हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद ने जब हिटलर को करारा जवाब दिया

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हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद ने जब हिटलर को करारा जवाब दिया, उसे काफी रोमांचकारी है। संवाद पढ़कर आप भी बोल उठेंगे वाह, क्या करारा जवाब दिया !
हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद ने जब हिटलर को करारा जवाब दिया, उसे काफी रोमांचकारी है। संवाद पढ़कर आप भी बोल उठेंगे वाह, क्या करारा जवाब दिया !
हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद ने जब हिटलर को करारा जवाब दिया, वह काफी रोमांचकारी है। संवाद पढ़कर आप भी बोल उठेंगे वाह, क्या करारा जवाब दिया !  हेमंत शर्मा की नई पुस्तक ‘एकदा भारतवर्षे…’ में ऐसी कई कहानियां हैं। सुभाषचंद्र बोस की भी एक रोचक कहानी है।
  • सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

सुभाषचंद्र बोस एक बार रेल की प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे। उनके सिवा उस डिब्बे में कोई नहीं था। अचानक उसमें एक महिला चढ़ी। जब गाड़ी चलने लगी, तब उस महिला ने अपना मायाजाल फैलाया। बोली, ‘‘तुम्हारे पास जो कुछ भी हो, उसे दे दो। नहीं तो अगले स्टेशन पर चिल्लाकर तुम्हें बदनाम कर दूंगी।’’

सुभाष बाबू चुप थे। चुप ही रह गए। महिला ने कई बार अपनी बात दुहराई। तब सुभाष बाबू ने संकेत में कहा कि ‘‘मैं गूंगा और बहरा हूं। आप क्या कह रही हैं, मैं समझ नहीं पा रहा हूं। कृपया आप लिख कर दीजिए।’’ महिला ने तुरंत वही बात लिखकर दे दी।

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अब एक लिखित दस्तावेज सुभाष बाबू के हाथ में था। उन्होंने हंसते हुए कहा कि अब जो आपकी इच्छा हो, करिए। महिला गंभीर हुई। उसे लगा कि उसने भयंकर भूल कर दी। पर, अब वह क्या कर सकती थी? गिड़गिड़ाने लगी। और, क्षमा मांगने के सिवा उसके पास कोई रास्ता न रहा।

सुभाष बाबू ने उसे क्षमा कर दिया। सुभाष बाबू के लिए यह एक क्षण का फैसला था। इस एक क्षण में उन्होंने विवेक की नींव पर पैर रखकर पासा ही पलट दिया। ऐसे क्षण हम सभी के जीवन में आते हैं। तय हमें करना है- डर या विवेक? जीवन के राजमार्ग में बिना लड़खड़ाए चलते रहने के लिए यह फैसला बेहद जरूरी है।

ऐसी ही कथाओं का संकलन है ‘‘एकदा भारतवर्षे..।’’ इसके रचयिता व जनसत्ता में हमारे सहकर्मी रहे हेमंत शर्मा का नाम ऐसे लेखकों में शमिल हो गया है, जिनकी लगभग सारी पुस्तकें पठनीय हैं। हेमंत जी की अन्य पुस्तकें हैं- भारतेंदु समग्र (संपादन), युद्ध में अयोध्या, अयोध्या का चश्मदीद, कैलास-मानसरोवर की अंतर्यात्रा कराती पुस्तक ‘द्वितीयोनास्ति’ और ‘तमाशा मेरे आगे।’

‘एकदा भारतवर्षे….’ (प्रभात प्रकाशन) के बारे में प्रसून जोशी लिखते हैं- ‘‘ये कथाएं संस्कृति के कैप्सूल हैं। हेमंत जी धरती से उगे हैं। उनके लिए मिट्टी से जुड़ा सत्य बहुत अर्थ रखता है। एकदा भारतवर्षे की कहानियों पर असगर वजाहत की टिप्पणी है, ‘‘इन कहानियों का भावार्थ हमारे वर्तमान समय के साथ जुड़ा है।’’

ध्यान चंद-हिटलर संवाद पढ़कर असगर वजाहत की टिप्पणी आपको माकूल लगेगी। हिटलर ने हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को बुलाकर कहा कि ‘‘मैं तुम्हारे हाकी के खेल पर मुग्ध हूं। मैं चाहता हूं कि तुम भारत छोड़कर जर्मनी आ जाओ। मेजर ध्यानचंद ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘‘श्रीमन् यह असंभव है। जिस देश की मिट्टी से यह तन बना है, जहां का अन्न खाकर बड़ा हुआ हूं। मेरी सांसों में जहां की वायु का प्रकम्पन है, मैं चाहूंगा, अंत तक उसी देश की सेवा करूं।’’

ध्यानचंद के बारे में यह सच्ची कहानी, जो इससे पहले भी कई बार कही जा चुकी है, इस देश की आज की स्थिति में सर्वाधिक मौजूं है। आज इसी देश के अनेक लोग इसी देश का अन्न खाकर  विदेशी इशारों पर इसे टुकड़े-टुकड़े करने का नारा लगाते रहते हैं।

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