राज बब्बर को- आप तो ऐसे न थे- के एक गीत ने दिलायी पहचान

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राज बब्बर को पहली बार मैंने 1980 में रिलीज़ हुई फिल्म- आप तो ऐसे न थे- में  देखा था। रांची के प्लाजा सिनेमा में फिल्म लगी थी। यह फिल्म कुछ खास नहीं थी। लेकिन इसके एक गीत- तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है, जहां भी जाऊं ये लगता है तेरी महफिल है- ने धूम मचा दी थी।
राज बब्बर को पहली बार मैंने 1980 में रिलीज़ हुई फिल्म- आप तो ऐसे न थे- में  देखा था। रांची के प्लाजा सिनेमा में फिल्म लगी थी। यह फिल्म कुछ खास नहीं थी। लेकिन इसके एक गीत- तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है, जहां भी जाऊं ये लगता है तेरी महफिल है- ने धूम मचा दी थी।

जन्मदिन पर विशेष

  • नवीन शर्मा 

राज बब्बर को पहली बार मैंने 1980 में रिलीज़ हुई फिल्म- आप तो ऐसे न थे- में  देखा था। रांची के प्लाजा सिनेमा में फिल्म लगी थी। यह फिल्म कुछ खास नहीं थी। लेकिन इसके एक गीत- तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है, जहां भी जाऊं ये लगता है तेरी महफिल है- ने धूम मचा दी थी। इस लाजवाब गीत को मशहूर शायर निदा फाजली ने लिखा था। यह गीत फिल्म में तीन बार अलग-अलग अंदाज में इस्तेमाल किया गया था। एक बार मोहम्मद रफी साहब ने गाया है, जो थोड़ा फास्ट है। दूसरा वर्जन हेमलता ने गाया था। तीसरा और सबसे लाजवाब वर्जन मनहर उदास ने गाया था। ये मुझे सबसे अधिक पसंद है।  यह गीत इस फिल्म की पहचान बन गई थी और यह फिल्म भले ही फ्लॉप रही हो, लेकिन राज बब्बर को इस फिल्म से पहचान मिली। इसमें उनके साथ में दीपक परासर भी थे। दीपक लंबे कद के और हैडसम थे। लेकिन सामान्य शक्ल सूरत वाले राज बब्बर अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर दीपक पर भारी पड़े। फिल्म निर्देशकों ने पहचान लिया कि राज बब्बर ही लंबी रेस के घोड़े हैं।

उसी साल राज बब्बर की- प्रेम गीत- फिल्म भी आई। यह फिल्म हिट रही। इससे राज बब्बर की पहचान एक अभिनेता के तौर पर बॉलीवुड में होने लगी। इस फिल्म की एक  गजल- होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो  काफी लोकप्रिय हुई थी। यह गजल जगजीत सिंह की मखमली आवाज में थी।

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इसके बाद जिस फिल्म ने राज बब्बर को एक दमदार अभिनेता के रूप में स्थापित किया, वो फिल्म थी- इंसाफ का तराज़ू। इस फिल्म में राज बब्बर  रईस और बदमाश किस्म के व्यक्ति के किरदार में थे। यह व्यक्ति इतना शातिर था कि  छोटी सी बच्ची को झांसे में लेकर दुष्कर्म करने से नहीं चूकता है। और यहां तक कि उसकी बड़ी बहन से भी दुष्कर्म करता है। इस फिल्म में जीनत अमान और पद्मिनी कोल्हापुरी दो बहनों की भूमिका में थीं।

इस फिल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने एक टीवी शो में कहा था- ”नेगेटिव रोल होने की वजह से इन्साफ का तराजू में मेरा रोल करने को कोई तैयार नहीं था। ऐसे रोल से ऐक्टर की इमेज खराब होती है, लेकिन जब चोपड़ा साहब ने कहा कि यह रोल आपको करना है तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैं थिएटर का आदमी हूं, थिएटर में हम लोग वह रोल करते थे, और करते हैं, जो सेन्ट्रल रोल होता है। मुझे लगा इस फिल्म की पूरी कहानी इसी किरदार की वजह से है।”

”जब फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, तब मेरी मां वहां मौजूद थीं। फिल्म चलने लगी तो लोग खुलकर मेरे किरदार को गालियां देने लगे। फिल्म के बाद जब मां कार में बैठी तो रोने लगीं। मैने पूछा क्या हुआ तो मां ने कहा कि बेटा हम कम खा लेंगे, पर तू ऐसा काम मत कर। तब मुझे लगा था कि मेरी तीन साल की पूरी ट्रेनिंग और मेहनत को मेरी मां के उन लफ्जों ने कामयाब कर दिया।

राज बब्बर को हॉलीवुड में स्थापित करने में मुख्य भूमिका फिल्म निर्देशक बीआर चोपड़ा ने निभाई है। बीआर चोपड़ा ने उन्हें आज की आवाज फिल्म में मौका दिया था। यह फिल्म काफी हिट रही थी और राज बब्बर के किरदार प्रभात को इसमें काफी सराहना मिली थी। वह अन्याय का विरोध करता है तो उसे इसकी कीमत अपने परिवार पर जानलेवा हमले के रूप में चुकानी पड़ती है। इसके बाद प्रभात खुद कानून हाथ में लेकर चुन चुन कर एक एक अपराधी की हत्या करता है। इस रोल को राज बब्बर ने बखूबी निभाया था। इसके बाद से वे बीआर चोपड़ा कैंप का हिस्सा बन गए और उनकी लगभग सभी फिल्मों में काम किया।

वैसे तो राज बब्बर ने 200 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है, लेकिन उनकी टॉप पांच फिल्में चुननी हों तो उसमें बीआर चोपड़ा की क्लासिक फिल्म निकाह जरूर शामिल की जाएगी। इस फिल्म में आप तो ऐसे ना थे की राज बब्बर और दीपक पराशर की जोड़ी को एक बार फिर साथ काम करने का मौका मिला। इस बार भी अपने दमदार अभिनय से राज बब्बर ने ही बाजी मारी। इस फिल्म में भी एक गजल ने तहलका मचा दिया था। वो थी गुलाम अली की चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है। यह बेहतरीन ग़ज़ल शायर और स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी साहब ने लिखी थी।

राज बब्बर ने केतन मेहता की फिल्म मिर्च मसाला में भी यादगार अभिनय किया है। उसमें वह स्मिता पाटिल के पति की भूमिका में थे। मुजफ्फर अली की क्लासिक फिल्म उमराव जान में भी राज बब्बर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। राज बब्बर और स्मिता पाटिल की जोड़ी कई फिल्मों में नजर आई थी। उनमें भीगी पलकें, जवाब, वारिस आदि शामिल हैं।

राज बब्बर का जन्म 23 जून 1952 को उत्तर प्रदेश के टूंडला में हुआ था। बचपन से ही उनका रुझान अभिनय की ओर था और अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने किसी और क्षेत्र में हाथ आजमाने की बजाय ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ (एनएसडी) में दाखिला ले लिय़ा। एनएसडी से पढ़ाई खत्म करने के बाद वह मुम्बई चले गए। राज बब्बर को उन सितारों में एक कहा जाता है जो किसी भी तरह के किरदार को बखूबी पर्दे पर उतारने में माहिर है। फिर चाहे वह हीरो या कोई विलन राज बब्बर इनमें बिल्कुल फिट बैठते हैं। उन्होंने लगभग 200 फिल्मों में काम किया है। जिनमे ‘कलयुग’, ‘निकाह’, ‘अगारे’, ‘वारिस’, ‘घायल’, ‘आंखें’, ‘बरसात’, ‘महाराजा’, ‘बाघी’, ‘इंडियन’, ‘लोक करगिल’, ‘बंटी और बबली’, ‘कर्ज’, ‘बॉडीगार्ड’, ‘खिलाड़ी 786’ जैसी फिल्में अहम रहीं।

अभिनय के साथ-साथ राज बब्बर अपने रिश्तों को लेकर भी जानें जाते हैं। जब राज फिल्मों में अपना करियर बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात सज्जाद जहीर की बेटी नादिरा से हुई और उन मुलाकतों में दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया, जिसके बाद दोनों ने 1975 में शादी कर ली।

राज की जिंदगी में शायद प्यार की कमी पूरी नहीं हुई थी और 1982 में राज ने स्मिता पाटिल के साथ एक फिल्म की ‘भीगी पलकें’, जिसके दौरान स्मिता को राज से प्यार हो गया और दोनों एक दूसरे के प्रेम बंधन में बंधते चले गए। कहा जाता है कि राज, स्मिता पाटिल के प्यार में इतने दीवाने थे कि 80 के दशक के जमाने को अनदेखा कर राज बब्बर, स्मिता के साथ लिव-इन में रहने लगे और उन्होंने अपनी पहली पत्नी नादिरा को छोड़कर स्मिता से शादी कर ली थी। इन दोनों को एक बेटा भी हुआ प्रतीक बब्बर। प्रतीक के जन्म के बाद ही स्मिता का देहांत हो गया।

कुछ साल पहले स्मिता की याद में राज बब्बर ने सोशल मीडिया पर एक इमोशनल पोस्ट लिखी थी। उन्होंने लिखा था- “जब तुम गई थीं तब तुम सिर्फ 31 साल की थीं… लेकिन हमेशा अपने अनुभवों की सीमा के बहुत आगे खड़ी मिलीं… जीवन में सब कुछ बहुत जल्द जी लिया। तुम्हारी अनुपस्थिति पर अब भी यक़ीन नहीं होता.”

फिल्मों के अलावा राज बब्बर राजनीति में भी काफी सक्रिय हैं, राज ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरूआत 1989 में जनता पार्टी से की थी। इसके कुछ वर्षों बाद वह समाजवादी पार्टी से जुड़ गए और तीन बार सांसद चुने गए। 2006 में राज बब्बर को समाजवादी पार्टी ने निकाल दिया गया और इसके दो साल बाद 2008 में राज ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली।

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