पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज की मांगों पर ध्यान दे सरकार: राजीव 

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।

पटना। पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के विकास के लिए रामशरण सिंह सेवा संस्थान के तहत  राज्यव्यापी स्तर पर चल रहे पिछड़ा-अतिपिछड़ा महासम्मेलन के अध्यक्ष सह पूर्व विधायक श्री राजीव रंजन ने पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के समुचित विकास के लिए इस समाज की मांगों को मानने का सरकार से आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि याद करें तो बीपी मंडल की रिपोर्ट के अनुसार पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज की संख्या कुल जनसंख्या का 52% है। यानी बिहार की 11 करोड़ जनसंख्या में लगभग पौने 6 करोड़, लेकिन आजादी के 72 वर्षों बाद भी यह समाज आज तक विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए छटपटा रहा है। अभी हाल ही में केंद्र की एनडीए सरकार ने पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की दशकों पुरानी मांग को मान लिया है, जिससे निश्चय ही इस समाज के लिए विकास के नए द्वार खुलेंगे, लेकिन फिर भी कुछ मसले हैं, जो अभी भी इस समाज की उन्नति और विकास में बाधक बने हुए हैं।

इन्ही मुद्दों पर अपने समाज से चर्चा कर के हमने कुछ मांगें तय की हैं, जिनमें पहली मांग हमारे समाज के लिए कोटा की जगह समुचित राजनीतिक भागीदारी निर्धारित किए जाने को लेकर है। ज्ञातव्य हो कि कुल जनसंख्या में सबसे ज्यादा संख्या रखने वाले हमारे समाज को अभी 8-9% का कोटा मिलता है। हमारी मांग है कि इसे बढ़ाकर कम से कम 40% किया जाए।

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इसके अलावा याद करें तो पिछले कुछ वर्षों में 35-36 विभिन्न जातियों को अतिपिछड़ा समाज में जोड़ दिया गया है, जिसके कारण पहले से इस समाज का हिस्सा रहे विभिन्न जातियों को मिलने वाला लाभ और कम हो गया है। हमारी दूसरी मांग है कि हमारे समाज की आर्थिक और समाजिक रूप से काफी कमजोर माने वाली जातियां जैसे धानुक, चन्द्रवंशी, बिंद एवं मल्लाह जैसी जातियों को महादलित श्रेणी में रखा जाए। श्री रंजन ने कहा कि याद करें तो पिछड़ा समाज में कुर्मी से धानुक जाति को, कुशवाहा से दांगी जाति को पहले अतिपिछडी जाति में डाला गया है। इन जातियों की तरह यादव जाति का भी एक भाग काफी गरीब है। हमारी मांग है कि पहले की ही तर्ज पर यादव समाज के इन हिस्सों को भी अतिपिछडी श्रेणी में डाला जाए, जिससे यह भी तेजी से विकसित हो बाकियों की बराबरी में जल्दी आ जाए।

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राज्य सरकार से हमारा आग्रह है कि पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की तरह, हमारे समाज द्वारा उठाए जा रहे इन मांगो को भी जल्द से जल्द मान ले, जिससे हमारा समाज भी सरकार के विकास कार्यों का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके।

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