रणेन्द्र के उपन्यास- गूंगी रुलाई का कोरस- में भारत की साझा संस्कृति

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रणेन्द्र के उपन्यास- गूंगी रुलाई का कोरस- को पढ़कर पूरा किया। उपन्याकस ने मन मस्तिष्क पर धाक जमा लिया है। इसमें भारत की साझा संस्कृति झलकती है।
रणेन्द्र के उपन्यास- गूंगी रुलाई का कोरस- को पढ़कर पूरा किया। उपन्याकस ने मन मस्तिष्क पर धाक जमा लिया है। इसमें भारत की साझा संस्कृति झलकती है।
  • अमरनाथ
अमरनाथ
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रणेन्द्र के उपन्यास- गूंगी रुलाई का कोरस- को पढ़कर पूरा किया। उपन्याकस ने मन मस्तिष्क पर धाक जमा लिया है। इसमें भारत की साझा संस्कृति झलकती है। हिन्दुस्तानी संगीत के बहाने भारत की साझा संस्कृति को बेहद रोचक ढंग से चित्रित करने वाला इस विषय पर मेरी दृष्टि में अकेला यह उपन्यास अपनी प्रासंगिकता की दृष्टि से भी बेजोड़ है।

मुझे बराबर लगता रहा है कि सांप्रदायिक ताकतें चाहे देश की जनता में जितना भी जहर घोलें, देश को जितने भी टुकड़ों में बांट दें, किन्तु हिन्दुस्तानी संगीत के इतिहास को सांप्रदायिकता के आधार पर कभी नहीं बांटा जा सकता। जबतक हिन्दुस्तानी संगीत है, भारत की सामासिक संस्कृति भी अक्षुण्ण बनी रहेगी। रणेन्द्र जी ने अपनी इस कथाकृति में इस सत्य को जिस तरह मौसिकी मंजिल की चार पीढ़ियों की दास्तान के बहाने उजागर किया है, वह बेमिसाल है।

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उपन्यास की केन्द्रीय कथा मौसिकी मंजिल से जुड़ी है जो बंगाल के शिउड़ी में है। यह बाउल बहुल क्षेत्र है। किन्तु मौसिकी मंजिल के संगीत का विस्तार बंटवारे के पहले के अखंड भारत अर्थात बंगलादेश से लेकर पाकिस्तान तक है। भारत में भी वली दकनी के मजार के जमींदोज होने और उसपर सड़क बनने की घटना से आरंभ होने वाली कथा शिउड़ी जुटान तक चलती है। इसमें बाबा गोरखनाथ की परंपरा के जोगियों से लेकर बंगाल के बाउलों तथा संगीत के विविध घरानों से संबंध जोड़कर हिन्दुस्तानी संगीत के बहुआयामी चरित्र, उसकी व्यापकता और महानता का रोचक तथा मार्मिक चित्रण किया गया है। कथाकार की शोध-दृष्टि पूरे उपन्यास में व्यंजित है।

कथा मुख्यतः बंगाल केन्द्रित है। इसलिए बांग्ला भाषा और उसकी संस्कृति का कथाकार ने जिस तरह चित्र खींचा है, वह अद्भुत है। पठनीयता बेजोड़ है।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का विश्लेषण करते समय उपन्यासकार की दृष्टि सदा अपना संतुलन बनाए रहती है। कच्छप रक्षा सेना तथा सुआर्यन कम्प्यूटर ट्रेनिंग एकैडमी के कारनामों का जिक्र करने के साथ ही उपन्यासकार की दृष्टि इस विषय पर भी है कि, “इस्लामी भाई चारे की बहुत चर्चा होती है। पैन इस्लामिज्म भी बहसों भाषणों लेखों में बहुत इस्तेमाल होता है, लेकिन पश्चिम और मध्य एशिया में तो उल्टा ही दिख रहा है। वहाँ तो एक इस्लामी देश ही दूसरे इस्लामी देश को बर्बाद करने पर तुला है।”

पिछले कुछ वर्षों से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के परिप्रेक्ष्य में यह उपन्यास हर जागरूक नागरिक, खास तौर पर नयी पीढ़ी के लिए अवश्य पठनीय है।

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