राष्ट्र-चिंतन: सलमान और अल्वी ही कांग्रेस की असली पहचान हैं !

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राष्ट्र-चिंतन: सलमान और अल्वी ही कांग्रेस की असली पहचान हैं- विष्णुगुप्त

दुनिया में कोई भी पार्टी बहुसंख्यक आबादी और समाज को खारिज कर, अपमानित कर, खिल्ली उड़ाकर सत्ता में बैठ नहीं सकती। ऐसा उदाहरण यूरोप और अमेरिका में भी नहीं मिलता जहां पर लोकतंत्र को बहुत ही व्यावहारिक, उदारवाद और अल्पसंख्यक हित वाला माना जाता है। फिर भी यूरोप और अमेरिका की राजनीति चर्च और ईसायत की खिल्ली उड़ाने का साहस नहीं कर सकती है।

अरब देशों जहां पर मुस्लिम शासन पद्धति है वहां पर तो इस्लाम का ही शासन होता है, इस्लाम को वहां पर खारिज करने की बात तक सोची नहीं जा सकती है। भारत में दो ऐसे राज्य हैं जहां पर बहुसंख्यक आबादी पर ही शासन व्यवस्था कायम होती है।

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उदाहरण के लिए पंजाब और जम्मू-कश्मीर है। पंजाब में सिख आबादी की खिल्ली उड़ाने, सिख आबादी को अपमानित करने या फिर सिख आबादी के आस्था प्रतीकों पर चोट कर कोई दल शासन का अधिकार हासिल नहीं कर सकता है।

ठीक इसी प्रकार जम्मू कश्मीर में धारा 370 के पहले वाली स्थिति में बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियां ही शासन करती थी।

पंजाब और जम्मू कश्मीर में बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ रहने वाली राजनीतिक पार्टियां कभी भी सत्ता का दावेदार नहीं हुई। कम्युनिस्ट तानाशाही ही ऐसी शासन पद्धति हैं जहां पर सभी धार्मिक आस्था और सभी वर्गो के प्रतीक चिन्हों पर चोट होती है।

लेकिन कम्युनिस्ट तानाशाही घोर हिंसक होती है, घोर अमानवीय होती है, घोर दमनकारी होती है, मनुष्यता को गुलामी में घेरकर रखने वाली होती है। इसलिए कम्युनिस्ट तानाशाही प्रेरक आईकॉन नहीं हो सकती है।

पर भारत की कांग्रेस पार्टी अपवाद है। कांग्रेस पार्टी बहुसंख्यकों के प्रतीकों को छिन्न-भिन्न कर, बहुसंख्यकों की अस्मिता को जूतों से रौंद कर, बहुसंख्यकों को अपमान कर, बहुसंख्यकों को दोयम दर्जे के नागरिक बना कर, संवैधानिक रूप से बहुसंख्यकों को धार्मिक अधिकार से वंचित कर सत्ता पर बैठती रही है।

कोई एक दो बार नहीं बल्कि बार-बार भी। जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी तक इसके उदाहरण हैं। एक प्रश्न आपके बीच उठता रहेगा कि बहुसंख्यक संवैधानिक रूप से भी धार्मिक तौर पर अधिकार से कैसे वंचित हैं?

मुस्लिम आबादी अपने धर्म के अनुसार चार-चार शादियां कर सकता है। क्या कोई हिन्दू चार शादियां कर सकता है? अगर कोई हिन्दू दूसरी शादी करता है तो फिर उसकी जगह जेल होगी।

कोई भी मुस्लिम आबादी और अन्य अल्पसंख्यक आबादी अपना शिक्षण संस्थान, मेडिकल कालेज तक खोल कर सरकारी सुविधा हासिल कर सकता है पर उस पर सरकार के नियम कानून नहीं लागू होंगे पर ऐसा अधिकार बहुसंख्यक आबादी के पास नहीं है।

मुस्लिम आबादी अपने स्कूलों में कूरान को पढ़ा सकता है पर कोई बहुसंख्यक आबादी अपने स्कूलों में गीता और रामायण नहीं पढ़ा सकता है। ये उदाहरण साबित करने के लिए काफी हैं कि इस देश के बहुसंख्यक दोयम दर्जे के ही नागरिक हैं।

मूर्ख तक यह है कि हम पंथ निरपेक्ष हैं। हमारा संविधान पंथ निरपेक्ष है। पर हम पंथ निरपेक्ष क्यों है, हमारा संविधान पंथनिरपेक्ष क्यों हैं? क्या आपने इस पर विचार किया है? इसलिए कि अभी आबादी के तौर पर हिन्दू अधिक है और मुस्लिम कम हैं।

मुस्लिम की संख्या जैसे ही 30 प्रतिशत होगी वैसे ही भारत का पंथनिरपेक्ष संविधान की स्थिति जर्जर और निष्प्राण होने लगेगा। मुस्लिम आबादी जैसे ही 40 प्रतिशत कुछ ज्यादा होगी वैसे ही भारतीय का पंथनिरपेक्ष संविधान की काया को जला कर राख कर दी जायेगी।

दुनिया में कोई ऐसा उदाहरण कोई दे सकता है क्या?, जिसमें आधी आबादी मुस्लिम हो और उस देश का संविधान पंथनिरपेक्ष हो और वहां की सत्ता पर राज करने वाली पार्टी का आधार व सोच बहुसंख्यक आबादी की खिल्ली उड़ाने वाली, अपमान करने वाली या फिर बहुसंख्यक आबादी को संवैधानिक तौर पर गुलाम बन कर रखने वाली है?

ऐसा उदाहरण दुनिया में कहीं भी नहीं है। यह सब उसी कांग्रेस की करतूत है जिस कांग्रेस पर आज सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का राज है। भारत का संविधान तो जवाहरलाल नेहरू की ही धरोहर है। कांग्रेस यह कहना नहीं भूलते की संविधान हमने बनाया है, यह हमारी धरोहर है।

जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि वे मन-मस्तिष्क से मुसलमान हैं। इस सिद्धांत पर ही उनकी कांग्रेस चली, उनके खानदान के इंदिरा गांधी, राजीव गांधी चले। अब इसी सिद्धांत पर सोनिया गांधी चल रही है, राहुल गांधी चल रहे हैं और प्रियंका गांधी चल रही है।

यूपीए वन और यूपीए टू के समय में जब सोनिया गांधी सुपर प्रधानमंत्री थी और उनके चंपू मनमोहन सिंह प्रधानमंत्रे थे तब उनकी पूरी नीति बहुसंख्यकों को अपमानित करने और जमींदोज करने की थी। हिन्दुओं को अपमानित करने लिए , हिन्दुओं की खिल्ली उड़ाने के लिए, हिन्दुओं को दोयम दर्जे के नागरिक बनाने के लिए, हिन्दुओं के प्रतीक चिन्हों को जमींदोज करने के लिए एक सरकारी संस्था बनायी गयी थी।

उस संस्था का नाम था सलाहकार परिषद। सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी हुआ करती थी। हिन्दू धर्म के घोर विरोधियों को खोज-खोज कर  सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया गया था।

हर्षमंदर, तीस्ता सितलवाड़ जैसे दर्जनों हिन्दू विरोधी इस सलाहकार परिषद के सदस्य थे। इस सलाहकार परिषद ने एक ऐसे अधिनियम की परिकल्पना की थी कि दंगे में सिर्फ हिन्दू जेल जायेंगे, दंगे में सिर्फ हिन्दुओं को ही जिम्मेदार ठहराया जायेगा, दंगे की जांच और दंगे पर फैसला सुनाने वाले जज मुस्लिम होंगे।

उस अधिनियम के खिलाफ हिन्दू संगठनों की प्रतिक्रियाएं भी तेज हुई थी। अगर तीसरी बार कांग्रेस केन्द्रीय सत्ता में आती तो फिर वह अधिनियम भी संसद से पास करा दिया जाता। मनमोहन सिंह की सरकार ने रामसेतु पर सुप्रीम कोर्ट में एफडेविट देकर कहा था राम भगवान नहीं है, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है।

क्या कांग्रेस कभी भी कह सकती है कि अल्ला या यीशु काल्पनिक पात्र है? कांग्रेस ऐसा कहेगी तो मान लीजिये कि कांग्रेस का वोट बैंक सदा के लिए हवाहवाई हो जायेगा।

अभी-अभी कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हिन्दुओं को अपमानित करने वाले जो बयानबाजी की है, वह तो कांग्रेस का मूल चरित्र है। इसमें अप्रत्याशित होने का कोई औचित्य नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी ने जय श्रीराम बोलने वालों को हिंसक और राक्षत बताया है।

अगर ऐसा ही कुछ बयान किसी ने मुस्लिम देश में देता तो उसका हश्र क्या होता? यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। उसका हश्र निश्चित तौर हिंसक होता और डरावना होता? फ्रांस में सिर्फ प्रश्न पूछने और चित्राकंन सहित पढ़ाने पर मुस्लिमों ने एक टीचर की हत्या कर दी थी।

एक मैगजीन द्वारा मुसलमानों के प्रतीक चिन्ह के खिलाफ कार्टून बनाने मात्र पर मैगजीन के कार्यालय को जला कर राख कर दिया गया था, उस मैगजीन के करीब एक दर्जन पत्रकारों की हत्या कर दी गयी थी। सलमान खुर्शीद हिन्दुओं की तुलना बोकोहरम और आईएस की आतंकवादियों से की है।

वास्तविक स्थिति तो यह है कि भारत में हिन्दू ही जगह-जगह से खदेड़े जा रहे हैं। क्या कश्मीर से हिन्दू नहीं खदेंडे गये? क्या पश्चिम बंगाल से हिन्दुओं का सफाया नहीं हो रहा है? देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों से हिन्दुओं को खदेड़ा गया है।

मुस्लिम बहुलतावाले क्षेत्रों में हिन्दुओं को अपनी पूजा पद्धति से वंचित किया जा रहा है। ऐसी खबरें आम हो रही हैं। हिन्दुओं की आबादी लगातार घट रही है। हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा है। धर्म परिवर्तन के हथकंडे भी जगजाहिर है।

योगी सरकार की जांच के बाद कई मौलवी और मुस्लिम नेता धर्म परिवर्तन के आरोप में जेल भेजे गये हैं। ईसाई मिशनरियों का धर्मपरिवर्तन का खेल पुराना है। धर्म परिवर्तन के लिए लोभ, लालच और डर का हथकंडा अपनाया जाता है।

सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी जैसे लोगों पर तालियां बजाने वाले सांप्रदायिकता की एकांगी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन कर अपनी पार्टी की मूल सोच को ही आगे बढाया है। यानी मुस्लिम प्रेम।

अंथोनी कमिटी की रिपोर्ट थी कि कांग्रेस अति मुस्लिमवाद और मुस्लिम प्रेम के कारण ही 2014 का लोकसभा चुनाव हार गयी। अंथोनी कमिटी की रिपोर्ट कांग्रेस के लिए जीवन रेखा थी।

अंथोनी कमिटी की रिपोर्ट अब शायद कांग्रेसियों सहित सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को याद भी नहीं होगी। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी कभी भी सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी जैसे हिन्दू विरोधियों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन नहीं करते। मोदी के प्रकटिकरण के बाद भी इस तरह की सोच से जुड़ा रहना घोर आत्मघाती राजनीति है।

संपर्क: विष्णुगुप्त

मोबाइल नंबर: 9315206123

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