राज कपूरः जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां

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जयंती पर विशेष

  • नवीन शर्मा

जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां-  गीत आज राजकपूर की जयंती पर बरबस याद आ रहा है। राज कपूर हिंदी सिनेमा के सबसे शानदार डायरेक्टरों में शुमार हैं। इसलिए उन्हें ग्रेटेस्ट शोमैन भी कहा जाता है। वे पृथ्वीराज कपूर जैसे मशहूर अभिनेता के पुत्र थे, लेकिन वे पहली ही फिल्म में हीरो के रूप में लांच नहीं हुए थे, जैसा कि बाद के वर्षों में होता रहा है। उन्होंने निर्देशक केदार शर्मा के यहां कैल्पर बाय के रूप में काम शुरू किया था। यहां तक कि एक बार ज्यादा जोर से क्लैप करने पर उन्हें केदार शर्मा का जोरदार थप्पड़ भी खाना पड़ा था। कुछ वर्षों बाद केदार शर्मा की ही फिल्म नीलकमल में वे हीरो के रूप में आए।

सृष्टिनाथ कपूर से रनबीर राज कपूर होते हुए राज कपूर बने

जन्म के समय तो इनका नाम सृष्टिनाथ कपूर रखा गया था। उसे बदल कर रनबीर राज कपूर किया गया और बाद में सिर्फ राज कपूर नाम से मशहूर हुए। राज कपूर शुरू में नौसैनिक बनना चाहते थे। उन्होंने नौसैनिक स्कूल, डफरिन में एडमिशन लिया, लेकिन फाइनल एक्जाम में फेल हो गए। इसके बाद उन्होंने अपने खानदानी काम सिनेमा की ओर रुख किया।

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1943 में राज कपूर ने आरके स्टूडियो की स्थापना की। वे सबसे कम उम्र के स्टूडियो मालिक बने थे। 24 साल की उम्र में राजकपूर ने ‘आग’ (1948) का निर्माण और निर्देशन किया।  1951 में उन्होंने ‘आवारा’ बनाई। इस फिल्म ने राजकपूर को काफी लोकप्रियता दी। यह उनकी सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है।  इस फिल्‍म की धमक सोवियत संघ में भी महसूस की गई। वहां भी- आवारा हूं- गीत खूब लोकप्रिय हुआ। राजकपूर वहां भी स्टार हो गए।

नर्गिस के साथ बनी जोड़ी

बरसात’ (1949) फिल्म से राजकपूर और नर्गिस की जोड़ी बन गई थी। यह जोड़ी सिर्फ सिल्वर स्क्रिन पर ही नहीं रही, बल्कि वे प्रेमी युगल के रूप में जाने जाने लगे। राज कपूर ने  ‘श्री 420’ (1955), ‘जागते रहो’ (1956) व ‘मेरा नाम जोकर’ (1970) जैसी सफल फ़िल्मों का निर्देशन व लेखन किया और उनमें अभिनय भी किया। राजकपूर अभिनेता ‘चार्ली चैपलिन’ से काफी प्रभावित थे। उनके अभिनय में उनकी स्पष्ट छाप दिखाई देती है। राजकपूर इसलिए महान थे कि उनकी लगभग सभी फिल्मों में कोई ना कोई मैसेज होता था। यहां तक कि वे अपराधी का भी रोल कर रहे होते थे तो भी  ईमानदार  व मानवता को उनके किरदार नहीं छोड़ते थे।

मेरा नाम जोकर पहले फ्लाप, फिर हुई हिट

राज कपूर की क्लासिक फिल्‍म मेरा नाम जोकर फ्लाप हो गई थी। लोग उस कहानी को पता नहीं पाए, लेकिन बाद में वीडियो का जमाना आया तो यह आरके स्टूडियो की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्‍म बन गई। इस फिल्‍म को छोटा कर तीन घंटे की बना कर दोबारा रिलीज किया गया था। इस बार ये फिल्‍म हिट हो गई ।

मेरा नाम जोकर में राज कपूर ने काफी पैसे लगाए थे। फिल्‍म फ्लाप हो गई, लेकिन राज कपूर निराश होकर नहीं बैठ गए। वे नई ऊर्जा के साथ किशोरवय की प्रेम कथा बॉबी के निर्माण में जुट गए। आर्ची कामिक्स के पाठक राज कपूर ने ख्वाजा अहमद अब्बास और वीपी साठे को बॉबी की कहानी लिखने की जिम्मेदारी दी। बॉबी अपने समय की सबसे बड़ी हिट फिल्‍म साबित हुई। इसके बाद ही राज कपूर ने अपना घर खरीदा।

उनका यौन बिंबों का प्रयोग अक्सर परंपरागत रूप से सख्त भारतीय फ़िल्म मानकों को चुनौती देता था। वे अपनी लगभग हर फिल्म में अभिनेत्रियों के अंगों को दिखाने का कोई ना कोई बहाना या कहे सिच्यूएशन ढूंढ लेते थे। जैसे मेरा नाम जोकर में सिम्मी ग्रेवाल व पद्मिनी, सत्यम शिवम सुंदरम में जीनत अमान, रामतेरी गंगा मैली में मंदाकिनी के नहाने का सीन।

राजकपूर की फिल्मों की सबसे खास बात उसकी कहानी होती थी। वे हमारे समाज के अलग-अलग विषयों को दिखाते थे। जैसे श्री 420 में जमाखोरी का मामला था। सत्यम शिवम सुंदरम में निम्न जाति का मसला दिखाया गाया था। प्रेम रोग में विधवाओं की स्थिति को बहुत ही संवेदनशील ढंग से पेश किया गया था।

राजकपूर की फिल्मों की सफलता और आज सत्तर साल बाद भी उन फिल्मों के लोकप्रिय होने की एक सबसे बड़ी वजह उनका कर्णप्रिय गीत-संगीत भी रहा है। राजकपूर को संगीत की अच्छी समझ थी। उन्होंने बहुत ही शानदार टीम बनाई थी। गायक मुकेश तो जैसे राजकपूर की आवाज थे। उनकी लगभग सारी फिल्मों में मुकेश ने ही गीत गाए थे। वहीं संगीत की बागडोर शंकर जयकिशन के पास थी। गीत लिखने के लिए शैलेंद्र थे। इन लोगों की टीम ने एक से बढ़कर एक यादगार गीत दिए हैं, जिन्हें हम आज भी बड़े शौक से सुनते हैं। मेरा जूता है जापानी.. गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। राजकपूर पहले ऐसे अभिनेता थे, जो विदेश में भी प्रसिद्ध थे। सोवियत संघ में उनके काफी फैन थे।

राजकपूर की एक बात जो सबसे ज्यादा भाती है, वो है उनका एक सीधा-साधा इन्सान का किरदार निभाना। आपको तीसरी कसम का हीरामन तांगावाला याद है। इतना सहज अभिनय ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी। मेरा नाम जोकर के राजू के भोलेपन भी आप फिदा हुए बिना नहीं रह पाएंगे।

राज कपूर को शराब का शौक था। वे देर रात में अक्सर शराब के नशे में धुत होकर घर लौटते थे। वे क्रोध में देर देर से चिल्लाते और प्रलाप करते और पत्नी कृष्णा से झगड़ते थे। उनके बेटे ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में लिखता है कि पिता के इस हालत में घर लौटने पर वे डर के मारे रजाई के अंदर घुस कर कांपते रहते थे।

राजकपूर जिस तरह की प्रतिभा के धनी अभिनेता और निर्देशक थे, उनके स्तर का उनका समकालीन एक नाम मुझे लगता है और वो है गुरुदत्त। कुछ मामलों में गुरुदत्त को राजकपूर से भी बेहतरीन कहा जा सकता है, क्योंकि गुरुदत्त ने हीरोइनों के कपड़े उतरवाने के बहाने नहीं तलाशे। इसके अलावा गुरदत्त ने शायद राजकपूर की तुलना में ज्यादा बेहतरीन फिल्में बनाई हैं, भले ही उनकी फिल्मों को राजकपूर जैसी व्यावसायिक सफलता नहीं मिली हो। आप साहेब बीवी और गुलाम, प्यासा व कागज के फूल फिल्मों की तुलना राजकपूर की फिल्मों से कर के देख सकते हैं।

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