सात्विक बंधन ही सही अर्थ में रक्षा बंधन हैः श्रीश्री रविशंकर

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रक्षाबंधन एक ऐसा बंधन है, जो आपको बचाता है। कुछ उच्चतम के साथ आपका बंधन होने की वजह से आप बच जाते हो। जीवन में बंधन होना आवश्यक है, पर किसके साथ? ज्ञान,  गुरु, सच्चाई और स्वयं के साथ बंधन होना आपको बचाता है। जैसे  एक रस्सी आपको बांध भी सकती है या आपकी रक्षा भी कर सकती है, वैसे ही आपका छोटा मन आपको अनावश्यक चrजों से बांध रखेगा, पर बडा मन यानी ज्ञान आपकी रक्षा करेगा,  आपको मुक्त करेगा।

तीन तरह के बंधनः बंधन तीन तरह के होते हैं-   सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक बंधन आपको ज्ञान, सुख और आनंद से बांधता है। राजसिक बंधन आपको हर तरह की इच्छा और आकांक्षाओं से बांधता है। तामसिक बंधन में आपको किसी प्रकार की खुशी नहीं मिलती, पर एक संबंध का अनुभव होता है। उदाहरण के तौर पर, धुम्रपान करने वाले को उससे कोई सुख नहीं मिलता, पर उसे यह आदत छोड़ने में कठिनाई होती है। रक्षाबंधन एक सात्विक बंधन है, जिससे  आप अपने आपको सबसे प्रेम और ज्ञान से बांधते हो।

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यह दिन भाई- बहन के संबंध का समर्थन करता है। बहन अपने भाई की कलाई पर पवित्र धागा बांधती है। यह धागा बहन के अपने भाई के प्रति अस्सीम प्रेम और भावनाओं को व्यक्त करता है, जिसे सही मायने में ‘राखी’ कहते हैं। इसके बदले में भाई अपनी बहन को तोहफा देता है और उसकी रक्षा करने का वादा करता है। रक्षाबंधन अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में उसे राख्री,  बलेवा और सलूनो भी कहते है।

रक्षाबंधन की कथाएः राखी बांधने की प्रथा भारत के पुराण कथाओं में भी पाई जाती है। एक किंवदंती के अनुसार असुर राजा बली भगवान विष्णु जी के बहुत बड़े भक्त थे। भगवान विष्णु जी ने अपना वैकुंठ निवास छोड़ राजा बली के राज्य की रक्षा करने का भार संभाला हुआ था। देवी लक्ष्मी अपने भगवान को वापस वैकुंठ निवास में पाना चाहती थी।

देवी लक्ष्मी जी  ब्राह्मण महिला का रूप लेकर राजा बली के पास शरण मांगने गयीं,  जब तक उनके पति वापस नहीं आते। राजा बली ने उनको शरण में लिया और अपनी बहन की तरह रक्षा की। तभी से रक्षा बंधन का विधान बना।

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