संदीप कुमार दुबे केवल पीएच.डी. शोधार्थी नहीं, अच्छे फिल्मकार भी हैं

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संदीप कुमार दुबे केवल पीएच.डी. शोधार्थी नहीं हैं अपितु शोधार्थी के साथ फिल्मकार भी हैं। वे दृष्टि संपन्न फिल्में भी बनाते हैं।
संदीप कुमार दुबे केवल पीएच.डी. शोधार्थी नहीं हैं अपितु शोधार्थी के साथ फिल्मकार भी हैं। वे दृष्टि संपन्न फिल्में भी बनाते हैं।
  • कृपाशंकर चौबे

संदीप कुमार दुबे केवल पीएच.डी. शोधार्थी नहीं हैं अपितु शोधार्थी के साथ फिल्मकार भी हैं। वे दृष्टि संपन्न फिल्में भी बनाते हैं। संदीप ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जनसंचार में एमए किया। दस साल पहले महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से उन्होंने एमफिल किया। तीन साल पहले वे फिर अकादमिक क्षेत्र की तरफ मुड़े और पीएच.डी. शोधार्थी बने। वे सिनेमा पर ही शोध कर रहे हैं। शोध और सृजन एक दूसरे को ताकत देने का काम करते हैं, इसके उदाहरण स्वयं संदीप द्वारा निर्मित वृत्तचित्र हैं। उन्होंने जिन वृत्तचित्रों का निर्माण किया, उसमें भी बहुत अनुसंधान करना पड़ा है। चाहे बुनकरों पर बना वृत्तचित्र हो या मनोरोगियों पर या दिव्यांगता पर या खेलकूद में नवाचार पर या उत्तर मध्य रेलवे की यात्रा पर। फिल्म निर्माण में संदीप की रुचि जागृत होने के पीछे एक कहानी है। फिल्म प्रशिक्षण संस्थान, पुणे से सिनेमेटोग्राफी में डिप्लोमा कर चुके अनूप सिंह को ‘रोड टू संगम’ की मेकिंग में सहायक की जरूरत थी। संदीप कुमार दुबे उनके सहायक बने। अनूप जी की फिल्म के सेट पर कामकाज की प्रक्रिया देखकर सिनेमा निर्माण के प्रति संदीप की रुचि जग गई। उस फिल्म में ओमपुरी और परेश रावल ने अभिनय किया था। बाद में अनूप जी के साथ बनारस के बुनकरों पर आधारित एक वृत्तचित्र की पटकथा संदीप ने लिखी।

संदीप ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सीमांत इलाके रुद्रपुर में ‘पार्टिशन रि विजिटेड’ नामक वृत्तचित्र का छायांकन और संपादन किया। आधे घंटे का वह वृत्त चित्र यह दिखाता है कि विभाजन के बाद भारत आए लोगों को किस प्रकार साम्प्रदायिकता की आग में अपना सबकुछ खोना पड़ रहा है। रुद्रपुर एक ऐसा ही इलाका है जहां विभाजन के कारण भारत आए हजारों सिख परिवारों को बसाया गया था। वे परिवार किन हालातों में रहते हुए धार्मिक कट्टरता से उपजी साम्प्रदायिकता का सामना कर रहे हैं, इसे इस वृत्तचित्र में दिखाया गया है। उत्तर मध्य रेलवे : एक दशक सफलता के नामक वृत्तचित्र में सह निर्देशन, पटकथा लेखन और कुछ हिस्सों के फिल्मांकन का काम संदीप ने किया था। उसमें उत्तर मध्य रेलवे मंडल के दस साल की उपलब्धियों और चुनौतियों को दिखाया गया था।  ‘सेरेब्रल पाल्सी: बियोंड हरायज़ॉन’ नामक वृत्तचित्र का निर्देशन, फिल्मांकन और संपादन  संदीप कुमार दुबे ने  किया  था।  वह वृत्तचित्र सेरेब्रल पाल्सी पीड़ित के इलाज और पुनर्वास की संभावनाओं पर भी प्रकाश डालता है।

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संदीप द्वारा निर्देशित वृत्तचित्र स्फूर्ति इंडिया ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को रचनात्मक व्यस्तता यथा खेलकूद प्रतिस्पर्द्धाओं की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित करता है। 2015  में बरेली के जिलाधिकारी गौरव दयाल द्वारा की पहल पर उस वृत्तचित्र का निर्माण हुआ। 22 दिनों तक चली स्फूर्ति प्रतियोगिता में लगभग 10 हज़ार खिलाड़ियों ने भाग लिया था। खिलाड़ियों और उनके गांव के लोगों द्वारा व्यक्त भावनाओं पर आधारित 20 कड़ियों की यूट्यूब सीरीज भी संदीप ने बनाई।

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद संग्रहालय में आयोजित एक महीने के वृत्तचित्र निर्माण कार्यशाला को निर्देशित करने का अवसर भी संदीप को मिला। उस कार्यशाला में प्रतिभागियों को पांच समूहों में विभाजित किया गया और प्रत्येक समूह ने विभिन्न विषयों पर एक-एक वृत्तचित्र का निर्माण किया। फिल्म व वृत्तचित्र निर्माण के अलावा संदीप ने पत्रकारिता भी की। संदीप कुमार दुबे 2010 में अमर उजाला, बरेली से जुड़े। बाद में वे दैनिक जागरण, इलाहाबाद में चले गए जहां उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, प्रशासन से संबद्ध रिपोर्टिंग की और डेढ़ सौ से ज्यादा उनकी बाइलाइन खबरें प्रकाशित हुईं। कुंभ 2013 की कवरेज का मौका भी संदीप को मिला। उन्होंने छिटपुट अध्यापन भी किया और वाक पटुता के कारण वहां भी अलग पहचान बनाई लेकिन सर्वाधिक मन तो उनका दृष्टिसंपन्न फिल्म व वृत्तचित्र निर्माण में ही रमता है।

 

 

 

 

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