भाजपा से कन्नी काट सकता है JDU, जानें कौन से हैं कारण

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पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।
पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुणाव में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से बड़ी चुनौती पीके उर्फ प्रशांत किशोर हैं।

पटना। भारतीय जनता पार्टी को जदयू भंवर में छोड़ सकता है। यह किसी पावर स्ट्रगल को ले नहीं होगा, बल्कि कई कारण होंगे। इसका संकेत जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और वरिष्ठ नेता और आरसीपी सिंह ने दे दिया है। प्रशांत किशोर ने तो साफ तौर पर संकेत दे दिया है कि भाजपा और जदयू दोनों अलग-अलग पार्टियां हैं। कुछ मुद्दों पर सहमति के कारण हम गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। भाजपा जिन राज्यों में पराजित हुई है, वह इसके कारण खुद तलाशे। उसकी जीत या हार में हम साझादार नहीं हो सकते। आरसीपी सिंह ने भी कुछ इसी अंदाज में कहा है। उनका साफ कहना है कि भाजपा के मंदिर मुद्दे से जदयू का कोई लेना-देना नहीं। नीतीश कुमार भी अपनी सेकुलर छवि से  समझौता नहीं करने की बात कई बार दोहरा चुके हैं।

भाजपा के साथ एनडीए में रहने वाले लोजपा नेता रामविलास पासवान ने स्पष्ट कर दिया है कि राम मंदिर मुद्दा एनडीए के एजेंडे में नहीं है। यह भाजपा का एजेंडा नहीं हो सकता। यानी एनडीए के बिहारी घटक दलों ने अपने तेवर तीन राज्यों में भाजपा की पराजय के बाद दिखाने शुरू कर दिये हैं। हाल तक एनडीए का हिस्सा रहे उपेंद्र कुशवाहा ने भी एनडीए छोड़ने के औपचारिक एलान के वक्त स्पष्ट कहा था कि मंदिर-मस्जिद बनाना सरकार का काम नहीं है।

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हालात बताते हैं कि कभी भी जदयू और लोजपा एनडीए से पिंड छुड़ा कर बिहार में एक अलग ध्रुव बना सकते हैं। इस ध्रुव में लोजपा और जदयू की साझीदारी संभव है। दरअसल जदयू के नीतीश कुमार अपनी सेकुलर छवि का फलाफल देख चुके हैं और इस छवि से कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। वह असम की एनआरसी पर अपनी आपत्ति जता चुके हैं। राम मंदिर के लिए अध्यादेश और कश्मीर में धारा 370 पर भी उनकी आपत्ति अभी तक जाहिर नहीं हुई है, लेकिन इशारों में वह भी कई बार कह चुके हैं कि कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करेंगे, भले ही उनके साथ कोई रहे या न रहे।

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इस पूरे प्रसंग में यह आकलन काफी मायने रखता है कि एनडीए से अलग होने के बाद रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा राहुल गांधी से मिलने को बेताब हुए, पर राजद के लगातार न्यौते पर अभी तक उन्होंने खामोशी अख्तियार की है। लोकसबा का चुनाव आते-आते बिहार में राजनीति का तीसरा ध्रुव बन जाये तो कोई आश्चर्य नहीं।

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