सचिन को रिकॉर्ड बनाते देख तब ज़्यादा खुशी मिली थी 

0
128
सचिन तेदुलकर
सचिन तेदुलकर
  • वीर विनोद छाबड़ा 

विराट कोहली ने सबसे कम इनिंग में फास्टेस्ट 11000 ओडीआई रन का रिकॉर्ड बना डाला। इस दौड़ में उन्होंने अपने ही देश के सचिन तेंदुलकर को पछाड़ा। ख़ुशी हुई। कोहली ही हैं, जो सचिन के रिकार्ड्स को तोड़ रहे हैं। और जिस गति से वो आगे बढ़ रहे हैं, उसके हिसाब से वो शीघ्र ही सचिन से हर मामले में आगे निकल जाएंगे। ये भी अच्छी बात है, इसलिए भी कि उनके रिकॉर्ड कोई बाहरी नहीं तोड़ रहा।

मगर तनिक याद करें सचिन का वो दौर। जब वो सेंचुरी ठोकते थे या कोई रिकॉर्ड बनाते थे तो कुछ ज़्यादा ही खुशी हासिल होती थी, उनके बनाये एक-एक रन पर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती थी। उनके दीवाने रिकार्ड्स बुक्स खोल कर देखने लगते थे, कौन सा माइलस्टोन पार किया है बच्चे ने। बच्चे ने! आज की पीढ़ी चौंकी होगी, सचिन और बच्चा? जी, सही पढ़ा आपने। सचिन बच्चा ही था, जब हमने उसे टेस्ट मैच में इमरान ख़ान एंड कंपनी की ख़तरनाक फ़ास्ट बॉलिंग के विरुद्ध डेब्यू करते देखा था। 16 साल 205 दिन ही तो उम्र थी, किशोरावस्था। अभी मूंछें भी नहीं उगी थीं, कद भी पूरा नहीं निकला था। भोला-भाला सा मासूम चेहरा। तरस आया था। जम कर बद्दुआ दी थी सेलेक्टर्स को, काहे को मरने को उतार दिया ज़ालिमों के सामने?

- Advertisement -

मगर इस मासूम चेहरे ने कुछ ही दिनों में एक से एक दिग्गज़ बॉलरों के छक्के छुड़ा दिए। हमें याद आ रही है मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रफ्फोर्ड के मैदान पर 1990 में 17 साल 112 दिन की उम्र में लगायी गयी सचिन तेंदुलकर की पहली सेंचुरी (119 नॉटआउट), जो इसलिए भी ख़ास थी, क्योंकि ये मैच बचाऊ सेंचुरी थी। स्टेडियम में मौजूद जितने भी लोग थे, खड़े होकर इस बच्चे को सैल्यूट कर रहे थे, बहुत देर तक तालियां बजाते रहे। इससे पहले इंग्लैंड के विरुद्ध दोनों ओडीआई मैच इंडिया ने जीते थे, जिसमें हालांकि सचिन ने मात्र 19 और 31 रन ही बनाये थे, मगर हमें याद है जब दूसरे ओडीआई में सचिन 26 गेंदों पर 31 तूफानी रन बना कर लौट रहे थे तो कमेंटेटर कह रहा था, ये लड़का इंडिया का ही नहीं, वर्ल्ड बैटिंग का फ्यूचर है। कुछ लोग हंसे भी, क्रिकेट में भविष्यवाणी ख़तरनाक है। मगर इस बच्चे ने कमाल ही कर दिया। रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड तोड़ता गया, नए बनाता गया। मगर इसके बावजूद हमने कभी उसे उछलते-कूदते नहीं देखा। चेहरे पर कभी घमंड भी नहीं देखा। बस एक भोली-भाली मुस्कान छोड़ते हुए बैट उठा कर अभिवादन स्वीकार किया।

यह भी पढ़ेंः ओमप्रकाश अश्क की पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर

सचिन को रिटायर हुए पांच बरस होने को आये हैं, हम उन्हें कमेंट्री बॉक्स में बैठे देखते हैं तो वही पहले जैसी लड़कों वाली लुक चेहरे पर दिखती है। ज़िंदगी में जो पाया, उस पर कभी शेखी बघारते नहीं सुनते हैं। उस दिन सिडनी के उस वर्ल्ड कप मैच की याद हो रही थी जिसमें इंडिया ने पाकिस्तान को हराया था और विकेट कीपर किरण मोरे की किसी बात पर जावेद मियांदाद मेंढक की तरह उछले थे। सचिन ने हंसते हुए बताया, मोरे बहुत कुछ बोलते रहते थे। तब हरभजन सिंह ने बहुतेरा पूछा, मोरे क्या बोलते थे? लेकिन सचिन ने नहीं बताया, बस चौड़े चौड़े मुस्कुराते रहे। तो ये होती है पहचान महान खिलाड़ी की, राज को राज ही रहने दो। उनके कई साथी यूं ही उन्हें ‘भगवान’ नहीं कहते थे।

इस पोस्ट का मक़सद ये बताना है कि खिलाड़ी अपने रिकार्ड्स से ही नहीं अपने सरल स्वभाव से महान होता है। और इस मामले में सचिन को कोई पछाड़ नहीं पा रहा है। वो सही मायने में जेंटलमैन क्रिकेटर हैं।

यह भी पढ़ेंः पेड़ काट कर विनाश के खतरे को दावत दे दी है हमने

 

- Advertisement -