जब एक साथी ने हरिवंश जी पर जातिवाद का आरोप लगाया

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ओमप्रकाश अश्क
ओमप्रकाश अश्क

वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- की धारावाहिक कड़ी 

प्रभात खबर के देवघर संस्करण संपादक की भूमिका निभा चुके मेरे एक मित्र ने 2006 में एक पत्रिका में हरिवंश जी पर लंबा लेख लिखा। लेख का लब्बोलुआब यह था कि हरिवंश जी घोर जातिवादी हैं। उन्होंने अपने सारे संपादक स्वजातीय रखे हैं। तब मैं बड़े प्रमोशन के साथ प्रभात खबर समूह का कार्यकारी संपादक बन कर कोलकाता से रांची मुख्यालय आया था। पत्रकारिता जगत में उस लेख की खासा चर्चा थी। हरिवंश जी ने उस सजज्न पर केस करने का मन बना लिया था। मैंने सलाह दी कि ऐसा आप कत्तई न करें। इससे उसी आदमी का भाव बढ़ेगा। अलबत्ता केस करना ही होगा तो मैं करूंगा, क्योंकि उसमें मेरे नाम का भी जिक्र था या दूसरे साथियों से यह काम कराऊंगा, जिनके नाम इसमें आये हैं। बात आई-गई और खत्म हो गयी। केस-मुकदमे की नौबत नहीं आयी।

इस प्रसंग का जिक्र करना इसलिए मुनासिब समझा कि जो आरोप उन पर लगे थे, उनमें रत्ती भर सच्चाई नहीं थी। सच जो था, उसका एक उदाहरण काफी है। हरिवंश जी प्रभात खबर निकालने के लिए पटना पहुंच चुके थे। वह संपादकीय की टीम बना रहे थे। में कोलकाता तब कारोबार खबर निकाल रहा था। उनदिनों मोबाइल फोन बाजार में आया नहीं था। लैंडलाइन फोन से उन्होंने मुझे सूचना दी कि दो-तीन अच्छे लड़के तुम्हारी नजर में हों तो भेजो। मैंने दो लोगों को- विद्यासागर सिंह (अभी जमशेदपुर हिन्दुस्तान में कार्यरत) और लालबहादुर ओझा को कोलकाता से पटना भेजा। दोनों के बारे में उनकी टिप्पणी थी कि लड़के तो अच्छे हैं, लेकिन विद्यासागर सिंह का नकारात्मक पक्ष एक है कि वह राजपूत हैं। लालबहादुर ओझा के बारे में उनकी धारणा थी कि इतना संस्कारवान लड़का है कि उसके भरोसे परिवार को भी छोड़ा जा सकता है। लालबहादुर ओझा की नियुक्ति हो गयी और विद्यासागर सिंह को उन्होंने वापस भेज दिया, यह कहते हुए कि तुम वहीं कहीं रख लेना। यहां रखने पर जातिवाद का आरोप लगेगा। लालबहादपर ओझा फिलहाल माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में असिस्टैंट प्रोफेसर हैं।

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अब कोई यह कहे कि हरिवंश जी जातिवादी थे या हैं तो कम से कम मेरे गले यह बात नहीं उतरती। जिन दिनों उन पर जातिवादी आरोप वाला लेख लिखा गया और आरोप लगाया गया कि वह स्वजातीय लोगों को ही ज्यादातर जगहों पर संपादक बना कर रखते हैं, उन दिनों रविप्रकाश, अनुज सिन्हा, सुशील भारती, विजय पाठक, अजय कुमार जैसे लोग संपादक थे। संयोगवश पूरी टीम में मैं ही उनका स्वजातीय था, लेकिन यह बात कम लोगों को ही मालूम थी। इसलिए बचपन में ही मैंने अपनी जातिसूचक उपनाम हटा कर अश्क रख लिया था और अपने आचरण से भी मैंने कभी स्वजातीय संबंधों को पेशागत आधार कभी नहीं बनाया। मेरे लिए इसके तीन उदाहरण काफी हैं। राघवेंद्र धनबाद और पटना संस्करण का संपादक रहे। थोड़े व्यतिक्रम के बाद अजय कुमार पटना के संपादक अब भी हैं। अनुराग अन्वेषी कुछ दिनों तक धनबाद के संपादक रहे। इनकी जाति के बारे में आज तक मुझे जानकारी नहीं है। जानने की मुझे कभी जरूरत भी नहीं सूझी। पटना और देवघर में संपादक रहे रविप्रकाश के बारे में मैंने संयोगवश जाना कि वह किस जाति के हैं। वह जब कोलकाता में दैनिक जागरण के संस्करण प्रभारी थे और मैं उनके साथ कोलकाता से रांची आ रहा था तो उनके फेसबुक पोस्ट पर मैंने एक टिप्पणी की कि जागरण में रहते नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी न करें। अहीर की तरह आपकी भाषा ठेठ है। यह गांवों की सामान्य लोकोक्ति है। इस पर उन्होंने जवाब दिया- भैया, हम सच में अहीर हैं तो बुद्धि भी ठेठ और लट्ठमार ही होगी न। तब जाना कि वह किस जाति के हैं।

हां, हरिवंश जी की टाम में तीन राजपूत संपादक समय-समय पर जरूर बने, लेकिन यह बात सबको पता है कि संपादक बनने की उनकी विशेषता सिर्फ स्वजातीय होना ही नहीं थी, बल्कि काम के आधार पर उन्होंने अपनी जमीन तैयार की थी। इनमें एक थे हरिनारायण सिंह। 1989 में कोलकाता से जिन लोगों को लेकर हरवंश जी आ. थे, उनमें चीफ सब एडिटर के रूप में हरिनारायण जी भी थे। साथ में न्यूज एडिटर बन कर आये थे कृपाशंकर चौबे, ओमप्रकाश मिश्रा और संजीव क्षितिज। ओमप्रकाश मिश्रा को रांची रास नहीं आयी, वह कोलकाता सन्मार्ग वापस लौट गये। हरिवंश जी जब चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने पर उनके प्रेस एडवाइजर बने तो उनकी अनुपस्थिति में संजीव जी कार्यकारी संपादक बने थे। कृपा शंकर चौबे जी (अभी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में डीन हैं) बाद में दिल्ली ब्यूरो संभालने चले गये। दूसरा संपादक मैं बना, लेकिन इसके लिए कारोबार खबर के कष्टप्रद और ज्ञानप्रद दिनों से गुजरने के बाद। तीसरे स्वजातीय स्वयंप्रकाश संपादक बने, जो अभी जी न्यूज के बिहार-झारखंड के संपादक हैं।

अब कोई कहे कि हरिवंश जी ने जातिवाद को बढ़ावा दिया तो यह चांद पर कीचड़ उठालने के सिवा कुछ नहीं।

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