे लोगों के बीच इसी की चर्चा सुनी जा रही है। सवर्ण युवाओं में राजद के प्रति नाराजगी है। इसका खामियाजा राजद के सवर्ण चेहरा माने जाने वाले जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह को भुगतना पड़ सकता हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह ने राजद के फैसले को पार्टी की भूल करार दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने राजद मुखिया लालू यादव को सामान्य जाति के गरीबों के आरक्षण का समर्थक तक करार दिया, ताकि डैमेज कंट्रोल हो सके। वहीं, जगदानंद सिंह ने तो पहले प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के आरक्षण विरोधी बयान का समर्थन किया,  लेकिन बाद में सवर्ण जाति के युवाओं के मूड को भांप कर उन्होंने चुप्पी साध लेना ही बेहतर समझा।

राजद के सवर्ण नेताओं को अब यह अहसास होने लगा है कि 2019-20 के चुनाव में ये दांव उसको बहुत महंगा पड़ सकता है। इस फैसले ने सवर्ण नेताओं की नींद उड़ा कर रख दी है। बिहार के सवर्ण वोटर्स राजद को चुनाव में मजा चखाने की तैयारी में हैं तो पार्टी के सवर्ण नेता इस डैमेज को कंट्रोल करने में जुट गए हैं। रघुवंश प्रसाद का बयान सवर्ण नेताओं की घबराहट को दिखने के लिए काफी है। यह एक नेता का बयान भर नहीं है, बल्कि पार्टी के एक मजबूत सवर्ण नेता का दर्द भी है, जिसे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि आनेवाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को सवर्णों का वोट मिलना बहुत मुश्किल है। रघुवंश प्रसाद ने तो मीडिया से सवर्ण आरक्षण पर खुल कर अपनी बातें कहीं। उन्होंने पार्टी के इस फैसले का विरोध भी किया। दरअसल राज्यसभा में राजद ने सवर्ण आरक्षण का खुल कर विरोध किया था। उन्होंने कहा कि राजद के घोषणा पत्र में सवर्ण जाति के गरीबों को आरक्षण देने की बात कही गई थी।

सियासी पंडितों का मानना है कि राजद ने राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण का विरोध करके बड़ा जोखिम ले लिया है। वैसे भी लालू यादव के ‘भूरा बाल’ को सवर्ण अभी तक अपने जेहन से निकाल नहीं पाए हैं। वहीं लालू-तेजस्वी के मनुवादी बयान अब नीम पर करैले समान कहीं साबित न हो जायें!

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