मलिकाइन के पाती- बेशवा रूसल त घरवो बांचल

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किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।
किरिया पर जाई, माई-बाप मर जाई...। मलिकाइन के पाती ढेर दिन पर आइल बा। पाती के शुरुआत अबकी एही लाइन से मलिकाइन कइले बाड़ी।

मलिकाइन आपन पाती आदतन एहू बेर कहाउते से शुरू कइले बाड़ी। लिखले बाड़ी- बेशवा रूसल त घरवो बांचल। पाती पढ़ला के बाद माने बुझाई। त लीहल जाव अपनहूं सभे पढ़ के एकर माने-मतलब बूझीः

पायं लागीं मलिकार। हमरा पातेपुर वाली फूआ के बेलहर में बिअहल बड़की ननद एक बेर भेंटाइल रहली त बेर-बेर एगो कहुत घूम-फिर के ऊ कहस- जाये दे, बेसवा रूसल त घरवो बांचल। ओह घरी त हम बाली उमिर के रहनी, एह से एकर माने–मतलब ना बुझाव, बाकिर अब जाके एकर अर्थायन ठीक से बुझाइल हा।

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सुशासन बाबू के कवनो दहिना हाथ रहले हां, परसांत। नांव सुन के अइसन लागत रहल हा कि सचहूं कवनो चुप्पा आदमी होइहें। बाकिर पांड़े बाबा परसउवां उनकरा बारे में जवन बतावत रहुवीं, ऊ सुनला-जानला के बाद हमरा मन के भरम दूर हो गउवे। ऊ त नचनिया-बजनिया अइसन किराया-भाड़ा पर नाचे वाला आदमी बाड़े। खांटी बेसवा अइसन। सुने में आइल कि ऊ कबो बंगाला वाली दीदी के जितवा खातिर चल जाले त कबो सोनिया गान्ही के पाटी के जितवावे के ठीके ले ले। कबो बंबई में बइठ के ओइजा के कवनो पाची के जीते खातिर गेयान बांटे ले त छनहीं में कजरी गावे दिल्ली चल जाले। सुने में आवे ला कि ऊ किस्मत के सांढ़ हउवन। हमरा त बुझाला मलिकार कि बिलाई के भाग के जवनी गंतिया सिकहर टूट जाला, ओही तरे ऊ जेने सटे ले, ओह पाटी के जीत हो जाला। सचहूं बेसवा अइसन जेने पइसा भेंटाइल, ओकरे संगे सूते के तेयार रहेले। जे तनी बेसी भाव दे देला, ओकरा संगे तनी बेसी देर ले टाइम पास क ले ले।

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पांड़े बाबा बतावत रहुवीं कि अबकी ढेर दिन ले ऊ सुशासन बाबू के संगे रह गइल रहले हां। सुशानो बाबू उनका के माथा पर चढ़ा लिहले रहले हां। पाटी में कवनो बड़ ओहदा उनका के दे दीहले रहले हां। इनका बुझाइल कि अब त सुशासन बाबू काबू में बाड़े। जवन कहिहें भा चहिहें, तवने उनका करे के परी। लगले ढेर रूसे आ फुटफुटाए त सुशासन बाबू उनका के कगरी क दिहले। एह से ऊ एतना रिसिअइले-कोहनइले कि अब सुशासन बाबू के पोल खोले में लागल बाड़े।

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पटना में खबर कागज वाला लोग के जुटा के ऊ सुशासन बाबू के एतना शिकायत कइले कि लोग के सचहूं एक बेर इहे बुझाइल कि उहे सांच बाड़े आ सरजमीन पर जवन काम लउकत बा, ऊ झूठ के पोटली ह। ऊ कहले कि 2005 में बिहार जहवां रहे, ओही हाल में आजो बा आ नीतीश बाबू झूठे ढोल पीटत बाड़े कि बिहार तरक्की कइले बा। ए मलिकार, अन्हरो के ई बुझा जाई कि पांक-कांदो में जहां आदमी गिरत-पड़त, धंसत-ढिमलात चलत रहे, अब बरोबर गोड़ रोप के चीकन सड़क पर चलत बा। हमरा इयाद बा मलिकार कि मछागर वाली मामी के जब परसौती पीरा भइल त लोग उनके बैल गाड़ी पर लेके गोपालगंज भागल। रास्ता एतना ऊंच-नीच रहे कि हिलत-डोलत बैल गाड़िये में उनका बच्चा हो गइल। अब त अइसन सड़क हो गइल बाड़ी सन मलिकार कि छने भर में सीवान आ छनही में गोपालगंज केहू चल जाता। ए रास्ता ना त ओ रास्ता से निकल जा। थावे के भवानी के मेला चइत में हमनी चंवरा-चवंरी होके तीन कोस जाईं सन, अब त फटफटिया पर बइठा के पांच मिनिट में लड़िका मंदिर ले पहुंचा दे तारे सन।

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रउरा इयाद होई मलिकार, पहिले किरासन के ढेबरी बार के सगरी काम होखे। उहो ओतना ना मिले कि लोग रात भर बार के सुत पावे। रउरा का जाने सुनले बानी कि ना मलिकार, एक बेर कवलेसर काकी के घरे मकई के भात बने के रहे। इनार से पानी भर के बाल्टी में उनकर सवांग लेके अइले। चूल्हा के आंच के अंजोर में बाल्टी के पानी से अदहन बइठा दिहल गइल। अदहन खउलल त ओइमें मकई के दरिया डाल के उनकर माई डभका दिहली। खाये के बेरा ले चुल्ही बुता गइल रहे, एह से अंजोर त रहे ना। अन्हारे में भात आ बंदा के तरकारी कवलेसर काकी परोस दिहली। ऊ खाइल शुरू कइले। बात में उनका कवनो चीज लकड़ी अइसन बुझाइल। ऊ कहले- रे माई, तनी ढेबरिया बार ना। का दूना लकड़ी अइसन बुझाता। ढेबरी बराइल त ऊ बेंग रहे, जवन इनार से बाल्टी के पानी में आ गइल रहे आ अन्हारा में अदहन में चल गइल रहे।

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अब त अइसन नइखे नू मलिकार। किरासन त अबो मिलत बा, बाकिर केहू कीने वाला हइए नइखे। एह से रात-दिन बिजली के लट्टू जरत रहता। अपनो बड़का एक दिन गइल आ दू गो पंखा आ चार गो लट्टू अइसन बवल कीन के ले आइल। एतना साफ अंजोर होता मिलकार कि का कहीं। पंखा त अबे नइखे चलत, बाकिर जहिया ऊ टंगाइल, ओह दिन एतना घिरनी अइसन नाचत देखनी कि दुइए मिनिट में जाड़ उपट गइल।

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रउरा के त हम बतवले रहनी मलिकार, पानी के पाइप अपना गांव में घरे-घरे लाग गइल बा। पानी अबहीं आवत त नइखे, बाकिर पांड़े बाबा कहत रहवीं कि एह महीना के आखिर ले पानी आले लागी। चापा कल हुमचे के लफड़ा ओरा जाई। एतने ना मलिकार, चापा नल में हर छह महीना पर वासर बदले के परत रहल हा। गर्मी में पानी छोड़स देला। बाल्टी भर पानी डालीं आ घंटा भर हुमचीं तब जाके पानी निकली। एह कुल से आदमी बांच जाई।

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अब सुने में आवता मलिकार कि उहे परसांत पांच साल ले चुप रहले हां। तब सब नीमन रहल हा। अब उनकर बतकही सुशासन बाबू ना मनले त ऊ उकरा खातिर बेजायं हो गइल बाड़े। परसांत कहत फिरतारे कि कवनो तरक्की बिहार में नइखे भइल। लालू-रबड़ी के राज में जवन हाल रहे, ओइसने बा। ई केहू मानी का मलिकार। हं, एगो काम जरूर बिगड़ल बा। मार-काट, चोरी-छिनतई जरूर बढ़ल बा। उहो एह से भर दिन सिपाही-दरोगा दारू धरे-पकड़े भा बेचे-बेचवावे में लागल बाड़े सन। ओकनी के दुरुस्त क दिहल जाव त सब ठीक हो जाई। आज एतने रहे दीं, बाकी काल्ह लिखवाएब।

राउरे, मलिकाइन

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