ममता बनर्जी बीजेपी को बंगाल में बार-बार बिदका रही हैं

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ममता बनर्जी बीजेपी को बंगाल में बार-बार बिदका रही हैं। बीजेपी ममता बनर्जी के उकसावे पर भी फिलहाल नाराज होने के बजाय खुश है।
ममता बनर्जी बीजेपी को बंगाल में बार-बार बिदका रही हैं। बीजेपी ममता बनर्जी के उकसावे पर भी फिलहाल नाराज होने के बजाय खुश है।

कोलकाता। ममता बनर्जी बीजेपी को बंगाल में बार-बार बिदका रही हैं। बीजेपी ममता बनर्जी के उकसावे पर भी फिलहाल नाराज होने के बजाय खुश है। दरअसल बीजेपी ऐसा एक रणनीति के तहत कर रही है। वह इसी बहाने ममता बनर्जी को एक्सपोज करना चाहती है। अभी वह ममता के खिलाफ किसी एक्शन की हड़बड़ी में नहीं है।

दरअसल बीजेपी में ममता सरकार की कमजोरियों पर सख्त ऐक्शन को लेकर आपस में ही एका नहीं है। एक धड़ा चाहता है कि अभी ममता को बिदकाने का मौका देना चाहिए, ताकि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि संघीय ढांचे के लिए कैसे वह खतरा हैं। अभी तक बंगाल में बीजेपी को जो जनाधार है, उसमें इस कदम से बढ़ोतरी ही होगी।

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दूसरे धड़े की राय है कि ममता के खिलाफ तुरंत सख्त एक्शन होना चाहिए। चुनाव बाद की हिंसा के जो लोग शिकार हुए और पलायन को मजबूर हुए, उनकी नजरों में ममता खलनायक ही रहेंगी। जो अमन पसंद ममता बनर्जी के समर्थक हैं, वे भी ममता की पार्टी टीएमसी के समर्थकों के इस बर्ताव से नाखुश होंगे। पलायन पर कलकत्ता हाईकोर्ट लगातार राज्य सरकार को जिम्मवार मान रहा है। साथ ही उनकी वापसी की जवाबदेही भी हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ही सौंपी है।

सीबीआई द्वारा नारदा स्टिंग मामले में टीएमसी के 4 नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी और उनकी सरकार में कानून मंत्री मलय घटक ने जिस तरह सीबीआई मुख्यालय में धरना दिया, उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहले ही प्रतिकूल टिप्पणी कर चुका है। यह सीधे-सीधे संघीय व्यवस्था के खिलाफ आचरण है।

प्रधानमंत्री की बैठक में जान-बूझ कर ममता बनर्जी का विलंब से पहुंचना और उनके तत्कालीन चीफ सेक्रेट्री का प्रोटोकाल तोड़ना भी संघीय ढांचे के खिलाफ आचरण है। इस मुद्दे पर केंद्र ने जब चीफ सेक्रेट्री का तबादला किया तो ममता ने उनका रिटायरमेंट करा अपना सलाहकार बना लिया। केंद्र के फैसले पर ममता बनर्जी ने आपत्ति भी जतायी। यह भी बीजेपी को बिदकाने का ममता का एक प्रयास ही है, लेकिन केंद्र ने चुप्पी साध ली।

दरअसल ममता बनर्जी के खिलाफ केंद्र सरकार सख्त कदम उठाने की पृष्ठभूमि तैयार करने में जुटी है। कदम क्या और किस रूप में होगा, इसका अंदेशा पहले से ही है। ममता बनर्जी भी यह अच्छी तरह समझ रही हैं कि केंद्र सरकार से टकराना उनके लिए भारी पड़ सकता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद वह केंद्र के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में उनका जैसा व्यवहार रहा, वह सख्त कदम की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है। उसके बाद चीफ सेक्रेट्री अलापन बंदोपाध्याय के दिल्ली बुलावे पर भी ममता ने जिस तरह उनका पक्ष लिया, उससे यह बात साबित होती है कि केंद्र के आगे वह झुकने को तैयार नहीं हैं। इससे पहले भी पिछले कार्यकाल में ममता ने केंद्र के निर्देश के बावजूद अपने दो अफसरों को नहीं भेजा था।

केंद्र सरकार ममता के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा तैयार कर रही है, ताकि सख्त कदम उठाने में उसे आधार बनाया जा सके। सूचना के मुताबिक ममता बनर्जी पर पहला आरोप यह होगा कि वे संघीय ढांचे को नष्ट करना चाहती हैं। इस क्रम में सीबीआई के साथ ममता बनर्जी और उनके कानून मंत्री का आचरण सबसे बड़ा आधार होगा। पुलिस प्रमुख राजीव कुमार की गिरफ्तारी के वक्त भी ममता बनर्जी ने सीबीआई के साथ ऐसा ही सलूक किया था। इस बार भी नारदा स्टिंग ऑपरेशन में 4 टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी के वक्त ममता और उनके कानून मंत्री मलय घटक ने सीबीआई मुख्यालय में धरना दिया। तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने सीबीआई दफ्तर पर पथराव किया और ऊटपटांग नारेबाजी की।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तल्ख टिप्पणी भी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ममता और उनके कानून मंत्री की गिरफ्तारी के दिन आचरण उचित नहीं था। उन्हें भी इस मामले में प्रतिवादी बनाया जाना चाहिए। दूसरा बड़ा मुद्दा चुनाव बाद की हिंसा का है, जिसकी वजह से 100000 लोगों के पलायन की बात कही जा रही है। कोलकाता हाईकोर्ट ने इस पर भी टिप्पणी की है कि पलायन कर गए लोगों को वापस लाने का काम राज्य सरकार का है।

केंद्रीय योजनाओं को लागू न करना या केंद्र सरकार के फैसले का विरोध ममता के लिए घातक हो सकता है। चुनाव के पहले और उसके बाद की हिंसा के आंकड़े, राज्यपाल की लगातार आती रही टिप्पणी और केंद्र को भेजी जाती रही उनकी रिपोर्ट ममता सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। यह अलग बात है कि केंद्र सरकार सख्त कदम कब उठायेगी, यह अभी तय नहीं है।

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