बीजेपी-जेडीयू के बीच इनदिनों भवह-भैसुर का चल रहा खेल

0
411

पटना। बीजेपी-जेडीयू के बीच इनदिनों बिहार में भवह-भैसुर का खेल चल रहा है। बीजेपी कभी जेडीयू की सांसें रोक देती है तो कभी पीठ ठोक देती है। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कह कर जेडीयू को सकते में डाल दिया था कि बीजेपी विधानसभा की सभी सीटों पर तैयारी में जुट जाये। जाहिर है कि जेडीयू को इससे बड़ा झटका लगा होगा। हफ्तेभर में ही नड्डा ने यह कह कर जेडीयू को थोड़ी राहत दे दी कि एनडीए अटूट है और मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। बीजेपी-जेडीयू में भवह-भैसुर के इस खेल के पीछे कारण क्या है, यह अभी तक स्पष्ट तो नहीं है, लेकिन अनुमान लगाना कठिन भी नहीं।

दरअसल बीजेपी इस बार जेडीयू से दो कदम आगे चलना चाहती है। लोकसभा चुनाव के अनुभवों ने उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है। लोकसभा चुनाव के दौरान जेडीयू ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही। भाजपा उनकी इस चाल को नहीं समझ पाई और उसने उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र भी दे दिया। लेकिन इसी की आड़ में नीतीश कुमार ने 2014 की दो जीती हुई सीटों के मुकाबले जेडीयू के हिस्से में भाजपा से बराबर 17 सीटें ले लीं। भाजपा को संबंधों के निर्वाह में अपनी पांच जीती हुई सीटें भी गंवानी पड़ी। भाजपा के सहारे नीतीश कुमार ने 16 सीटों पर कामयाबी भी हासिल की। बीजेपी-जेडीयू के बीच आंतरिक दरार की वजह यही थी।

- Advertisement -

इस साल नवंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू ने पैंतरेबाजी शुरू कर दी थी। कोरोना लाकडाउन के कुछ ही महीने पहले जेडीयू ने सीएम चेहरे के रूप में नीतीश कुमार के नाम पर भाजपा से आश्वस्ति चाही और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को हामी भी भरनी पड़ी। उन्हें हाजीपुर में खुले मंच से घोषणा करनी पड़ी कि नीतीश ही सीएम फेस होंगे। जेडीयू की अगली पैंतरेबाजी सीटों के बंटवारे को लेकर शुरू हुई। वह भाजपा से अधिक या कम से कम बराबर सीटें चाहती थी। इसकी आवाज भी उठने लगी थी। संयोगवश कोरोना ने उस स्वर को दबा दिया। बीजेपी-जेडीयू के बीच मनमुटाव का एक कारण यह भी है।

यह भी पढ़ेंः बिहार सीएम नीतीश कुमार को योगी आदित्यनाथ से सीखना चाहिए

अब से 6 महीने बाद बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं और अभी कोरोना काल चल रहा है। इसमें सारी तैयारियां जस की तस पड़ी हुई हैं। यहां तक कि राजनीतिक गतिविधियों पर भी विराम लग गया है। बीजेपी ने इसे अवसर के रूप में इस्तेमाल किया और एक शिगूफा छोड़ दिया कि भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव की तैयारी में जुट जाए। दरअसल यह जेडीयू पर दबाव की भाजपा की ओर से सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, ताकि जेडीयू अधिक सीटों की मांग न कर पाये।

यह भी पढ़ेंः नीतीश कुमार पर भाजपा का साथ भारी पड़ने लगा है, क्या हैं विकल्प

बीजेपी इसी बहाने गठबंधन में संशय की स्थिति पैदा कर जेडीयू के स्वर को दबाना चाहती थी। हालांकि बीजेपी यह भी जानती है कि अकेले चुनाव में कामयाबी संभव नहीं। उसे यह भी भय है कि पासा कहीं पलट न जाए। यानी नीतीश कुमार कहीं विपक्ष के साथ न सट जाएं। पिछली बार बीजेपी से अपने रिश्ते तोड़ और आरजेडी से जोड़ कर नीतीश कुमार ने इसे साबित भी कर दिखाया था। राजनीतिक गलियारे में दबी जुबान यह चर्चा भी है कि नीतीश कुमार से सोनिया गांधी से इसी दौरान संपर्क भी साधा, लेकिन सोनिया ने महागठबंधन का सारा जिम्मा लालू प्रसाद पर डाल दिया। बीजेपी-जेडीयू में संशय के बीज तो पड़ ही चुके हैं।

यह भी पढ़ेंः नीतीश कुमार को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है

शायद इसी आशंका को देखते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रमुख जेपी नड्डा ने बाद में स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार ही एनडीए में मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। यहां भाजपा की कोशिश नैतिक रूप से नीतीश कुमार को इस कदर दबा देने की है कि सीटों के समझौते में मजबूर होकर वह भाजपा की शर्तें मानने को तैयार हो जाएं। नीतीश के सिपहसालार समझे जाने वाले आरसीपी सिंह और लल्लन सिंह इनदिनों उनसे कन्नी काटे हुए हैं। उनके भाजपा नेताओं से संपर्क में रहने की सूचनाएं भी छन-छन कर बाहर आती रही हैं। संभव है कि भाजपा केंद्र में उन्हें संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में जगह दे दे। उपसभापति का पद हरिवंश को देकर भाजपा ने पहले ही जेडीयू पर नैतिक दबाव बना रखा है।

यह भी पढ़ेंः नीतीश कुमार बिहार में इन दिनों कई संकटों से जूझ रहे हैं

इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने डिजिटल माध्यमों के जरिये ‘बिहार-जनसंवाद’ कार्यक्रम की घोषमा कर दी है। यानी राजनीतिक हलचल के रूप में भाजपा यहां भी आगे दिखती है। कार्यक्रम 7 जून को होना है। भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल कहते हैं कि 7 जून को शाम 4 बजे आयोजित होने वाला, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का ‘बिहार जनसंवाद’ कार्यक्रम न केवल ऐतिहासिक होने वाला है, बल्कि उनकी यह डिजिटल रैली सफलता के कई नये कीर्तिमान भी स्थापित करने वाली है। इसे लेकर लोगों में कितना उत्साह है, यह इसी से पता चलता है कि पहले यह आयोजन सिर्फ 22 जिलों में किया जाने वाला था, लेकिन लोगों की डिमांड पर अब यह पूरे प्रदेश में किया जाने वाला है। इस रैली के प्रति लोगों के उमंग को देखते हुए हमें पूर्ण विश्वास है कि इस कार्यक्रम के दर्शकों की संख्या दो लाख से भी अधिक होने वाली है।

यह भी पढ़ेंः कोविड ने नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा कर दिया है

- Advertisement -