बहुत हुई मंहगाई की मार, अब तो बख्श दीजिए सरकार !

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‘बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार।।’ नारे पर रीझे भारतीय जनमानस को शायद अब पेट्रोल-डीजल सहित अन्य उपभोक्ता सामग्री में मंहगाई नहीं सताती। इसलिए अभी और मंहगाई के लिए तैयार ही रहें श्रीमान ! यह कह रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे
‘बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार।।’ नारे पर रीझे भारतीय जनमानस को शायद अब पेट्रोल-डीजल सहित अन्य उपभोक्ता सामग्री में मंहगाई नहीं सताती। इसलिए अभी और मंहगाई के लिए तैयार ही रहें श्रीमान ! यह कह रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे
  • श्याम किशोर चौबे

‘बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार।।’ नारे पर रीझे भारतीय जनमानस को शायद अब पेट्रोल-डीजल सहित अन्य उपभोक्ता सामग्री में मंहगाई नहीं सताती। इसलिए अभी और मंहगाई के लिए तैयार ही रहें श्रीमान ! कोविड-19 के डर, कहीं आइपीसी की धारा 144 और कहीं-कहीं कर्फ्यू के कारण जीवन बचा लेने की धुन, लगभग दो महीने के लाकडाउन के दौरान हुई ईंधन तेलों की खपत में कमी और सबसे ऊपर चीन, नेपाल और पाकिस्तान के कारण उमड़े देशप्रेम के बहाने मोदी-शाह के प्रति अति भक्ति के माहौल में जेब ढीली करने में भी आनंद का ज्वार उमड़ रहा है।

तेल की धार देखो, तेल के दाम नहीं

कहने की बात नहीं कि पिछले पखवाड़े भर में हर दिन बढ़ती-बढ़ती पेट्रोल और डीजल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर जा पहुंची हैं। पखवाड़े भर में डीजल नौ-साढ़े नौ रुपये और पेट्रोल आठ-साढ़े रुपये प्रति लीटर उछलकर क्रमशः 75.50 रुपये और 79.83 रुपये तक जा पहुंचे हैं। डीजल और पेट्रोल की इतनी कीमतें तो ‘बहुत हुई मंहगाई की मार…’ के जमाने में भी नहीं थीं, जबकि अभी भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमतें उस जमाने के स्तर पर नहीं हैं।

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यह ठीक है कि लाकडाउन के ऐन पहले कच्चा तेल जहां 20 डालर प्रति बैरेल तक गिर गया था, वह अब उफनकर 30-35 डालर तक आ गया है, फिर भी ‘मंहगाई की मार…’ वाले जमाने से बहुत ही कम है। लेकिन ठहरिए, यह अंतिम नहीं है। ओपेक कन्ट्रीज और तेल उत्पादक अन्य देश अपना उत्पादन गिराने की

नीति पर अमल कर रहे हैं। इससे बाजार चढ़ता चला जा रहा है। यदि वे इसे उठा कर 60 डालर प्रति बैरेल तक ले गए तो आम उपभोक्ता को कराहते भी न बन पड़ेगा, क्योंकि अभी तो हम टैक्सेशन की ही मार सह रहे हैं, विश्व बाजार में बढ़ी कीमतों पर जब तेल कंपनियां रेट तय करने लगेंगी तो जेब का बोझ कुछ अधिक ही बढ़ाना पड़ेगा।

मंहगाई की मार समझिए

तेल की धार समझिए, तभी महंगाई की मार का पता चल पाएगा। जब लाकडाउन से ठीक पहले विश्व बाजार में तेल की कीमतें पाताल धंसती जा रही थीं, उसके पहले भारतीय कंपनियों ने ऊंची कीमतों पर अपनी इन्वेंट्री यानी अपना स्टाक पूरा कर लिया था। यानी उन्होंने महंगा क्रूड आयल खरीदा था, किंतु अचानक विश्व बाजार में इसकी कीमतें गिर गईं। इस प्रकार तेल कंपनियां बिना दाम घटाए अपना बैलेंस शीट मेंटेन करती रहीं कि केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर दस रुपये प्रति लीटर तथा डीजल पर तेरह रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगाकर अपना खजाना भर लिया। इस अतिरिक्त ड्यूटी से तेल कंपनियों को धेला भी न मिला। उन्होंने इस ड्यूटी को एबजार्ब कर लिया। फलतः लाकडाउन के 80-82 दिनों तक भारतीय बाजार में तेल की कीमतें स्थिर रहीं और तेल कंपनियों का रिफाइनिंग मार्जिन नीचे गिर गया। ये कंपनियां सारे टैक्स हटाने के बाद सामान्यतः 15-17 रुपये का मार्जिन रखती हैं। केंद्र द्वारा लादी गई एक्साइज ड्यूटी एबजार्ब करने से तेल कंपनियों को मार्जिन में नुकसान तो हुआ ही।

यही वह दौर था, जब राज्य सरकारों ने वैट या तो बढ़ाया या पिछले वर्षों में घटाए गए वैट को वापस ले लिया, जिसका घरेलू बाजार पर असर पड़ा। इन्वेंट्री, मार्जिन मनी का संकट झेल रहीं तेल कंपनियों को यह अहसास भी हो रहा है कि भले ही लाकडाउन हटा लिया गया है, लेकिन घरेलू उपभोक्ता बाजार में लंबे समय तक 12-15 प्रतिशत की कमी बनी रहेगी। यही कारण है कि वे 60-70 पैसे कर रोजाना कीमतें बढ़ाती चली जा रही हैं। अभी भी कीमतें केंद्र द्वारा लगाई गई एक्साइज ड्यूटी के बराबर तक नहीं बढ़ पाई हैं। इसलिए यह मानकर चलना चाहिए कि अभी तो घरेलू बाजार में तेल की कीमतें टैक्सेशन के कारण ही उड़ान भर रही हैं। यदि तेल उत्पादक देशों की नीति कामयाब रही और विश्व बाजार में उछाल आया तो तय मानिए कि इन बढ़ी कीमतों की वसूली भी तेल कंपनियां हम-आप से ही करेंगी। इसलिए यदि सिंचाई करनी है, बाइक-कार का आनंद लेना है या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही उपयोग करना है तो हर दिन जेब में अतिरिक्त माल लेकर निकलिए। मोदी सरकार द्वारा सब्सिडी हटाने के कारण डीजल और पेट्रोल की कीमतें ठीक वैसे ही समान स्तर तक पहुंच रही हैं, जैसे कई नीतियों के कारण मध्यम वर्ग निम्न आय वर्ग वालों के समानांतर चलने को विवश हो रहा है।

तेल के खेल में सभी घायल

तेल की धार देखते हुए ऑल इंडिया ट्रान्सपोर्ट असोसिएशन, ऑल इंडिया मोटर ट्रान्सपोर्ट कांग्रेस सहित झारखंड मोटर फेडरेशन ने भाड़े में 20-25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की जरूरत बता दी है। डीजल की कीमतों में वृद्धि का असर निश्चय ही खेती-किसानी पर भी पड़ेगा। सिंचाई लागत 400 रुपये प्रति बीघा तक बढ़ने का अनुमान है। इस प्रकार हर उपभोक्ता सामग्री की कीमतें बढ़ने के दिन आ गए हैं। फिर न कहिएगा, ‘बहुत हुई मंहगाई की मार…’।

 

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