साफ पानी का गंदा खेल: भाई, जो ज्यादा कमीशन देगा, काम उसी को मिलेगा !

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साफ पानी का गंदा खेल: भाई, जो ज्यादा कमीशन देगा, काम उसी को मिलेगा !
  • क्या सरकार के आदेश के अनुरुप अधिष्ठापित हो रहा सोलर जलमीनार ?
  • डीसी की जगह लगाया जा रहा है एसी सोलर पंप
  • 30 सितंबर तक हर हाल में लगाना है सोलर जलमीनार
  • क्या होगा उन मुखियाओं का जिनके क्षेत्र में मानक के अनुसार नहीं हुआ है काम ?
  • क्या है विभाग के जेई की जिम्मेदारी ?

रांची: झारखंड सरकार ने राज्य के सभी गांवों को सोलर जलमीनार के माध्यम से पानी मुहैया कराने का फैसला लिया है। नि:संदेह सरकार का ये फैसला सराहनीय है। लेकिन क्या इस फैसले का तय नियम और सही तरीके से इंप्लीमेंट किया जा रहा है? क्या अधिकारी और मुखिया सरकार का साथ दे रहे हैं? इन सवालों का जवाब ढूंढना हो तो पास के किसी गांव में लगे जलमीनार के पास जरुर जायें और देखें। आप देखेंगे कि जारी किये गये फंड के अनुरुप काम बिल्कुल नहीं हो रहा है। आखिर ऐसा क्यों? क्या है माजरा? इसे समझने की जरुरत है।

सरकार ने एससी/एसटी एरिया को छोड़कर सभी पंचायतों में लाभुक समिति गठित कर गांव की आबादी के अनुसार सोलर जलमीनार को अधिष्ठापित कराने के लिये 3,84,691 रुपये का फंड जारी किया है जिसमें 64,383.38 रु. 5 सालों के मेंटेनेंस के नाम पर तय राशि है जो कि मुखिया के पास जमा रहेगा और समय-समय पर उस राशि का इस्तेमाल मेंटेनेंस के लिये किया जायेगा। वहीं एससी/एसटी एरिया में विभाग खुद सोलर जलमिनार अधिष्ठापित करेगा।

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सराकार द्वारा निर्धारित बजट

आदेश में कहा गया कि अब जो सोलर जलमीनार लगाई जायेगी, उसकी लागत पांच लाख तक हो सकती है। इसे तीन तरह के बजट में बांटा गया है। पहला 3,84,691, दूसरा 4,26,122 और तीसरा 4,56,208 रुपए का। ऐसा देखा जा रहा है कि ज्यादातर पंचायतों में मुखिया 3,84,691 के बजट वाली जलमीनार ही लगाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

मुखिया फंड की कौन कर रहा है निगरानी

एक ढेकेदार के मुताबिक 3,84,691.00 रुपये फंड होने के बावजूद भी इस काम में बचत नहीं है। ठेकेदार ने इसका साफ कारण बताया कि कमीशनखोरों की संख्या ज्यादा है जिसमें मुखिया बतौर कमीशन 90,000 रुपये से 1,00,000 रुपये मांगते हैं। बगैर एडवांस कमीशन दिये मुखिया किसी की भी नहीं सुनते। एक बीडीओ के अनुसार कहीं-कहीं मुखिया तो कुछ ठेकेदारों से बतौर कमीशन कुछ माह पहले से ही एडवांस भी ले रखा है। मुखिया के अनुसार ठेकेदार को सोशल ऑडिट भी मैनेज करने को कहा जाता है ताकि सोशल ऑडिट में मुखिया फंसे नहीं।

कमीशन पर और किसकी-किसकी है गिद्ध दृष्टि ?

ठेकेदार ने बताया कि काम की गुणवत्ता पर चर्चा नहीं की जाती। चर्चा होती है तो सिर्फ कमीशन की। मुखिया का तो साफ कहना है कि “अगली बार हम मुखिया रहेंगे कि नहीं पता नहीं। कमाने का यही शुभ अवसर है।“ मुखिया के बाद बारी आती है बीडीओ की जो 25,000, पंचायत सचिव- 20,000, पंचायत सेवक- 15,000, लाभुक समिति- 10,000, जेई- 5,000, एई- 3,000 रु. कमीशन की मांग करते हैं। अब आप समझ सकते हैं कि कहीं-न-कहीं राशि का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में सरकार के मानक के अनुरुप काम होना क्या संभव है? कुछ जिलों में  तो जलमीनार तेज हवा के झोंके को झेल नहीं पाई और गिर गई।

सरकारी आदेशों की अवहेलना !

दूसरी तरफ जलमीनार निर्माण में किसी तरह की अनियमितता को रोकने के लिए उचित कदम उठाने के निर्देश ग्रामीण विकास विभाग ने दिये हैं। विभाग ने सभी जिलों के पंचायत राज पदाधिकारियों को लिखित निर्देश भी दिया है। विभाग ने योजनाओं में हो रहे कमीशनखोरी रोकने के लिए तकनीकी अफसरों के सहयोग प्राप्त करने के आदेश दिये हैं।

साथ ही आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि सौर उर्जा आधारित पेयजल योजनाओं में पंचायत स्तर पर भारी अनियमितता की शिकायतें विभाग को मिल रही हैं। इसके बावजूद पेयजल विभाग के तकनीकी पदाधिकारियों के परामर्श के बिना ही योजना क्रियान्वित की जा रही है।

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