रेखना मेरी जान : ग्लोबल वार्मिंग की पृष्ठभूमि में खिले प्रेम के फूल

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  • नवीन शर्मा

रतनेश्वर सिंह अपने उपन्यास रेखना मेरी जान ग्लोबल वार्मिंग जैसे अलार्मिंग मुद्दे को प्रमख कथा में गूंथ कर हिंदी भाषी पाठकों को पेश करते हैं। वैसे हिन्दी में वैश्विक मुद्दों पर बहुत कम उपन्यास लिखे गए हैं। इस वजह से भी यह उपन्यास अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है।

यह उपन्यास बांग्लादेश की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर  लिखा गया है। इसका कारण यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जब उत्तरी ध्रूव के ग्लेशियरों का बड़ा हिस्सा पिघल जाएगा और समुद्र का जल स्तर कई मीटर बढ़ जाएगा, ऐसे में दुनिया के कई समुद्र तटीय देश समुद्र में डूबने  के कगार पर पहुंच जाएंगे।  इनमें हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश भी शामिल है।

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उपन्यास में बांग्लादेश के निर्माण की भी हल्की झलक दिखाई गई है। इसके बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंस का बांग्लादेश पर प्रभाव भी दर्शाया गया है। कैसे एक बार फिर बांग्लादेश के हिंदुओं पर सांप्रदायिक हिंसा का कहर बरपता है।

इन दोनों मौकों पर हुई हिंसा के  दर्दनाक और झकझोरने वाले वर्णन लेखक करते हैं। लेकिन इन हिंसक दंगों और सांप्रदायिक उन्माद के बाद भी प्रेम का फूल खिलता है। नायिका सुमोना और फरीद की प्रेम कथा इन विपरीत परिस्थितों के बाद भी आकार लेती है। प्रेम कहानियों में सबसे प्रसिद्ध वे होती हैं, जिनमें प्रेमिका या प्रेमी एक दूसरे के लिए अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटते हैं।

इस उपन्यास का नायक फरीद भी अपनी जान हथेली पर लेकर सुमोना को बचाने के लिए ऊफनती नदी में छलांग लगाता है और उसे बाहर निकालता है। फिर जंगल में भी उसका बचाव करता है। अंत में भारतीय सीमा में प्रवेश की जद्दोजहद में फरीद बीएसएफ की गोली का शिकार होकर सुमोना की गोद में जान दे देता है। इस दौरान सुमोना और फरीद इस तरह से एकाकार हो जाते हैं कि सुमोना फरीद का नाम न पुकार कर सुमोना सुमोना ही कहने लगती है। यह कुछ-कुछ उस तरह की ही स्थिति है, जब कोई भक्त ईश्वर से खुद को एकाकार कर लेता है। यह इसकी खास बात है।

इस तरह का ट्रेजिक अंत भी विश्व विख्यात प्रेम कथाओं की विशेषता रही है। रेखना मेरी जान भी उसी परंपरा को निभाता नजर आता है। एक और बात की सुमोना फरीद का शव उठा कर मेरी जान तूफान का मुकाबला करने के लिए बांग्लादेश की तरफ लौटती है।

मुझे लगता है कि फरीद और सुमोना के दो अलग-अलग धर्मों का होने के बाद भी एक दूसरे से प्रेम दिखाने के पीछे लेखक की मंशा स्पष्ट है। लेखक मानवता और प्रेम को धर्म और सांप्रदायिकता से ऊपर दिखाने की कोशिश करते हैं।

रतनेश्वर ने भाषा के स्तर पर भी प्रयोग किए हैं, वे कई ऩए शब्द गढ़ने का भी साहस दिखाते हैं। कुल मिला कर यह उपन्यास नए विषय और प्यारी सी प्रेम कहानी के कारण रोचक और पठनीय बना है।

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