मुख्यमंत्री नीतीश को पत्र भेज औषधि नियंत्रक पदाधिकारी की शिकायत

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेज औषधि नियंत्रक पदाधिकारी की शिकायत बिहार ड्रग फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने की है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेज औषधि नियंत्रक पदाधिकारी की शिकायत बिहार ड्रग फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने की है।

पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेज औषधि नियंत्रक पदाधिकारी की शिकायत बिहार ड्रग फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने की है। उन पर दवा निर्माताओं के साथ असहयोग का आरोप लगाया गया है। कहा गया है कि जान-बूझ कर औषधि नियंत्रक पदाधिकारी दवा निर्माताओं को परेशान करते हैं।

प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो

एसोसिएशन की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश को लिखे पत्र में कहा गया है कि पूरा विश्व कोविड-19 के कारण से त्रस्त है और हर इंसान रोजगार की परेशानी से जूझ रहा है। ऐसी स्थिति में राज्य में औद्योगिक गतिविधि सुचारू ढंग से संचालित करने की जरूरत आप भी महसूस करते हैं। आपने बार-बार इस विषय पर अपनी मंशा जाहिर की है। परंतु राज्य औषधि नियंत्रक पर इसका कोई असर ही नहीं पड़ा है। औषधि नियंत्रक द्वारा किया जा रहा हर काम सभी दवा निर्माताओं को न सिर्फ परेशान करने वाला है, बल्कि उनको अपना निर्माण कार्य बंद करने को प्रेरित करता है। कोविड-19 से संबंधित औषधि निर्माण में लगे निर्माता की तो इन्होंने कमर ही तोड़ डालने का प्रयास शुरू कर दिया है। एसोसिएशन ने बिंदुवार अपनी समस्याओं का जिक्र मुख्यमंत्री से किया है।

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एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री नीतीश को लिखे अपने पत्र कहा है कि केंद्र सरकार और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली ने कोविड-19 के मद्देनजर आदेश जारी किया कि तीन दिन के अंदर सेनेटाइर की अनुज्ञप्ति प्रदान करें तो राज्य औषधि नियंत्रक पदाधिकारी ने अपना अलग ही कानून स्थापित कर लिया। 10 निर्माताओं ने आवेदन दिया था। उन्होंने लाकडाउन की अवधि में उन निर्माताओं के निर्माण संस्थानों की जांच तो करा ली, परंतु अनुज्ञापन आदेश पारित नहीं किया। दो निर्माताओं को एथिनोल बेस्ड अनुज्ञापन प्रदान किया, यह जानते हुए कि लाकडाउन में आबकारी विभाग से कोटा मिलना आसान नहीं है। हुआ भी वही।

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आखिरकार उन दो निर्माताओं ने उच्च न्यायालय की शरण ली। हाईकोर्ट के आदेश पर उन निर्माताओं को आबकारी विभाग ने अंततः कोटा निर्गत किया। इस प्रक्रिया में लगभग 1 महीने का समय गुजर गया। इस बीच बाहर के सप्लायर का सेनेटाइजर बिहार के बाजारों में भर गया। बाकी के निर्माताओं ने भी हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट की दखल पर आईएसओ प्रोपिल अल्कोहल बेस्ड आदेश पारित हो पाया। यहां भी इन्होंने अपनी कूटनीति नहीं छोड़ी। डब्ल्यूएचओ द्वारा स्थापित आईएसओ प्रोफिल अल्कोहल के 70% कंसंट्रेशन के फार्मूला को धता बताते हुए 75 परसेंट कंसंट्रेशन की अनुमति प्रदान की। इससे ये निर्माता कॉस्टिंग में तो बाहर के निर्माताओं से पिछड़ ही गए, इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 45 दिन का समय भी निकल गया। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि केंद्र सरकार का निर्देश था सैनिटाइजर का लाइसेंस तीन दिन के अंदर निर्गत कर देना है तो विलंब क्यों हुआ। यहां भी उन्होंने अपनी मर्जी चलाई। महीने भर बाद ही कोर्ट के आदेश पर उन्होंने अनुज्ञापन निर्गत किया।

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दूसरे बिंदु में एसोसिएशन ने लिखा है कि अतिरिक्त औषधि निर्माण के लिए अनुज्ञापन प्रदान करने कि विधि देश में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने समान रूप से जारी किया है, परंतु बिहार में कोई निर्माता अनुज्ञापन के लिए आवेदन करता है तो औषधि नियंत्रक द्वारा प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है। जैसे- स्थानीय सहायक औषधि नियंत्रक, औषधि निरीक्षक से जांच नहीं करायी जाती। प्रदेश में तैनात सहायक नियंत्रक का 3 सदस्यीय समूह बना कर जांच करायी जाती है। फिर उनके द्वारा समर्पित जांच प्रतिवेदन पर औषधि नियंत्रण निदेशालय पटना द्वारा बनायी गयी औषधि निर्माण समिति को संचिका प्रेषित कर दी जाती है।

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यह औषधि निर्माण समिति सप्ताह में सिर्फ 1 दिन यानी बुधवार को बैठती है। अगर उस तिथि को एक सदस्य अनुपस्थित है तो अगले बुधवार तक बैठक स्थगित हो जाती है। कमेटी की बैठक होती भी है और अपनी टिप्पणी के साथ संचिका प्रेषित कर देती है तो उस संचिका को फिर किसी औषधि निरीक्षक को जांच के लिए दे दिया जाता है। उसके बाद जब औषधि निरीक्षक टिप्पणी के साथ संचिका बढ़ाते हैं तो ये फिर अपने स्तर से इसकी जांच करते हैं। इस प्रक्रिया में कम से कम से कम दो महीना या उससे ज्यादा ही समय निकल जाता है। इस बीच देश से बाहर के निर्माता उसी उत्पाद को बाजार में भर देते हैं। यहां के निर्माता का इंतजार करते रह जाते हैं। आरोप लगाया गया है कि इस पूरे प्रकरण में औषधि नियंत्रक की भूमिका संदिग्ध है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि साल में जितनी बार निर्माता औषधि निर्माण के लिए आवेदन करते हैं, उतनी बार ये संस्थान का निरीक्षण करवाते हैं।

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कहा गया है कि हम सरकारी निविदा में अक्सर पिछड़ जाते हैं। यह सभी जानते हैं कि कोई भी सरकारी निविदा आती है तो उसकी समय सीमा निश्चित रहती है। निविदा के लिए मांगे गए सर्टिफिकेट के लिए निर्माता आवेदन करते हैं तो फिर से राज्य औषधि नियंत्रक निर्माण संस्थान का निरीक्षण शुरू करते हैं। जब तक सर्टिफिकेट मिलता है, निविदा में भाग लेने की अवधि निकल चुकी होती है। संयोग से किसी को सर्टिफिकेट मिल भी गया तो उसमें ये अपनी तरफ से कुछ अतिरिक्त पंक्तियां जोड़ देते हैं। नतीजतन निविदा तकनीकी जांच में छंट जाती है। जब कोई निर्माता कारण पूछता है तो बोलते हैं कि यहां सिर्फ मेरा कानून चलेगा, आपको जिसके पास जाना हो, जा सकते हैं। एसोसिएशन ने इन मुद्दों पर विस्तृत बातचीत के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से समय मांगा है, ताकि रूबरू होकर औषधि निर्माता अपनी समस्याएं बता सकें। एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव राय की ओर से इस बारे में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया है।

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