चुनाव खर्च बढ़ने के पीछे कुछ और कारण तो नहीं?

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वोटिंग मशीन
वोटिंग मशीन
  • हेमंत

चुनाव खर्च बढ़ने के पीछे कुछ और कारण तो नहीं? क्या वोटरों के अनुभव यह नहीं कहते कि ‘चुनाव-खर्च का बढ़ना’ वोट देने के अधिकार पर ‘बढ़ते खतरे’ का संकेत है? याद रहे, चुनाव आयोग के उक्त खर्च में वह खर्च शामिल नहीं है, जो चुनाव-प्रचार पर पार्टी या गठबंधन खर्च करते हैं। या/और फिर स्वयं उम्मीदवार खर्च करते हैं। उसमें ‘बाहुबल’ पर रुपयों में होने वाले खर्च का कोई ‘वैध’ आंकड़ा होता भी नहीं। ‘धनबल’ में भी कितना सफेद धन है और कितना काला, यह मालूम करना भी कठिन है।

चुनाव-प्रचार के दृश्य तो यह संदेह पुख्ता करते हैं कि अब सामान्य आदमी चुनाव लड़ने की बात सोच ही नहीं सकता। लड़ने के लिए लाख, तो सीट पर कब्जे के लिए करोड़ चाहिए। ज्यों-ज्यों चुनाव लड़ने के लिए ‘वाजिब’ धनबल-बाहुबल की ‘धाक’ बढ़ रही है, त्यों-त्यों वोट देने के अधिकार पर खतरा बढ़ रहा है। चुनाव आयोग का बढ़ता खर्च इस ओर इशारा करता है। क्या फील गुड के फरिश्ते या मातम के मसीहा यह मानेंगे?

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इस ‘इशारे’ को समझने के लिए फिलहाल एक मिसाल है- ‘टोटलाइजर’ का प्रस्ताव। यानी ‘इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में टोटलाइजर उपकरण लगाने का प्रस्ताव। वैसे, ‘टोटलाइजर’ प्रस्ताव के बारे में देश के आम मतदाता शायद ही कुछ जानते हैं। पिछले दो साल में मुख्य धारा की मीडिया में इस पर चर्चा भी बंद हो चुकी है। सोशल मीडिया को तो शायद इस पर कोई ठोस विमर्श करने में रुचि नहीं। इस बारे में अगस्त, 2016 में कुछ अखबारों में एक छोटी-सी खबर आयी। 2017 में एक खबर आयी बस। फिर तो ‘टोटलाइजर’ शब्द तक मीडिया से गायब हो गया! अब जानते हैं कि क्या है टोटलाइजर।

‘टोटलाइजर’ एक तंत्र है। इसे निर्वाचन आयोग ने बूथ-वार मतदान पैटर्न को छिपाने के लिए प्रस्तावित किया था। उसने इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के जरिए बूथों में होने वाली वोटिंग की गिनती ‘टोटलाइजर’ तंत्र के तहत लगभग 14 बूथों के वोटों को एक साथ किये जाने के प्रावधान की अनुमति मांगी थी।

इस सिलसले में 2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें मतदाताओं को संबद्ध चुनाव क्षेत्रों में डराने से रोकने के लिए विभिन्न मतदान केंद्रों में मतों को गिनती की प्रक्रिया के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी। 2014 के आम चुनाव के दौरान महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री द्वारा कथित तौर पर मतदाताओं को धमकी दिये जाने की खबर इस रूप में सार्वजनिक हुई कि “उनकी पार्टी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन रीडिंग से ‘वोटिंग पैटर्न’ का पता लगाने में सक्षम होगी!” निर्वाचन आयोग ने 2014 में होशंगाबाद (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) में पाया कि सोहागपुर क्षेत्र के मोकाल्वाडा मतदान केंद्र में सिर्फ एक मतदाता ने वोट दिया। आयोग ने उक्त वोटिंग बूथ सहित कई अन्य क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की शुरुआत से पहले के चुनावों में ‘बैलेट पेपर्स’ के जरिये हुए ‘मतदान’ में पड़े वोटों की संख्या से तुलना कर यह जानने की कोशिश की कि ईवीएम मशीन रीडिंग से ‘वोटिंग पैटर्न’का पता लगा सकने की संभावना या आशंका में कितना दम है?

इस तुलनात्मक अध्ययन के बाद चुनाव आयोग ने माना कि पोलिंग स्टेशन वार मतगणना होने की स्थिति में ऐसी स्थिति आ जाती है कि कई क्षेत्रों और पॉकेट में वोटिंग पैटर्न सबको पता लग जाता है, जिससे उस क्षेत्र के मतदाताओं को डराया-धमकाया जा सकता है।

तब चुनाव आयोग ने 2008 में यूपीए सरकार को उक्त ‘टोटलाइजर’ उपाय का सुझाव दिया था। आयोग का कहना था कि टोटलाइजर के इस्तेमाल से ईवीएम में पड़े वोटों की गोपनीयता बनी रहती है। चुनाव आयोग की यह मांग जनवरी 2013 में कानून आयोग (लॉ कमीशन) के पास गई। चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से यह खबर भी मीडिया में आयी कि ‘टोटलाइजर’ मशीन का प्रदर्शन राजनीतिक दलों के सामने किया गया। उस समय कांग्रेस, बसपा, राकांपा ने इसका खुल कर समर्थन किया। लेकिन भाजपा और माकपा ने ‘सैद्धांतिक’रूप से इस पर सहमति जताई और साथ ही यह भी कहा कि इसके इस्तेमाल को लेकर पूरी सतर्कता बरती जाए।

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कानून आयोग ने मार्च, 2015 की अपनी रिपोर्ट में चुनाव आयोग के प्रस्ताव का समर्थन किया। कांग्रेस, राकांपा और बसपा ने भी स्पष्ट रूप से ‘टोटलाइजर’ मशीन के इस्तेमाल के प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन भाजपा, तृणमूल कांग्रेस और पीएमके ने टोटलाइजर का विरोध किया! उसी दौरान एक खबर ‘आयी’ और ‘गयी’ हो गयी कि “चुनाव सुधारों पर 10 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग ने टोटलाइजर मशीन के इस्तेमाल की सिफारिश की। इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में टोटलाइजर उपकरण लगाने की अपनी मांग के समर्थन में उसने ‘कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स’, 1961 में संशोधन की मांग रखी। उसने कहा कि इस मशीन से मतगणना के समय मतदान रुझान को सार्वजनिक होने से रोका जा सकेगा। इससे मतदाताओं की गोपनीयता भी बरकरार रहेगी। इस प्रस्ताव को कानून मंत्रालय से भी हरी झंडी मिल चुकी है।”

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यह खबर यूं गयी कि ‘गुम’ हो गयी। उस दौर में मीडिया में सत्ता-राजनीति पर ‘मोदी-गोदी’ विमर्श का ऐसा शोर मचा कि उसमें शामिल आम लोग ‘मेला देखने का मजा लूटने में रह गए और मेले में अपने मां-बाप से बिछड़ कर रोते बच्चे जैसी इस खबर पर किसी का ध्यान नहीं गया! करीब एक साल बाद यह खबर गुमशुदा बच्चे की तलाश में छपने वाले विज्ञापन की तरह मीडिया में आयी!

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22  अगस्त, 2016 को मीडिया में खबर छपी कि मतगणना के दौरान वोटिंग का रुझान सार्वजनिक होने से रोकने के लिए ‘टोटलाइजर’ मशीन के इस्तेमाल पर फैसला लेने के लिए केंद्र ने मंत्रियों की एक समिति बनाई। गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति को इस पर निर्णय लेकर केंद्रीय कैबिनेट को सिफारिश करनी थी। समिति में वित्तमंत्री अरुण जेटली, तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को सदस्य बनाया गया। सरकारने यह कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उठाया। संभवतः 5 अगस्त को कोर्ट ने सरकार को टोटलाइजर पर ‘आठ हफ्ते’ में फैसला करने का निर्देश दिया। उस वक्त यह सूचना भी प्रकाश में आयी कि कानून मंत्रालय ने पीएमओ को एक ‘नोट’ भेजी, जिसमें कहा गया- “सुप्रीम कोर्ट में पिछले दो वर्षों से याचिका पर सुनवाई चल रही है। कोर्ट का सख्त निर्देश है कि इस बारे में जल्द से जल्द फैसला लिया जाए। ”यानी पीएमओ के नोट के बाद पीएमओ के निर्देश पर मंत्रियों की समिति बनाई गई।

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समिति से कहा गया कि वह टोटलाइजर मशीन का इस्तेमाल करने या नहीं करने पर अपनी रिपोर्ट केंद्रीय कैबिनेट को सौंपे। मौजूदा व्यवस्था में प्रत्येक मतदान केंद्र के वोटिंग का रुझान सार्वजनिक हो जाता है। इससे उक्त क्षेत्र के मतदाताओं के उत्पीड़न का खतरा बना रहता है।

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भारतीय सत्ता-राजनीति में ‘टाइम’ से ज्यादा महत्वपूर्ण है ‘टाइमिंग’। सो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के ‘आठ सप्ताह’ के निर्देश का सम्मान करते हुए करीब 18 या 20 सप्ताह बाद अपना क्लीयर कट स्टैंड भेज दिया। सो फरवरी, 2017 में मीडिया जगत के किसी ‘निष्पक्ष’ कोने में यह खबर छपी कि एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में ‘टोटलाइजर’ का विरोध किया!

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जहां चुनाव आयोग ने दलील दी कि एक-एक ईवीएम मशीन के जरिये गिनती करने से गोपनीयता नहीं रहती है। वहीं मोदी सरकार ने कहा कि इस मशीन के इस्तेमाल से सभी पोलिंग स्टेशनों के आंकड़े एकत्र हो जाने के बाद यह पता चलना कठिन हो जाएगा कि किस बूथ से किस पार्टी या प्रत्याशी को कितने वोट मिले? यानी मोदी सरकार ने ‘टोटलाइजर’ को गैरजरूरी ठहरा दिया। बस! तब से निर्वाचन आयोग की बोलती बंद!!

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