मार बढ़नी रे-मार बढ़नी, कोरोनवा कुलच्छनी के मार बढ़नी

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किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।
किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।

मार बढ़नी रे-मार बढ़नी, कोरोनवा कुलच्छनी के मार बढ़नी। मलिकाइन के पाती एम शफी के लिखल आ रिंकू भारती के गावल गीत से शुरू भइल बा। पहिले त हमरा ई बुझाइल कि गांव-जवार आ घर-दुआर के बतकही करे वाली मलिकाइन कहिया से गीत-गवनई करे लगली। बाकिर उनकर पठावल पूरा पाती पढ़ला के बाद समझ में आइल कि ऊ कोरोना के लेके परेशान बाड़ी। मलिकाइन के पाती में कोरोना के कोरना लिखल बा। त लीं अपनहूं सभे पढ़ीः

पांव लागी मलिकार। केतना दिन से परेशान बानी, केहू पाती के लिखनीहार ना मिलत रहल हा। एने मन मछियाइल रहल हा ई कोरना बेमारी के बतकही सुन-सुन के। रउरा त जनबे करीले मलिकार कि पांड़े बाबा के दुआर पर रोज भोरे-भोरे गांव भर के जुटान होला। तन-चार गो खबर कागज उहां के मंगाई ले। लोग ओह खबर कागज के पन्ना-पत्ता बांट के अइसन मगन होके पढ़ेला कि बुझाला कवनो इंतिहान के तेयारी में लागल बा लोग।

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एने महीना-डेढ़ महीना से जुटान कम होता। दू-तीन जने बुढ़ऊ लोग आवे ला। पांड़े बाबा फरका-फरका   कुरसी धरवाईले। कवन दूनो एगो तेल पहिले सबका हाथ पर एक-एक बून देके हाथ मलवाई ले। तब खबर कागज पढ़े के दीले। सभका के उहां के पहिलहीं हिदायद देले बानी कि मुंह बान्हिए के केहू उहां के दुआर पर आई। पहिले त हमरा ई ना बुझाव मलिकार कि काहें उहां के रोख बदल गइल बा आ अइसन कड़ाई कइले बानी। लोगवो आइल कम के दिहले बा। बाद में गते-गते बात बुझाइल हा। ई सगरी तितिम्मा कोरना बेमारी से बचे के उपाय ह।

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रउरा त जनबे करीले मलिकार, हम लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर हईं। केहू मन जोगे ना भेंटाव त पातियो पठावल मुसकिल हो जाई। ई ना कहीं कि काल्ह पांड़े बाबा के मझिली नतिनिया आइल त ओकरे से कहनी- ए बबुनी, केतना दिन भइल तोरा बाबा के पाती पठवले। चार लाइन लिख दे एइजा के हाल-चाल। ओकरे से लिखववले बानी। कवनो भूल-चूक भइल होखे त हमार दोष नइखे। हं, त मलिकरा हम बतावत रहनी हां कि ई कोरना बेमारी के बारे में। पांड़े बाबा त लोग के अवे के पहिलहीं सगरी खबरिया चाट गइल रहीले। उहें के बतावत रहनी कि ई बेमारी के कवनो दवाई नइखे। ई एक आदमी से दोसरका आदमी में ढुक जाता। एही से फरके-फरके रहे के सलाह दिहल जाता।

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हम त दोगहा में बइठ के सगरी सुनत रहीले। कुछ बुझाला, कुछ ऊपरे से निकल जाला। पांड़े बाबा आज बतावत रहीन हां कि चाईना में एह बेमारी के जनम भइल बा। ई अपने से होखे वाला बेमारी ना ह। एकरा के चाईना पैदा कइले बा। पांड़े बतावत रहुवीं कि अमिरका (अमेरिका के मलिकाइन अमिरका लिखले बाड़ी) आ रूसिया (रसिया) त साफ कह देले बा कि जान-बूझ के चाईना एह बेमारी के उपरजले बा। ऊ चाहत रहल हा एह से दुनिया तबाह हो जाव आ ऊ एकरा से बचे खातिर आपन सामान बेचे।

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पांड़े बाबा त इहो बतावत रहवीं कि पलेग अइसन ई महमारी बन के आइल बा। हमरा माई के नानी के ईया बतावस कि पलेग इल रहे त मूस मूए लागे सन। गांव के गांव खतम हो गइल। एको आदमी कई गांव में ना बंचले। ओही के लोग अब डीह के खेत कहेला। जब गांव में मुआरी शुरू होखे त लोग गांव छोड़ दोसरा जगहा जाके बस जाव। ओह लोग के कुल देवता त ओही जा रह जाव लोग। एही से देखले होखब मलिकार कि जब घर में कवनो शुभ काम होला त डीह बाबा के पूजा होला। पलेगे अइसन एहू बेमारिया के उहां के बतावत रहनी।

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पांड़े बाबा त एगो अइसन बात बतावत रहवीं मलिकार कि हमार त होशे उड़ गइल बा। उहां के कहवीं कि दुनिया एह बेमारी से तबाह हो जाई। नोकरी-चाकरी खतम हो जाई। जवन जरूरी ना होई, ऊ सरकारी काम बंद हो जाई। लोग के तनखाह घटावल जाई। एकर शुरआतो हो गइल बा। उहें के हतउवीं कि अपना इहों से 17 लाख लोग नोकरी-चाकरी खातिर दोसरा शहर में गइल बा। सबे उहवां से भागे खातिर बेचैन बा। सवारी सगरी बंद बा। ओह लोग के खाये-पीये के तबाही होता। सरकार के कहनाम बा कि एतना आदमी के ले आइल ओकरा वश के बात नइखे। पढ़े खातिर जवन लड़िका-लड़िकी बाहर गइल बाड़े सन, ओकनी के ओइजा परेशान बाड़े सन। मार बढ़नी रे अइसन बेमारी के।

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ए मलिकार, एतना लोग लवटियो आई त का करी। रोजी-रोजगार त एइजा हइये नइखे। लोगवा आई त लूट-मार मची। एह बेमारी से एगो फायदा भइल बा मलिकार, सड़क पर हुर्र-हुर्र जवन गाड़ी दउड़त रहली हा सन, ऊ बंद हो गइल बा। पांड़े बाबा बतावत रहवीं कि गंगाजी के पानी एतना साफ हो गइल बा कि अंजुरी भर-भर पीयल जा सकेला। भर दिन में चार-पांच बेर बाजार जाये के आदत छूट गइल बा। फालतू खरच त होते नइखे। घर में जवन बा, लोग ओही से काम चला लेता। साबुन-सरफ के खरचा घट गइल बा। एगो नहाये-धोए के कपड़ा से काम चल जाता। केहू के कहीं जाये के त जरूरते नइखे पड़त। काल्ह आपन बड़का मोबाइल में एगो गीत सुनावत रहुवे- मार बढ़नी रे-मार बढ़नी, कोरोनवा कुलच्छिनी के मार बढ़नी। पूछनी कि कवन गावतिया, त बतवलस कि गीत लिखे वाला एम. शफी हउवन आ गवले बाड़ी रिंकू भारती। ई लोग अपने जिला-जवार के ह। हमरा त मार बढ़नी रे-मार बढ़नी, कोरोनवा कुलच्छिनी- बड़ा नीक लागल मलिकार।

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हमार त दुनिया-जहान एही आंगन-घर में बा मलिकार। एह से कवनो भय नइखे। रोज मोर पर जाये के पांड़े बाबा के आदतो छूट गइल बा। लड़िकवो दउरे पर रहत बाड़े सन। रउरा आपन खेयाल राखेब। कहीं जनि निकलेब। केहू के घरे बोलइबो मत करेब। घरहीं से जवन काम करे के होखे, करेब। ढेर दिन पर पाती लिखावात बानी, एह से तनी लमहर हो गइल बा। बाकी अगिला पाती में।

राउरे, मलिकाइन

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